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कहीं मूर्खों का झुंड तो कहीं यूथ वेलफेयर तो कहीं समीना ने अपने यहां लिखी स्‍वच्‍छता की नई कहानी

देश के कई शहर ऐसे हैं जिनको साफ करने का बीड़ा वहां के ही लोगोंं ने अपने कंधों पर उठाया। इनमें से ही कुछ ये हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 24 Aug 2020 12:30 PM (IST)Updated: Mon, 24 Aug 2020 12:30 PM (IST)
कहीं मूर्खों का झुंड तो कहीं यूथ वेलफेयर तो कहीं समीना ने अपने यहां लिखी स्‍वच्‍छता की नई कहानी
कहीं मूर्खों का झुंड तो कहीं यूथ वेलफेयर तो कहीं समीना ने अपने यहां लिखी स्‍वच्‍छता की नई कहानी

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। किसी ने उन्हें सनकी कही, किसी ने पागल करार दिया, लेकिन तमाम उपेक्षाओं के बावजूद हमारे-आपके बीच कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी धुन में रमे हैं। साफसफाई ही उनका ओढ़ना-बिछौना है। अपने संकल्पों से न वे अपने शहर को चमका रहे हैं बल्कि तमाम लोगों के लिए प्रेरणास्नोत बन रहे हैं। आइए, जानते हैं कुछ ऐसे ही स्वच्छता के आग्रहियों की कहानी:

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शहर की पहचान बनींं समीना जफर

जम्मू: मंदिरों के इस शहर के जानीपुर की गृहणी समीना जफर सबके लिए मिसाल बन गई हैं। 2017 में उन्होंने घर-घर से कचरा इकट्ठा करने का काम शुरू किया था। फेथ चेरिटेबल ट्रस्ट बनाया। इसमें 20 अनुभवी लोग जुड़ चुके हैं। इनकी मदद से समीना शहर के कई हिस्सों से 500 घरों से कचरा उठा रही हैं। इसमें नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल कचरे को अलग कर शेष से खाद बनाई जाती हैं। इसके लिए उन्होंने बेलीचराना में खाद बनाने की मशीन भी लगाई है। इस काम में वह 30 लोगों को रोजगार दे रही हैं। वह लोगों को रसोई घर के कचरे से खाद बनाने के बारे में जागरूक भी करती हैं। उनके काम को देख आइआइटी नगरोटा ने उन्हें कचरे से खाद बनाने का ठेका भी दिया था। जम्मू नगर निगम समेत विभिन्न संस्थाएं समीना को सम्मानित कर चुकी हैं।

‘मूर्खों का झुंड’ चमकाता है राजधानी

रायपुर: राजधानी में ‘मूर्खो का एक समूह’ सफाई के काम में शिद्दत से जुटा है। युवाओं के इस समूह का नाम ही बंच ऑफ फूल्स है। शुरुआत में जब समूह के युवा हाथों में झाड़ू लेकर निकलते थे तो लोग उन्हें पढ़ा-लिखा मूर्ख कहते थे। इसके बाद युवाओं ने समूह का नाम ही बंच ऑफ फूल्स रख लिया। समूह के सतीश भुवालका बताते हैं कि प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान से प्रेरित हो शहर की सफाई शुरू की गई। धीरे-धीरे युवा जुड़ते गए। गंदे स्थानों की सफाई के बाद टीम अपने खर्चे पर शानदार पेंटिंग बनाकर उस जगह को खूबसूरत बनाती है। टीम प्रत्येक रविवार को किसी गंदी जगह का चुनाव करती है। पांच साल में बंच ऑफ फूल्स 297 स्थानों को चकाचक कर चुके हैं।

संकल्प की कूची से सजाई ताजनगरी

आगरा: डॉ.आनंद राय वह नाम है, जिसने ताजनगरी की रंगत बदली। 2001 में अमेरिका के उनके दोस्त आगरा घूमने आए, तो सड़क के किनारे पड़े कूड़े की फोटो खींची। आनंद राय को दिखाई तो मन अंदर तक टूट गया। बस ये बात मन में घर कर गई। 2005 में आनंद राय आगरा आ गए। फिर यहां स्वच्छता की अलख जगाने का संकल्प ले लिया। सड़क पर जहां भी कूड़ा देखते खुद सफाई में जुट जाते। मार्च 2014 में इंडिया राइजिंग की नींव रखी। रोज सुबह सात बजे चौराहा या फिर रोड का चयन होने लगा। पहले गंदगी की फोटो खींची जाती है, फिर उस स्थान को चमकाने के बाद फोटो लेते हैं। अब शहर को चमकाने के इस काम में 660 हाथ जुट गए हैं। हर रविवार हाथों में पेंट और ब्रश लेकर लोग आते हैं। सफाई करते हैं और कूड़े को निर्धारित स्थल पर फेंकते हैं।

