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सुप्रीम कोर्ट के जजों पर आरोप लगाने वाले तीन लोगों को तीन माह की सजा, जानिए क्या था मामला

कोरोना महामारी के कारण देश में लागू लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि इनकी सजा 16 सप्ताह बाद से प्रभावी होगी।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 06 May 2020 06:28 PM (IST)Updated: Wed, 06 May 2020 06:36 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट के जजों पर आरोप लगाने वाले तीन लोगों को तीन माह की सजा, जानिए क्या था मामला
सुप्रीम कोर्ट के जजों पर आरोप लगाने वाले तीन लोगों को तीन माह की सजा, जानिए क्या था मामला

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने अपने दो पीठासीन जजों के खिलाफ मिथ्यापूर्ण और अपमानजनक आरोप लगाने वाले तीन लोगों को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराते हुए उन्हें तीन तीन महीने की कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि यह एक तरह से न्यायपालिका को बंधक बनाने जैसा प्रयास था। शीर्ष अदालत ने 27 अप्रैल को महाराष्ट्र एवं गोवा इंडियन बार एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुर्ले, इंडियन बार एसोसिएशन के अध्यक्ष नीलेश ओझा और गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ह्यूमन राइट्स सेक्यूरिटी काउंसिल के राष्ट्रीय सचिव राशिद खान पठान को जजों के पर अपमानजनक आरोप लगाने की वजह से न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराया।

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जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने चार मई को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इन तीनों दोषियों की सजा की अवधि के सवाल पर सुनवाई की और कहा कि इन अवमाननाकर्ताओं की ओर से लेशमात्र भी पश्चाताप या किसी प्रकार की माफी मांगने का संकेत नहीं है।

पीठ ने कहा, नरमी के साथ नहीं छोड़ा जा सकता

पीठ ने चार मई को अपने आदेश में इन्हें सजा सुनाते हुए कहा, 'इस कोर्ट के जजों के खिलाफ लगाए गए मिथ्यापूर्ण और अपमानजनक आरोपों और किसी भी अवमाननाकर्ता द्वारा किसी प्रकार का पाश्चाताप न व्यक्त करने के तथ्य के मद्देनजर, हमारी सुविचारित राय है कि उन्हें नरमी के साथ नहीं छोड़ा जा सकता।'

पीठ ने अपने आदेश में इस बात का भी जिक्र किया कि इन तीनों के वकील सजा की अवधि के मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहते थे। पीठ ने कहा कि हम, इसलिए, तीनों अवमाननाकर्ताओं विजय कुर्ले, नीलेश ओझा और राशिद खान पठान को तीन तीन महीने की साधारण कैद और दो-दो हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाते हैं।

16 सप्ताह बाद से प्रभावी होगी सजा

हालांकि, कोरोना महामारी के कारण देश में लागू लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि इनकी सजा 16 सप्ताह बाद से प्रभावी होगी। इन तीनों को अपनी सजा भुगतने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल के समक्ष समर्पण करना चाहिए। समर्पण न करने पर इनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किए जाएंगे।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 27 मार्च को अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा को न्यायालय की अवमानना और न्यायाधीशों को धमकाने का प्रयास करने पर तीन महीने कैद की सजा सुनाई थी। हालांकि मैथ्यूज द्वारा बिना शर्त क्षमा याचना करने पर सजा निलंबित कर दी गई थी। शीर्ष अदालत ने उसी दिन कुर्ले, ओझा और पठान को भी सुप्रीम कोर्ट के दो पीठासीन जजों पर अपमानजनक आरोप लगाने के लिए अवमानना नोटिस जारी किए थे।

शीर्ष अदालत ने चार मई के अपने आदेश में कहा कि अवमाननाकर्ताओं ने उन जजों को उकसाने के इरादे से शिकायतें की थीं जिन्हें नेदुम्परा की सजा की अवधि के सवाल पर सुनवाई करनी थी ताकि नेदुम्परा के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो। इससे स्पष्ट है कि यह न्यायपालिका को एक तरह से बंधक बनाने का पुख्ता प्रयास है।

जस्टिस दीपक गुप्ता 6 मई को हो रहे सेवानिवृत्त

शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई से एक जज के हटने के लिए ओझा द्वारा दायर आवेदन अस्वीकार कर दिया। ओझा ने अपने आवेदन में कहा था कि पीठ इस मामले पर फैसला करने की जल्दी में है। पीठ ने कहा कि हम लोगों के बीच से एक (जस्टिस दीपक गुप्ता) छह मई 2020 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, इसलिए इस मामले की सुनवाई करनी थी और हमें इससे अलग होने की कोई वजह नजर नहीं आती। तद्नुसार यह आवेदन अस्वीकार किया जाता है।

पीठ ने अपने 27 अप्रैल के फैसले में कहा था कि नागरिक फैसलों की आलोचना कर सकते हैं लेकिन किसी को भी जजों की मंशा या उनकी सदाशयता पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि जजों को डराने धमकाने के प्रयासों से सख्ती से निबटना होगा। 


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