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पचास साल पानी को तरसा मध्य प्रदेश का यह गांव, अब बूंदभर भी नहीं करता बेकार

पानी की बात करते हुए गांव के बुजुर्ग भोलाराम की आंख में आंसू आ जाते हैं। वह कहते हैं कि एक साल पहले तक पूरा दिन पानी के इंतजाम में निकल जाता था।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 07:38 PM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 06:22 AM (IST)
पचास साल पानी को तरसा मध्य प्रदेश का यह गांव, अब बूंदभर भी नहीं करता बेकार
पचास साल पानी को तरसा मध्य प्रदेश का यह गांव, अब बूंदभर भी नहीं करता बेकार

मनोज तिवारी, भोपाल, [जागरण स्पेशल]। पानी संरक्षण के लिए संकल्पित होना मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के सतपिपलिया गांव के लोगों से सीखा जा सकता है। करीब 50 साल की प्यास एक साल पहले बुझी तो लोगों ने बूंदभर पानी भी बेकार बहाने से तौबा कर ली। एक साल पहले यहां के लोग डेढ़-दो किमी दूर से बैलगाड़ी व साइकिल से पानी लाने को मजबूर थे। एक बाल्टी पानी के लिए सूखे कुओं में उतरकर रतजगा करते थे। अब 396 घरों में नलजल योजना से पानी पहुंच रहा है, लेकिन मजाल है कि बूंदभर पानी भी बर्बाद हो जाए। यदि गलती से कोई ऐसा करता है, तो पूरा गांव समझाइश देने पहुंच जाता है।

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अब भू-जल स्तर बढ़ाने के प्रयास

ग्राम पंचायत ने गांव से गुजरने वाले नाले पर स्टॉप डैम बना दिया है और अब हर घर सोख्ता गढ्डे खोदवाने की तैयारी में जुटा है, ताकि भू-जल स्तर बढ़ाकर गांव की इस समस्या को हमेशा के लिए खत्म किया जा सके। इस योजना में कोई बाधा खड़ी न हो इसलिए गांव के प्रत्येक व्यक्ति समय पर जलकर देता है। पिछले एक साल में एक भी ग्रामीण डिफाल्टर नहीं हुआ है। 

काला पत्थर बना पानी में बाधा

गांव की जमीन में 10 से 50 फीट की गहराई से काला पत्थर शुरू होता है, जो पानी को जमीन में रिसने और बाहर निकलने नहीं देता। 2100 की आबादी वाले इस गांव में 450 कुएं और करीब 150 ट्यूबवेल खोदे गए, फिर भी गांव प्यासा रहा। फिर ग्रामीणों ने देवताओं को मनाया, तकनीक के जरिए भूगर्भ में पानी का पता लगाया, तब कहीं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (PHE) विभाग ने 1375 मीटर खोदाई कर पानी का इंतजाम किया। सवा लाख लीटर की टंकी बनाई और करीब छह हजार मीटर पाइप लाइन बिछाकर घर-घर पानी पहुंचाया।

जेवरों की तरह होती थी पानी चोरी

पानी की बात करते हुए गांव के बुजुर्ग भोलाराम की आंख में आंसू आ जाते हैं। वह कहते हैं कि एक साल पहले तक पूरा दिन पानी के इंतजाम में निकल जाता था। जहां पानी होने की सूचना मिलती, पूरा गांव दौड़ पड़ता, जिसके पास जो साधन थे, उससे पानी लाए। सोने और चांदी की तरह पानी की चोरी करते थे। बताते हैं कि हमने बारिश में भरी खंतियों, 50 से 70 फीट गहरे कुओं में कटोरियों से पानी भरा है। इसलिए हम पानी की कीमत समझते हैं। मनोहर सिंह बताते हैं कि दिसंबर से जुलाई तक तो पानी के लिए मोहताज हो जाते थे। एक साल से पर्याप्त पानी है। अब पानी की बचत के तरीकों पर काम कर रहे हैं। 

दस साल चक्कर लगाए

पानी के लिए ग्रामीणों ने 10 साल मंत्रियों के चक्कर लगाए। पीएचई के अफसरों से मिले, तो उन्होंने नलजल योजना की लागत की तीन फीसदी राशि जमा करने की शर्त रख दी। पीएचई सीहोर के कार्यपालन यंत्री एमसी अहिरवार बताते हैं कि ग्रामीणों ने ढाई लाख रुपये इकठ्ठे कर लिए। तभी मुख्यमंत्री नलजल योजना आ गई और गांव को प्राथमिकता में लेकर योजना शुरू कर दी।

सतपिपलिया सरपंच मंगलेश वर्मा ने बताया कि गांव में काकड़खेड़ा तालाब की नहर और आ जाए, तो सिंचाई की समस्या भी हल हो जाए। पानी सहेजने के लिए स्टाप डेम बनाया है। पांच हजार से ज्यादा पौधे लगाए हैं और अब भू-जल स्तर बढ़ाने को सोख्ता गढ्डे खुदवाने की कोशिश कर रहे हैं।


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