गांधीगीरी के दम से बदली सोच

अमृतसर: मोहल्ले में कुछ लोग रोज सुबह अपने घर का कूड़ा सड़क पर फेंक दिया करते थे। रमन मल्होत्रा ने कई बार उन्हें रोका, लेकिन लोग नहीं माने। लिहाजा रमन ने गांधीगीरी का सहारा लिया और एक दिन सुबह उठते ही गली से कचरा उठाना शुरू कर दिय। इससे कचरा फेंकने वालों को  शर्मिंदगी महसूस हुई और उन्होंने कचरा बाहर फेंकना बंद कर दिया। रमन मल्होत्रा ने मोहल्ला सुधार कमेटी का गठन किया और अपने साथ 10 युवाओं को जोड़ा। सुधार कमेटी ने इन सभी कॉलोनियों के हर घर के बाहर डस्टबिन लगवाए। रमन एक दवा कंपनी के कर्मचारी हैं। अपने वेतन का काफी हिस्सा वह स्वच्छता पर खर्च कर देते हैं। अकेले दम पर उन्होंने डेढ़ लाख की आबादी वाले इस इलाके को संपूर्ण स्वच्छ बना दिया है।

स्वच्छता के नायक शिखर पालीवाल

हरिद्वार: शहर में दस साल से गंगा को निर्मल बनाने में जुटे ‘बीइंग भागीरथ’ संस्था के प्रमुख 32 वर्षीय शिखर पालीवाल और उनकी टोली हर रविवार घाटों की सफाई करती दिख जाएगी। ये तट पर फेंके गए पुराने कपड़े और फूलों की छंटाई करते हैं। पुराने कपड़ों से दरी बनाई जाती है और फू लों से अगरबत्ती। इसकी प्रेरणा उन्हें यहीं से मिली। हरिद्वार में ही पले-बढ़े पालीवाल बताते हैं कि गंगा तटों पर फैला कचरा उन्हें हमेशा कचोटता था। 2017 में उन्होंने 17 दोस्तों के साथ ‘बीइंग भगीरथ’ संस्था का गठन किया और जुट गए गंगा घाटों की सफाई में। संस्था से अब तक 128 युवा जुड़ चुके हैं। इसके अलावा संस्था गरीब युवाओं को कपड़ों से दरी और फूलों से अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दे रही है। चालीस से ज्यादा युवा प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।

पांच साथी मिलाकर बढ़ा रहे कदम

दुर्ग: यहां के पोटियाकला के पांच साथी दस साल से सफाई के लिए सर्मिपत हैं। बोधी राम साहू, मुकेश साहू, परस कुमार, शिव कुमार और श्याम सुंदर हर रोज दो घंटे सुबह छह से आठ बजे तक सार्वजनिक स्थानों की सफाई करते हैं। बोधी राम बताते हैं कि जब करीब 13 साल पहले श्रमदान से तालाब बनाया गया, तब तालाब की उपयोगिता समझ में आई। मेहनत से बने तालाब में गंदगी देखकर अच्छा नहीं लगता था। इसलिए पहले अकेले ही तालाब की नियमित सफाई शुरू की गई, लेकिन बाद में बाकी साथी भी जुड़ गए और सफाई का दायरा भी बढ़ता गया।

