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बड़ा हाथ मारने गए चोरों के गले पड़ा चोरी का सामान और कर्ज में डूब गए तीन दोस्त

जितनी बड़ी चोरी की तैयारी की जा रही है, उतने ही ज्यादा होमवर्क के बिना लेने के देने पड़ सकते हैं।ऐसा नहीं किया तो चोरी का सामान चोरों के गले की फांस बन सकता है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 11:03 AM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 11:54 AM (IST)
बड़ा हाथ मारने गए चोरों के गले पड़ा चोरी का सामान और कर्ज में डूब गए तीन दोस्त
बड़ा हाथ मारने गए चोरों के गले पड़ा चोरी का सामान और कर्ज में डूब गए तीन दोस्त

आगरा, [जागरण स्पेशल]। चोरी भी एक कला है। घबराएं नहीं, इन शब्दों का बिल्कुल भी यह मतलब नहीं है कि हम किसी को चोरी के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बल्कि हम यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि चोरी करने से पहले बहुत ज्यादा होमवर्क की जरूरत होती है। सोना-चांदी आदि जेवरों की चोरी करने वाला पहले से ही ऐसे ज्वैलर से बात करके तैयार रखते हैं, जो उनकी चोरी के सामान को खरीद ले। ऐसे ही घरेलू सामान और मोटरसाइकिल आदि की चोरी करने वाले चोर कबाड़ खरीदने वाले से बात करके रखते हैं, ताकि तेजी से चोरी के माल को ठिकाने लगाया जा सके। यानि जितनी बड़ी चोरी की तैयारी की जा रही है, उतने ही ज्यादा होमवर्क के बिना लेने के देने पड़ सकते हैं। यह बात शायद आगरा जिले में कासगंज के तीन युवा चोरों को अब समझ आ गई होगी।

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तीन दोस्तों की दास्तां
राहुल सिंह की उम्र अभी सिर्फ 23 साल है और वह कासगंज में अमापुर का निवासी है। उसके दो दोस्त हैं, जिनका नाम विपिन सिंह और अनेकपाल सिंह हैं। विपिन की उम्र 24 और अनेकपाल 25 साल का है। राहुल सिंह उत्तर प्रदेश के ही गाजियाबाद में एक कॉन्ट्रेक्टर के पास काम कर चुका है। यहां वह अर्थमूवर (जेसीबी) ड्राइवर था। चोरी की यह पूरी स्क्रिप्ट राहुल सिंह के ही दिमाग की उपज थी।

पहली चोरी और धरे गए तीनों दोस्त
तीनों दोस्तों की यह पहली चोरी थी। आज की पीढ़ी धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ने में भरोसा नहीं रखती, बल्कि उसे तेजी से ऊपर पहुंचना है। शायद ऐसा ही कुछ इन तीन नए-नवेले चोरों के साथ भी होगा। इन तीनों ने पहली बार में भी लंबा हाथ मारने की कोशिश की। तीनों ने 30 लाख रुपये कीमत की अर्थमूवर (JCB) चुरा डाली। इस वाहन का वजन ही 7450 किलो है। जब इन तीनों ने अर्थमूवर पर हाथ मारा तो उन्हें लग रहा होगा कि उन्होंने पहली ही बार में बड़ा हाथ मार लिया है। जाहिर है इन तीनों की खुशी का भी ठिकाना न रहा होगा।

...और खुशी हो गई फुर्र
कहते हैं हाथी खरीदना तो आसान होता है, लेकिन उसे पालना मुश्किल है। इन तीन नए-नवेले चोरों के लिए यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठी। उनके लिए अर्थमूवर (JCB) को चुराना जितना आसान था, उसे सड़क पर चलाना उतना ही मुश्किल था। यह इसलिए क्योंकि 30 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार के आसपास की स्पीड वाले इस वाहन का फ्यूल टैंक 128 लीटर का है और बहुत ही जल्दी खत्म भी हो जाता है। तेजी से डीजल पीने वाले इस वाहन को चलाए रखने के लिए इन तीनों को कर्ज तक लेना पड़ा। इस अर्थमूवर (JCB) को चुराने के बाद तीनों कर्ज के बोझ में दब गए और इनकी पहली चोरी की खुशी फुर्र हो गई।

2 दिन तक नॉनस्टॉप की ड्राइविंग
अर्थमूवर (JCB) की स्पीड भी ऊबाऊ होती है। चोरी करने के बाद तीनों दोस्त दो दिन तक लगातार इस अर्थमूवर (JCB) को ड्राइव करते रहे। वे 200 किमी की दूरी तय करके अपने शहर कासगंज पहुंचे। अब इतना बड़ा हाथ मारा है और उसके चक्कर में भारी कर्जा भी हो गया तो तीनों दोस्तों ने अपनी इस चोरी को भुनाने की कोशिश की। जिन लोगों से डीजल के लिए कर्ज लिया था, वे भी तकाजा करने लगे थे। ऐसे में उन्हें जल्द से जल्द अर्थमूवर (JCB) से पैसा कमाना था या उसे बेचकर अपना कर्ज लौटाना था।

ऐसे चली पैसा कमाने की मुहिम
कर्ज तो चुकाना ही था। अब तीनों दोस्तों ने इस अर्थमूवर (JCB) को किराए पर देने की रणनीति पर काम करना शुरू किया। तीनों स्थानीय कंस्ट्रक्शन साइट पर बड़े कॉन्ट्रेक्टरों से मिले, ताकि वे इस भारी-भरकम वाहन को किराए पर दे सकें। लेकिन यहां भी उन्हें सफलता नहीं मिली, क्योंकि उन्हें जो किराया मिल रहा था वह तो अर्थमूवर (JCB) चलाने के लिए डीजल पर ही खर्च हो जाता। अर्थमूवर (JCB) को किराए पर लगाकर भी तीनों दोस्तों का न तो कर्ज खत्म होता न ही उन्हें कुछ पैसे बच रहे थे।

ऐसे आए पकड़ में
जब अर्थमूवर (JCB) को किराए पर देने की मुहिम कारगर साबित नहीं हुई तो तीनों दोस्तों ने इस भारी-भरकम वाहन से पीछा छुड़ाने का मन बना लिया। अब तीनों ने इसे बेचने की ठान ली। 30 लाख मूल्य के इस भारी-भरकम वाहन के लिए ग्राहक ढूंढना भी मुश्किल था। ऐसे में तीनों दोस्तों ने इसे सिर्फ 7 लाख रुपये में बेचने की कोशिश की। तीनों की यही कोशिश उनके लिए भारी पड़ गई। यह अर्थमूवर (JCB) टॉप मॉडल का है और इसे सिर्फ 7 लाख रुपये में बेचने की बात ने सभी के कान खड़े कर दिए। बस फिर क्या था? बात पुलिस के कानों तक भी पहुंच गई। अमरपुर के एसएचओ मुकेश सोलंकी ने बताया कि हमने इन तीनों को हिरासत में लेकर पूछताछ की। उन्होंने बताया कि तीनों कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे और समझ नहीं पा रहे थे कि आगे क्या करें।


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