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Coronavirus Vaccine: दुनियाभर में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की तेजी न पड़ जाए भारी

Coronavirus Vaccine दुनियाभर में यदि सभी 86 प्रोजेक्ट ह्यूमन ट्रायल तक पहुंच गए तो आठ से नौ लाख लोगों पर प्रायोगिक वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 11:27 AM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 02:51 PM (IST)
Coronavirus Vaccine: दुनियाभर में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की तेजी न पड़ जाए भारी
Coronavirus Vaccine: दुनियाभर में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की तेजी न पड़ जाए भारी

नई दिल्‍ली, जेएनएन। Coronavirus Vaccine: दुनियाभर में इस समय कोरोना वायरस (कोविड-19) की वैक्सीन बनाने की मानो रेस चल रही है। हर देश जल्द से जल्द वैक्सीन बना लेना चाहता है। वैसे तो ऐसे प्रोजेक्ट की संख्या सैकड़ों में है, लेकिन 86 प्रोजेक्ट दमदार माने जा रहे हैं। इनके शोधकर्ता वैक्सीन विकसित करने के अहम पड़ाव पर हैं। कुछ तो ह्यूमन ट्रायल के करीब पहुंच चुके हैं।

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इंडिपेंडेंट के अनुसार इसे लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन के वायरोलॉजिस्ट को एक चिंता भी है। यदि प्रायोगिक वैक्सीन में कुछ भी गलत हुआ तो हजारों-लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा लैब की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल कायम है। ब्रिटेन के चीफ साइंटिफिक एडवाइजर सर पैट्रिक वालांसे भी इससे चिंतित हैं।

वर्षों तक करनी होगी देखभाल : दुनियाभर में यदि सभी 86 प्रोजेक्ट ह्यूमन ट्रायल तक पहुंच गए तो आठ से नौ लाख लोगों पर प्रायोगिक वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाएगा। ब्रिटेन में ही इनकी संख्या एक लाख तक हो सकती है, जहां ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन के साथ वैक्सीन विकसित करने में लगी हुई है। एक एक्सपर्ट ने बताया कि हमें वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के लिए आगे आने वाले लोगों की वर्षों तक देखभाल करनी होगी, क्योंकि हमें नहीं पता कि इन वैक्सीन का क्या प्रभाव होने वाला है।

बहुत बड़ा है खतरा : विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि कोरोना की किसी प्रस्तावित वैक्सीन में कोई गड़बड़ी हुई तो ह्यूमन ट्रायल के दौरान हम एक नए तरह के संक्रमण को जन्म दे देंगे। इंडिपेंडेंट के अनुसार यह संक्रमण भी बहुत तेजी से दुनिया में फैला देगा। ऐसा होने पर करोड़ों-अरबों डॉलर भी डूब जाएंगे। ऐसे में सभी नियामकों और सरकारों के साथ शोधकर्ताओं को थोड़ा रुककर अपनी सारी गणनाएं दोबारा कर लेनी चाहिए। वैसे भी दुनिया में एंटी-वैक्सीन लॉबी है, जिसे शोधकर्ताओं के किसी भी गलत कदम का इंतजार रहता है।

हजारों लोगों ने झेली भयंकर परेशान : ब्रिटिश सरकार और ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन ने वर्ष 2009 में स्वाइन फ्लू की वैक्सीन विकसित की थी। हजारों लोगों पर ह्यूमन ट्रायल किए गए। तमाम लोगों ने सरकार और कंपनी पर मुकदमा ठोक दिया कि उन्हें तमाम नतीजों की कोई जानकारी नहीं दी गई और उनकी सेहत पर प्रायोगिक वैक्सीन का बुरा प्रभाव पड़ा। ये लोग लाखों पौंड का हर्जाना सरकार और ग्लैक्सो से चाहते हैं। अहम है कि ब्रिटेन में ह्यूमन ट्रायल में हिस्सा लेने वाले सभी लोगों की रजामंदी के साथ साइड इफेक्ट के इलाज की जिम्मेदारी भी सरकार और कंपनी की होती है।

एस-प्रोटीन को निशाना बनाने की तैयारी : दुनियाभर के शोधकर्ता कोरोना वायरस के एस-प्रोटीन (स्पाइक प्रोटीन) को निशाना बनाने की तैयारी कर रहे हैं। अपने स्पाइक के कारण ही कोरोना वायरस किसी भी सतह पर अच्छी तरह से चिपक जाता है। वह इसी तरह फेफड़ों से चिपककर जैली की तरह दिखने लगता है, जो खतरनाक निमोनिया को पैदा करता है और संक्रमित मरीज मारा जाता है। इसके साथ ही वैज्ञानिक डीएनए तकनीक का इस्तेमाल वैक्सीन बनाने में कर रहे हैं।

लैब में ही बड़ा खतरा : किसी भी वैक्सीन का मुख्य मकसद किसी विशेष बीमारी के प्रति मानव शरीर को तैयार करना होता है। शरीर उस बीमारी के वायरस को मारने के लिए जरूरी ताकत जुटा लेता है। अब तक दो तरीके से वैक्सीन तैयार होता है। डेड वायरस या फिर वायरस की कॉपी के जरिये। इन तरीकों से ही मीजल्स से लेकर स्वाइन फ्लू तक की वैक्सीन तैयार हुई हैं। इन दोनों तरीकों में ही खतरा है। खतरा है लैब स्तर से ही वायरस के फैल जाने का, जैसा अंदेशा वुहान की लैब को लेकर जताया जा रहा है।

वर्षों तक जिंदा रह सकता है कोरोना : ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन एक्सपर्ट सारा गिल्बर्ट स्वीकार करती हैं कि वैक्सीन विकसित करने में कई खतरे हैं। यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टिट्यूट के निदेशक प्रो. एड्रियन हिल जोर देकर कहते हैं कि किसी एक कंपनी के बस की बात नहीं है कि वह दुनिया में करोड़ों वैक्सीन डोज बना सके। ऐसे में दो या अधिक शोधकर्ताओं को वैक्सीन विकसित करने में सफलता मिलनी चाहिए। वह चेतावनी देते हैं कि आने वाले वर्षों में भी कोविड-19 जिंदा रह सकता है और हमें वैक्सीन की जरूरत पड़ती रहेगी।


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