Coronavirus Tips: कोरोना महामारी के कठिन दौर में खुशहाल जीवन के 'तीन' सूत्र, यहां जानें कैसे इन्हें अपनाएं
Coronavirus Tips हार्वर्ड केनेडी स्कूल के प्रोफेसर तथा हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के सीनियर फेलो अर्थर सी. ब्रुक्स बता रहे हैं खुशहाल जीवन के तीन समीकरण।
नई दिल्ली, जेएनएन। Coronavirus Tips: महामारी में आप घर में बंद हैं। भविष्य और रोजगार की चिंता है। अनैच्छिक शांति है। फिर भी कोई खुश रहने को कहे तो थोड़ा अटपटा ही लगेगा। लेकिन खुशी के बिना जीवन भी तो नहीं है। इसलिए ऐसे कठिन समय में भी हार्वर्ड केनेडी स्कूल के प्रोफेसर तथा हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के सीनियर फेलो अर्थर सी. ब्रुक्स बता रहे हैं, खुशहाल जीवन के तीन समीकरण।
समीकरण 1: व्यक्तिपरक खुशहाली: जीन्स+ परिस्थितियां+ आदतें
व्यक्तिपरक खुशहाली में ‘निर्दिष्ट बिंदु’ तय करने में आनुवांशिक घटक का बड़ा योगदान होता है। साइकोलॉजिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित आलेख के मुताबिक, एक जुड़वां जिसे अलग रखा गया और बड़े होने पर उसकी खुशहाली में आनुवंशिक घटक का अनुमानित हिस्सा 44 से 52 फीसद के बीच था। वहीं परिस्थितियां- अच्छी या बुरी हम सभी के जीवन में आती हैं। द अटलांटिक के अनुसार यह आपकी खुशहाली में 10 से 40 फीसद भूमिका निभाती हैं। यदि परिस्थितियां बड़ी भूमिका भी निभाए तो अधिकांश विद्वान मानते हैं कि इससे कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि परिस्थितियों का प्रभाव बहुत लंबे समय तक नहीं रहता। यदि हम सोचते हैं कि एक बड़ी पदोन्नति से हम सदा खुश रहेंगे या कुछ खराब होने से हम सदा के लिए टूट जाएंगे तो यह सही नहीं है। यही कारण है कि खुशी पैसों से नहीं खरीदी जाती। इसलिए ऐसे भाग्यशाली जो बीमारी से बचे रहकर कोविड-19 के संकट से दुखी हैं, उनके लिए भी यह अतीत की बात हो जाएगी।
समीकरण 2: आदतें: आस्था+ परिवार+ दोस्त+ कार्य
टिकाऊ खुशी मानवीय संबंध, उत्पादक कार्य तथा जीवन के पारलौकिक तत्वों से मिलती है। शोध से यह भी स्पष्ट है कि आस्था तथा पंथ निरपेक्ष जीवन दर्शन भी यह खुशी प्रदान कर सकता है। शोध का सारांश है कि खुशी प्रेम है। जिनका परिवार और दोस्तों के साथ प्यार भरे रिश्ते होते हैं, वे कामयाब होते हैं। और अब बात ‘कार्य’ की। जीवन में उद्देश्य की भावना गढ़ने की रचनात्मक कोशिश को केंद्रीयकृत करें। नौकरी अच्छी या बुरी हो सकती है, लेकिन अधिकांश शोधकर्ता मानते हैं कि बेरोजगारी दुख के सिवाय कुछ नहीं देती। द अटलांटिक के अनुसार काम का प्रकार उसे अर्थपूर्ण नहीं बनाता बल्कि उसे अर्थपूर्ण बनाता है आपकी यह सोच कि आप सफलता अर्जित कर रहे हैं और दूसरों की सेवा कर रहे हैं। समीकरण 2 का इस महामारी में आइसोलेशन के समय खास महत्व है। खुद से सवाल करें कि क्या मुझे कुछ चीजों को बदलने की जररूरत है? क्या मैं इस समय कुछ आदतों को बदल सकता हूं? एक बार फिर समझिए कि पैसे से खुशी नहीं खरीदी जाती। उस वक्त को याद कीजिए, जब आपके वेतन में कुछ खास वृद्धि हुई थी। आपको सबसे बड़ी संतुष्टि कब मिली, जब आपको पता लगा कि वेतन बढ़ाया जा रहा है? या, जिस दिन बैंक खाते में पैसे आए? और फिर छह महीने बाद आपकी संतुष्टि कितनी रही?
समीकरण 3: संतुष्टि: आपके पास क्या है/आप क्या चाहते है
अपने लिए जरूरतें पैदा नहीं करें। यह सिर्फ आध्यमिकता नहीं है बल्कि जीवन गहन व्यावहारिक फॉर्मूला है। बहुत से लोग ऐसे हैं, जो अपने पास की चीजें बढ़ा कर उच्च स्तर की संतुष्टि पाने की कोशिश करते हैं। संतुष्टि का रहस्य समीकरण 3 में भाजक पर ध्यान देने में है। अपनी इच्छाओं को मैनेज करें। आपके पास जो है, यथा- पैसा, ताकत, प्रतिष्ठा या ख्याति की गणना न करें और पता करें कि उन्हें कैसे बढ़ाया जाए। इसकी सूची बनाएं कि आपको जीवन में क्या त्यागने की जरूरत है। आइसोलेशन के समय में समीकरण 3 के भाजक को घटाना शायद अन्य दिनों से ज्यादा आसान हो, क्योंकि आपकी शारीरिक क्षमताओं के साथ आपकी अपेक्षाएं भी कम हो गई हैं। क्या आप ऐसा कुछ सप्ताह या महीनों के बाद भी कर पाएंगे, जब फिर से आप अपना सामान्य जीवन शुरू करेंगे? जीवन निर्माण में इन तीनों समीकरणों की व्यवस्था के बारे सोचें।
दलाई लामा कहते हैं कि टिकाऊ खुशी के लिए हमें यह सीखने की जरूरत है कि क्या चाहिए और क्या नहीं।
स्पैनिश कैथोलिक संत जोसेमारिया इस्क्रिवा ने कहा है- यह मत भूलें कि जिसकी जरूरतें जितनी कम उसके पास उतना ही ज्यादा है।