समलैंगिकों को एकांत में संबंध बनाने की मिली इजाजत, लेकिन खड़े हैं अभी भी कई सवाल
विश्व के कई ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता प्राप्त है। 2015 में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि समलैंगिकों को शादी का संवैधानिक अधिकार है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। फैसले को समलैंगिक अधिकारों को मान्यता के लिहाज से ऐतिहासिक माना जा रहा है। लेकिन इस फैसले के बाद कई सवालों जन्म ले सकते हैं। फैसले के मुताबिक दो वयस्क समलैंगिक साथी हो सकते हैं लिव इन में भी रह सकते हैं लेकिन उन्हें जीवनसाथी का दर्जा नहीं प्राप्त होगा जो कि उनके साथी की संपत्ति उत्तराधिकार में आड़े आएगा।
सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने एक सुर में समलैंगिकों (एलजीबीटी) के साथ उनकी यौन अभिरुचि के कारण दशकों से होते आ रहे भेदभाव को अमानवीय और असंवैधानिक तो करार दिया लेकिन 493 पेज का फैसला उनके हक मे जीवनसाथी के तौर पर किसी अधिकार का सृजन नहीं करता है। इस अधिकार को सबसे पहले हकीकत बनाने वाली दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ के सदस्य पूर्व न्यायाधीश एपी शाह कहते हैं कि अभी सिर्फ समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर हुए हैं। ये पहला कदम है। अभी इन्हें और कोई अधिकार नहीं मिला है। ये इतनी जल्दी संभव भी नहीं है। इसमें वक्त लगेगा। जिन देशों मे ऐसे संबंधों को मान्यता मिली है उनमें भी मान्यता मिलने के बाद विवाह उत्तराधिकार व अन्य अधिकार मिलने मे 15 -20 वर्ष का समय लगा है। पूर्व अटार्नी जनरल और वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी भी कहते हैं कि शादी, उत्तराधिकार वसीयत और जायदाद बाद की बात है। इसके बारे मे समाज की सोच बदलने मे वक्त लगेगा। इस पर व्यापक बहस की जरूरत होगी। समाज को परिपक्व होना होगा। फिर संसद को इस बारे मे सोचना होगा और ये सब इतनी जल्दी नहीं हो सकता।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपने फैसले में खुद इस बात की तस्दीक करते हैं कि ये संमलैंगिकों के अधिकारों की ओर उठा पहला कदम है। लेकिन साथ ही फैसले को देखा जाए तो कोर्ट स्पष्ट करता है कि वह साथी के तौर पर तो मान्यता दे रहा है लेकिन जीवनसाथी के तौर पर नहीं। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविल्कर के फैसले मे कहा गया है कि इस बात मे कोई संदेह नहीं कि दो लोगों को अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत साथ रहने (यूनियन) का हक है लेकिन कोर्ट ने आगे साफ किया कि यहां उनके यूनियन शब्द कहने का मतलब शादी नहीं है। हालांकि बहुत से देश ऐसे हैं जहां समलैंगिकों को शादी और जीवनसाथी के सारे हक प्राप्त हैं। कई देशों में एलजीबीटी के अधिकारों पर पहली मुहर कोर्ट से ही लगी है। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है पड़ोसी देश नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने एलजीबीटी के अधिकारों को मान्यता देते हुए कहा था कि सभी व्यक्तियों को विवाह करने का हक है और इसका उस व्यक्ति की यौन अभिरुचि से कोई लेना देना नहीं है। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने वहां की सरकार को निर्देश दिया था कि वह या तो नया कानून बनाए या मौजूदा कानून मे संशोधन करे ताकि हर तरह की यौन अभिरुचि रखने वाले लोग बराबरी के अधिकारों का सुख उठा सकें। भारत मे एलजीबीटी के सिविल अधिकारों के बारे में सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग कहते हैं कि फैसले के बाद समलैंगिक लोग साथी तो बन सकते हैं लेकिन इनके जीवनसाथी बनने में कानून आड़े आएगा। हर जगह परिवार की कानूनी परिभाषा का पेंच फंसेगा। उन्हें जीवनसाथी का दर्जा मिले बगैर साथी की संपत्ति में उत्तराधिकार का हक नहीं मिल सकता।
इन देशों में समलैंगिकों की शादी वैध
विश्व के कई ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता प्राप्त है। 2015 में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि समलैंगिकों को शादी का संवैधानिक अधिकार है। दिसंबर 2017 में ऑस्ट्रेलिया दुनिया का 26वां देश बना, जिसने सेम सेक्स मैरिज को कानूनी बनाया है। जर्मनी में भी पिछले साल कानून बदलकर समलैंगिकता को कानूनी बनाया गया है। माल्टा, बरमुडा और फिनलैंड में भी समलैंगिक आपस में शादी कर सकते हैं। आस्ट्रिया की हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि समलैंगिक 2019 से शादी कर सकते हैं।