कश्मीर का यह गांव ‘वुड पेंसिल के खांचे’ से लिख रहा तकदीर, घर-घर हैं इकाइयां, दो हजार को रोजगार
देश के पेंसिल उद्योग को 90 फीसद खांचा सप्लाई करने वाले ऊखू को सरकार आधिकारिक रूप से भी अब ‘पेंसिल वाला गांव’ का टैग देने जा रही है। ऊखू को औद्योगिक क्षेत्र घोषित करने की तैयारी है। अब खांचों में ग्रेफाइट की बत्ती फिट करने वाली मशीनें भी यहां लगेंगी।
रजिया नूर, श्रीनगर। कभी आतंक की नर्सरी कहे जाने वाले दक्षिण कश्मीर के पुलवामा का गांव ऊखू। अब यहां हिंसा नहीं, अमन का बोलबाला है। वुड पेंसिल के लिए खांचे तैयार करने वाली 12 बड़ी इकाइयां गांव में संचालित हो रही हैं। घरों में भी अनेक छोटी इकाइयां हैं। इनसे करीब दो हजार लोगों को रोजगार मिल रहा है। ऊखू गांव की चार हजार की आबादी में से अधिकांश के लिए तो अब पेंसिल ही जीवन का आधार है। देश के पेंसिल उद्योग को 90 फीसद खांचा सप्लाई करने वाले ऊखू को सरकार आधिकारिक रूप से भी अब ‘पेंसिल वाला गांव’ का टैग देने जा रही है। ऊखू को औद्योगिक क्षेत्र घोषित करने की तैयारी है। अब खांचों में ग्रेफाइट की बत्ती फिट करने वाली मशीनें भी यहां लगेंगी।
श्रीनगर से 26 किलोमीटर दूर स्थित ऊखू गांव पॉपलर के वृक्षों (चिनार की एक किस्म) से घिरा हुआ है। इस लकड़ी में खास तरह की नमी होती है। यही वजह है कि देश-विदेश की नामी कंपनियां यहां की लकड़ी मंगवाती थीं। ऐसे में ग्रामीणों ने धीरे-धीरे इस लकड़ी को अपनी तकदीर बदलने का जरिया बना लिया। प्रशासन और पेंसिल कंपनियों के सहयोग से इन्होंने पेंसिल के खांचे (पेंसिल का ऊपरी भाग जिसमें ग्रेफाइट की बत्ती डली होती है) गांव में ही बनाने शुरू कर दिए। एक-एक कर इकाइयां बढ़ती चली गईं।
पहली इकाई लगाने वाले मंजूर अहमद अलाई कहते हैं कि पेंसिल बनाने के लिए पहले देवदार की लकड़ी इस्तेमाल होती थी। देश के पेंसिल उत्पादक पहले जर्मनी और चीन से इसे मंगवाते थे। लेकिन उन्हें जब यहां की देवदार की लकड़ी की खूबी पता चली तो 1960 के बाद ऊखू से लकड़ी की सप्लाई होने लगी। सरकार ने इस पर ध्यान दिया तो इन कंपनियों को करीब 70 फीसद लकड़ी की आर्पूित इसी गांव से होने लगी। लेकिन बाद में देवदार के पेड़ काटने पर रोक लग गई तो ग्रामीणों ने पॉपलर लगाने आरंभ कर दिए।
मंजूर अहमद बताते हैं, सभी ने सरकार के सामने बात रखी कि क्यों न पेंसिल भी यहीं तैयार की जाए। मशीनों की दरकार थी। कुछ कंपनियों को विश्वास में लिया गया। वह हमारी मदद करने को तैयार हो गईं। लेकिन केवल खांचा बनाने वाली मशीनें लगाई गईं। उसके बाद लोग जुड़ते गए और घर-घर में ऐसी छोटी मशीने लग गईं। इस समय पुलवामा जिले में 17 पंजीकृत इकाइयां हैं। इनमें से ऊखू में 12 और लासीपोरा में पांच हैं।
ऊखू गांव स्थित एक इकाई में कार्यरत श्रमिक। जागरण
गांव के मोहम्मद अनवर भट बताते हैं कि नटराज वह पहली पेंसिल कंपनी थी, जिसने हमारे गांव से कच्चा माल खरीदना शुरू किया था। इसके बाद अप्सरा और हिंदुस्तान पेंसिल कंपनी को हमने माल सप्लाई करना शुरू कर दिया। भट ने कहा कि सराकर मशीनें लगाने पर 30 प्रतिशत की सब्सिडी देती है और यूनिटों को चलाने के लिए जेनरेटर मुफ्त उपलब्ध कराती है। यूनिट में काम करने वाली महिलाएं अधिक हैं। रोजाना चार से पांच घंटा काम करती हैं। महीने में छह-सात हजार रुपये तक कमा लेती हैं।
पुलवामा के डीसी राघव लंगर ने बताया कि सरकार ऊखू को औद्योगिक क्षेत्र घोषित करने के लिए रूपरेखा तय कर रही है। हम कोशिश कर रहे हैं कि पेंसिल के खांचों में ग्रेफाइट बत्ती लगाने वाली मशीनें भी यूनिटों में लगवा सकें, जिससे यहां खांचा ही नहीं, पूरी पेंंसिल का उत्पादन हो सके।