पढ़ाते-पढ़ाते स्वयं पढ़ा सफाई का पाठ

पटना: वह बच्चों को पढ़ा रहे थे कि कैसे स्वच्छ रहना है? स्वच्छ रहने के लिए क्या करना चाहिए? तभी उन्हें याद आया कि जैसा हम पढ़ाते हैं और बच्चों को समझाते हैं, वैसा खुद तो समझते ही नहीं। उनकी आंख खुल गई। अब राजेश रमण स्वच्छता के योद्धा हैं। हनुमाननगर साकेतपुरी जाकर उनका काम देखिए। उन्होंने वाट्सएप ग्रुप बनाया है। सभी सदस्य रविवार को मीटिंग में शामिल होते हैं। मीटिंग होती है। आसपास के मोहल्ले में सफाई अभियान का कार्यक्रम तय किया जाता है। फिर सफाई होती है। चंदा लगाकर झाड़ू और ब्लीचिंग पाउडर खरीदा जाता है। उनका समूह रोको-टोको अभियान भी चलाता है। राजेश एक शिक्षक हैं। अब वह स्वच्छता की शिक्षा ही नहीं दे रहे बल्कि असल जीवन में उसका असर भी दिखा रहे हैं। सबसे अधिक साथ मिला महिलाओं का। साकेतपुरी में इसका असर दिखा तो आसपास के मोहल्लों में उन्होंने अभियान छेड़ दिया है।

जुनून ने बनाया स्वच्छता का देवदूत

मंडी: शहर के फिजियोथेरेपिस्ट शरद मल्होत्रा के जुनून ने उन्हें स्वच्छता का देवदूत बना दिया। शरद ने नगर परिषद के अधिकारियों व पार्षदों के साथ मिलकर ऐसी अलख जगाई कि छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी शहर स्वच्छता सर्वेक्षण में 806वें पादयान से छलांग लगाकर 172वें स्थान पर पहुंच गया। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों, पार्षदों, शहर के प्रबुद्ध नागरिकों को मिलाकर वाट्सएप ग्रुप बनाया। कई संगठनों को स्वच्छता मुहिम से जोड़ा। ये लोग शहर के वार्डों में घूमे और जहां कहीं गंदगी दिखी, वाट्सएप पर उसकी फोटो शेयर की। खुले में शौच जाने वालों के फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किए। गंदगी फैलाने वालों के नाम वाट्सएप ग्रुप व फेसबुक पर सार्वजनिक किए गए। ऐसे लोगों पर कार्रवाई होने लगी तो उन्होंने खुले में कूड़ा कचरा फेंकना बंद कर दिया।

गलियों को बना दिया आकर्षण का केंद्र

चंडीगढ़: जिन गलियों से कभी दुर्गंध के कारण निकलना भी आसान नहीं था, वहीं से अब लोगों को स्वच्छता का संदेश मिल रहा है। अब इन गलियों के साथ लगती दीवारों पर पेंटिंग कर दी गई है, जो शहरवासियों को सफाई के प्रति जागरूक कर रही हैं। चंडीगढ़ के बुड़ैल गांव की इन गलियों को सुंदर बनाने का बीड़ा पिछले साल स्वर मनी यूथ वेलफेयर एसोसिएशन के संस्थापक रोहित कुमार ने उठाया था। उनके साथ 30 लोगों की टीम है। गलियों की सफाई की गई, फिर दीवारों पर पेंटिंग की गई। गांव के बस स्टॉप से भी गंदगी साफ कर वहां भी पेंट किया गया। सरकारी स्कूलों की दीवारों को भी कचरे से निकलने वाली बोतलों में सजाया और उसमेंं हरे-भरे पौधे लगाए।

शहर को साफ रखने का खुद से वादा

इंदौर: शहर को नंबर-1 बनाने में नगर निगम के साथ वेस्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट असद वारसी ने भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने शहर को साफ रखने का खुद से वादा किया और चार साल पहले कचरा संग्रहण, परिवहन और उसके निपटान की पुख्ता योजना बनाई। कचरा पेटियां हटवाईं और डोर टू डोर कचरा कलेक्शन के लिए 434 मार्ग तय किए गए। 15 लाख टन कचरे के निपटान का खाका तैयार किया। इंदौर के ट्रेंचिंग ग्राउंड में देश की पहली ऐसी मशीन लगवाई जो एक साथ 12 तरह के सूखे कचरे को छांटती थी। बतौर कंसल्टेंट उन्होंने ऐसे वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट लगवाए, जिसमें इंदौर नगर निगम का पैसा खर्च होने के बजाय आमदनी हुई। वारसी अब देश के 80 से ज्यादा शहरों को वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर मार्गदर्शन दे रहे है


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