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हाथ-पैर से लाचार, गरीबों का मसीहा बना फौजी का यह जांबाज डॉक्टर बेटा, कार में चलाते हैं डिस्पेंसरी

डॉ. विक्रम सिंह ने बैसाखी के सहारे MBBS की पढ़ाई की अब वे चल फिर नहीं सकते। लेकिन चिकित्सा को देश सेवा का माध्यम और गरीबों की सेवा को अपना धर्म मानते हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 11 Aug 2019 09:39 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 09:39 PM (IST)
हाथ-पैर से लाचार, गरीबों का मसीहा बना फौजी का यह जांबाज डॉक्टर बेटा, कार में चलाते हैं डिस्पेंसरी
हाथ-पैर से लाचार, गरीबों का मसीहा बना फौजी का यह जांबाज डॉक्टर बेटा, कार में चलाते हैं डिस्पेंसरी

ग्वालियर, अजय उपाध्याय। देश की सेवा के लिए जरूरी नहीं है कि आप सीमा पर ही जाएं। आप जहां हैं और जिस स्थिति में हैं, वहां पर भी आप यह काम कर सकते हैं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर निवासी डॉ. विक्रम सिंह की प्रेरक कहानी सामने है। बावजूद इसके कि खुद हाथ-पैर से लाचार हैं, लेकिन चिकित्सा को देश सेवा का माध्यम और गरीबों की सेवा को अपना धर्म मानते हैं।

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डॉ. विक्रम बीते छह साल से ग्वालियर के सिविल अस्पताल की दो डिस्पेंसरियों को बखूब संभाल रहे हैं। इसके अलावा, असहाय और बीमार व्यक्तियों की सेवा को हर समय तत्पर रहते हैं। डॉ. विक्रम सिंह के पिता केके सिंह आर्मी में कैप्टन थे और वही उनके प्रेरणास्त्रोत भी हैं।

दोनों पैरों ने 10वीं की पढ़ाई के दौरान ही काम करना बंद कर दिया था। बैसाखी के सहारे MBBS की पढ़ाई की। बाद में हाथों ने भी साथ छोड़ दिया। अब वे चल फिर नहीं सकते, लेकिन सेवा का जज्बा ऐसा, मानो कोई सैनिक मोर्चे पर तैनात हो।

36 वर्षीय डॉ. विक्रम की कार ही उनकी चलती-फिरती डिस्पेंसरी है। कार को देखते ही मरीज उन्हें घेर लेते हैं और वह कार में बैठे-बैठे मरीजों का इलाज करते हैं। इसके लिए कोई फीस नहीं लेते। जरूरत पड़ने पर मरीज की दवा का खर्च भी उठाते हैं।

डॉ. विक्रम सुबह से लेकर शाम तक हेमसिंह की परेड स्थित सिविल हॉस्पिटल के बाहर ही गाड़ी में बैठे-बैठे मरीजों का इलाज करते हैं। शाम के बाद वह घर पर या किसी बस्ती वगैरह में जरूरतमंद मरीजों का निशुल्क इलाज करते हैं।

यही मेरी देश सेवा है
डॉ. विक्रम सिंह ने हमसे कहा, इरादे पक्के होने चाहिए, देश की सेवा कहीं पर भी और किसी भी हाल में की जा सकती है। जब मेरे शरीर के एक हिस्से ने काम करना बंद कर दिया तो मेरे दिल और दिमाग ने कुछ अधिक काम करना शुरू कर दिया। मुझे जब कोई बीमार दिखता है तो उसे जल्द ठीक करने का मन करता है। मैं किसी को लाचार और बेबस नहीं देख सकता। इसलिए हर जगह इलाज करना शुरू कर देता हूं। जो मदद मुझसे हो सकती है, वह करता हूं। यही मेरी देश सेवा है।

मां का दर्द..
बेटा यानी डॉ. विक्रम जब दर्द से कराहते हैं तो मां का दिल तड़प उठता है। विक्रम की मां स्कूल टीचर मधु कुशवाह कहती हैं, मेरा बेटा बचपन से ऐसा नहीं था। वह चलता फिरता दौड़ता था। जब 15 साल का हुआ तो उसके पैरों में दर्द होना शुरू हो गया और उसके एक पैर ने काम करना बंद कर दिया। तब बैसाखी का सहारा लेने लगा।

जब उसका सिलेक्शन मेडिकल एंट्रेंस (PMT) में हुआ तो लगा अब सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन आज उसकी यह हालत देखकर मेरा दिल फूट-फूट कर रोता है। उसे आर्थराइटिस की बीमारी बता हिपज्वाइंट रिप्लेसमेंट का सुझाव दिया गया। 2007 में ऑपरेशन हुआ तो सबकुछ ठीक हो गया। 2011 में उसकी शादी बनारस की रहने वाली ऋतु सिंह के साथ बड़ी धूमधाम से की गई।

शादी के बाद फिर उसके पैरों में तकलीफ हुई और फिर बैसाखी पर आ गया। तीन साल पहले उसके दोनों पैर रह गए और हाथों ने भी लगभग काम करना बंद कर दिया है। पता चला कि जो इम्प्लांट डाला गया था उसकी क्वालिटी खराब थी।

मसीहा मानते हैं मरीज..
डॉक्टर साहब हर जगह उपलब्ध 
मरीज रामसिंह कुशवाह कहते हैं कि डॉक्टर साहब कहीं पर मरीज देख लेते हैं। सड़क चलते भी उन्हें इशारे से रोको तो रुक जाते हैं। उन्होंने कभी किसी बीमार को नहीं लौटाया। इतनी तकलीफ उठाने के बाद भी वह मरीजों का इलाज कर रहे हैं। मैंने कई बार सड़क पर गाड़ी रोककर इलाज लिया है। पर उन्होंने कभी मना नहीं किया।

अच्छे लोगों को ईश्र्वर इतना कष्ट क्यों देते हैं 
मरीज सियारानी देवी कहती हैं कि डॉक्टर साहब गरीबों के भगवान हैं, जो दवा नहीं खरीद सकते उन्हें वह दवा तक उपलब्ध करवा देते हैं। मैं कई बार बच्चों के लिए दवा लेकर गई, राह चलते उन्होंने बच्चे को देखकर दवा तक दी। अच्छे लोगों को ईश्र्वर क्यों कष्ट देता है।

देशभक्ति और जन सेवा का भाव रखते डॉ विक्रम
ग्वालियर सीएमएचओ डॉ. मृदुल सक्सेना कहते हैं कि डॉ. विक्रम दिव्यांग नहीं बल्कि दिव्यांग वह लोग हैं, जिनके पास हाथ पैर सब कुछ हैं और फिर भी काम में मक्कारी करते हैं। डॉ. विक्रम में देशभक्ति और जन सेवा का भाव दिखाई देता है। दो अस्पतालों की जिम्मेदारी वह अकेले संभाल रहे हैं और बीमारी से भी लड़ रहे हैं। वही सच्चे सिपाही हैं। हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

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