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#MeToo:: कहीं आप भी तो...अगर ऐसा है तो विशाखा गाइडलाइंस को जरूर पढ़ें

देश की शीर्ष अदालत ने विशाखा गाइडलाइंस के लिए यौन प्रताड़ना को परिभाषित किया है और दंड के प्रावधान किए हैं। आइए जानते हैं क्या है विशाखा गाइडलाइंस।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Thu, 11 Oct 2018 01:20 PM (IST)Updated: Fri, 12 Oct 2018 08:45 AM (IST)
#MeToo:: कहीं आप भी तो...अगर ऐसा है तो विशाखा गाइडलाइंस को जरूर पढ़ें
#MeToo:: कहीं आप भी तो...अगर ऐसा है तो विशाखा गाइडलाइंस को जरूर पढ़ें

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]  । मीटू कैंपेन पर उपजे सवाल पर सरकार भले ही मौन हो, लेकिन समाज में एक यक्ष सवाल ये उठ रहा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्‍पीडन रोकने के व्यापक उपबंधों के के बावजूद आखिर यह बुराई क्‍यों जारी है। क्‍या आप जानतीं हैं कि कार्यस्‍थल पर महिलाओं के खिलाफ उत्‍पीड़न को लेकर एक कानून भी है। इसे विशाखा गाइडलाइंस के नाम से जाना जाता है। देश की शीर्ष अदालत ने विशाखा गाइडलाइंस के लिए यौन प्रताड़ना को परिभाषित किया है और दंड के प्रावधान किए हैं। आइए जानते हैं क्या है विशाखा गाइडलाइंस।

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दरअसल, बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने लंबे अरसे बाद अपनी चुप्‍पी तोड़ते हुए अभिनेता नाना पाटेकर पर शोषण का आरोप लगाया। इसके बाद तो कई महिलाओं इस अभियान का हिस्‍सा बन गई। इन महिलाओं ने अपने साथ हुए उत्‍पीड़न का खुलासा करना शुरू कर दिया। मीटू कैंपेन के तहत महिलाओं ने सोशल मीडिया पर खुलकर लिखना शुरू कर दिया। ऐसे मामलों में कई घटनाएं कार्यस्थल पर हुई हैं।

क्‍या है विशाखा गाइडलाइंस

  • इसके तहत हर संस्थान जिसमें दस से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, वहां कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति का होना अनिवार्य किया गया है।
  • इस समिति में 50 फीसद से ज्यादा महिलाएं होंगी। इस समिति  की अध्यक्ष भी कोई महिला होगी। समिति में यौन शोषण के मुद्दे पर काम कर रही किसी गैर-सरकारी संस्था की एक प्रतिनिधि को भी शामिल करना ज़रूरी होता है।
  • कार्यस्‍थल पर पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, महिला के शरीर या उसके रंग पर की गई कोई गंदी टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर महिला के शरीर को छूना शोषण का हिस्‍सा है।
  • इसके अलावा किसी महिला या उससे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंधों की अफवाह, पॉर्न फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना भी शोषण की श्रेणी में आएगा।
  •  महिला से शारीरिक लाभ के बदले उसको भविष्य में फायदे का वादा करना या गंदे इशारे, कोई गंदी बात ये सब भी शोषण का हिस्सा है।
  • यहां यौन शोषण का तात्‍पर्य केवल शारीरिक शोषण ही नहीं है। यदि कार्यस्‍थल पर किसी महिला के साथ भेदभाव भी किया जाता है तो यह भी शोषण के दायरे में आएगा।
  • अगर किसी महिला को लगता है कि संस्‍थान में उसका शोषण हो रहा है तो वह इसकी लिखित शिकायत समिति को कर सकती है। इस बाबत उसे संबंधित सभी दस्तावेज भी देने होंगे, जैसे मोबाइल संदेश, ईमेल आदि।
  • ध्‍यान रहे कि यह शिकायत तीन माह के भीतर देनी होती है। उसके बाद समिति 90 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करती है।
  • शिकायत के बाद जांच समिति दोनो पक्षों से पूछताछ कर सकती है। जांच के दौरान और उसके बाद भी शिकायतकर्ता की पहचान को गोपनीय रखा जाता है। यह समिति की जिम्मेदारी है।
  • गाइडलाइंस के तहत कोई भी कर्मचारी चाहे वो इंटर्न भी हो, वो भी शिकायत कर सकता है। उसके बाद अनुशानात्मक कार्रवाई की जा सकती है। 

भंवरी देवी की भगीरथी पहल

26 वर्ष पूर्व 1992 में जयपुर के निकट भटेरी गांव की एक महिला भंवरी देवी ने बाल विवाह विरोधी अभियान में हिस्सेदारी की बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। इस मामले में 'विशाखा' और अन्य महिला गुटों ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी और कामकाजी महिलाओं के हितों के लिए कानूनी प्रावधान बनाने की अपील की गई थी। याचिका के मद्देनजर साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिए ये दिशा-निर्देश जारी किए थे और सरकार से आवश्यक कानून बनाने के लिए कहा था। उन दिशा-निर्देशों को विशाखा के नाम से जाना गया और उन्हें विशाखा गाइडलाइंस कहा जाता है। 


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