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हिंदी को लेकर काफी पुराना है विवाद, वर्ष 1965 में हुई हिंसक झड़पों में गई थी 80 लोगों की जान

हिंदी से दक्षिण राज्यों का विवाद नया नहीं है। जब भी हिंदी को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की कोशिश होती है तो विरोध की आग भड़क जाती है। आइये जाने हिंदी के विरोध की पूरी कहानी

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 16 Jun 2019 02:06 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jun 2019 02:16 PM (IST)
हिंदी को लेकर काफी पुराना है विवाद, वर्ष 1965 में हुई हिंसक झड़पों में गई थी 80 लोगों की जान
हिंदी को लेकर काफी पुराना है विवाद, वर्ष 1965 में हुई हिंसक झड़पों में गई थी 80 लोगों की जान

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। हिंदी से दक्षिण राज्यों खासकर तमिलनाडु का विवाद बहुत पुराना रहा है। जब भी संस्कृत या हिंदी को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की कोशिश की जाती है तो वहां विरोध की आग भड़क जाती है। यही वजह है कि दक्षिण के राज्यों के दबाव में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में शामिल त्रिभाषा फॉर्मूले को खत्म कर दिया गया है। आइये जानते हैं दक्षिण भारत में हिंदी के विरोध का पूरा इतिहास....

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...यहां से हुई शुरुआत
सन 1928 में मोतीलाल नेहरू ने हिंदी को भारत में रकारी कामकाज की भाषा बनाने का प्रस्ताव खा तो तमिल नेताओं ने विरोध किया। 10 साल बाद तमिल नेता सी राजगोपालाचारी ने हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव दिया तो फिर तमिल नेता इसके विरोध में खड़े हो गए। विरोध ने हिंसक झड़पों का स्वरूप ले लिया और इसमें दो लोग मारे गए।

जिंदा जला दिए गए थे आठ लोग
1965 में दूसरी बार जब हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की कोशिश की गई तो एक बार फिर से गैर हिंदी भाषी राज्यों में पारा चढ़ गया। सीएन अन्नादुरई के नेतृत्व में 25 जनवरी को राज्य भर में हजारों प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए, लेकिन मदुरई में विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया। स्थानीय कांग्रेस दफ्तर के बाहर एक हिंसक झड़प में आठ लोगों को जिंदा जला दिया गया।

70 लोगों ने गंवाई थी जान
यही कारण है कि 25 जनवरी तारीख को बलिदान दिवस के नाम से जाना जाता है। ये विरोध प्रदर्शन और हिंसक झड़पें तकरीबन दो हफ्ते तक चलीं और आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 70 लोगों की जानें गईं। यहां तक कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी रॉय भी हिंदी थोपे जाने के खिलाफ थे। विरोध करने वालों में दक्षिण के कांग्रेस शासित राज्य भी थे।

क्या है त्रिभाषा फॉर्मूला
त्रिभाषा के तहत स्कूलों में छात्रों को तीन भाषाओं की शिक्षा दी जानी थी। हिंदी भाषी राज्यों में छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी और एक आधुनिक भारतीय भाषा जैसे बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, असमिया, मराठी और पंजाबी जैसी भाषाएं पढ़नी थीं। गैर हिंदी भाषी राज्यों में मातृभाषा के अलावा, हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाई जानी थी।

ऐसे तैयार हुआ मसौदा
आजादी के बाद प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं या सिविल सेवा की परीक्षाओं में हिंदी को अहमियत देने का गैर-हिंदी भाषा वाले राज्यों में विरोध हो रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई जिसमें त्रिभाषा फार्मूले पर सबकी रजामंदी ली गई। इसके मसौदे को तैयार करने की शुरूआत 1960 में हुई। इसका जिक्र कोठारी कमीशन की रिपोर्ट में भी है जो 1966 में बनकर तैयार हुई थी।

इन देशों ने दी हैं हिंदी को तरजीह
हिंदी संयुक्त अरब अमीरात में मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक भाषा है। यह 42.5 करोड़ लोगों की पहली और 12 करोड़ की दूसरी भाषा है। इसका नाम फारसी शब्द ‘हिंद’ से पड़ा है, जिसका अर्थ है ‘सिंधु नदी की भूमि।’ भारत के अलावा, मॉरीशस, सूरीनाम, नेपाल, त्रिनिदाद और टोबैगो, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका सहित अन्य देशों में भी हिंदी बोली जाती है।  

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