आतंकवाद की छवि तोड़ बाहर निकलेगा कश्मीर का असली हीरो, फिल्म निर्माताओं की बनी हैं नजरें
अनुच्छेद 370 को रद किए जाने और पिछले एक डेढ़ साल में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की सक्रियता ने माहौल बदलना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों में शिक्षा से लेकर सुरक्षा तक लगातार ऐसे आंकड़े सामने आ रहे हैं जिसने आतंकवाद के बजाय विकास को चर्चा में ला दिया है।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। पिछले तीन दशकों की बड़ी-से-बड़ी और सफल हिंदी फिल्मों को उठाकर देख लें तो कश्मीर केंद्रित या फिर कश्मीर में शूट की गई फिल्में कहीं-न-कहीं आतंकवाद के आसपास घूमती रही हैं। किसी फिल्म में आतंकवाद को समाज की विकृति से पनपा दिखाया गया तो कहीं सीमापार की कुत्सित चाल। उससे पहले कश्मीर एक रोमांटिक स्पॉट के रूप में दर्शाया जाता रहा है, जिसमें बाहर के शहर से आया हीरो स्थानीय हीरोइन और कश्मीर की सुंदरता में गुम हो जाता था। लेकिन अब बदलते कश्मीर की सामाजिक कहानी का दौर शुरू हो सकता है, जिसमें कहानी कश्मीर के असली हीरो के आसपास घूमेगी, जिसे देश तो क्या खुद कश्मीर भी भुलाने लगा है। मुद्दे कश्मीर के होंगे। समस्याएं कश्मीर की होंगी।
अनुच्छेद 370 को रद किए जाने और पिछले एक डेढ़ साल में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की सक्रियता ने माहौल बदलना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों में शिक्षा से लेकर सुरक्षा तक लगातार ऐसे आंकड़े सामने आ रहे हैं, जिसने आतंकवाद के बजाय विकास को चर्चा में ला दिया है। इसी क्रम में सिन्हा ने बॉलीवुड के कुछ निर्माता-निर्देशकों और कलाकारों से मुलाकात की थी। उसका असर तेजी से दिख सकता है। फिल्म से स्थानीय रोजगार और व्यवसाय पर जो असर होगा उससे परे है छवि में सकारात्मक बदलाव।
सामाजिक मुद्दों और लोकल हीरो पर केंद्रित फिल्म बनाने का आग्रह
यही कारण है कि उनसे सामाजिक मुद्दों और लोकल हीरो पर केंद्रित फिल्म बनाने का आग्रह किया गया है। मेरी कॉम और गीता फोगाट पर सफल फिल्में बन सकती हैं तो कश्मीर की कराटे किड, कश्मीर की कोकिला, कश्मीर का वह फाइटर जिसने कबायली से लोहा लिया था, वह केंद्र में क्यों नहीं आ सकता है। बताते हैं कि फिल्म निर्माताओं को ये सभी विषय बहुत पसंद आए हैं और स्थानीय स्तर पर सरकारी तंत्र ऐसे अनजान हीरो की पूरी जानकारी इकट्ठा करने में जुट गया है।
कोशिश यह है कि कश्मीर आतंकवाद की अपनी पुरानी पहचान से हटकर सकारात्मक पहचान बनाए। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं होगा कि वहां की समस्याओं को भुला दिया जाएगा। कुछ दिनों पहले घाटी के कुछ क्षेत्रों में ड्रोन से ड्रग्स की सप्लाई हुई थी। इसे लेकर प्रशासन बहुत चौकस है और नहीं चाहता है कि पंजाब की तरह कश्मीर इसकी गिरफ्त में आए।
हब्बा खातून पर फिल्म बनाना चाहते थे मुजफ्फर अली
हब्बा खातून का नाम सुना सुना लगता है। लेकिन कश्मीर के अंतिम बादशाह की स्वर कोकिला और कवयित्री पत्नी हब्बा खातून पर अब तक कोई फिल्म ही नहीं बनी। उनकी कविताएं आज भी कश्मीर में गाई जाती हैं। कभी मुजफ्फर अली ने कोशिश की थी लेकिन तब तक आतंक का दौर शुरू हो गया। हवा बदल गई और वह ठंडे बस्ते में चला गया। 1947 में कबायली हमले के वक्त लड़ने वाला युवा मकबूल शेरवानी एक हीरो था। लेकिन बदलते दौर के साथ उसे भी भुला दिया गया। बताते हैं कि कुछ निर्माता मकबूल की कहानी में बहुत उत्सुक हैं। वर्तमान की बात की जाए तो पुलवामा की एक लड़की कराटे किड के रूप में देखी जा रही हैं। दरअसल वह स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों को मार्शल आर्ट सिखाती हैं, ताकि वह छेड़छाड़ का मुकाबला कर सके। पर अफसोस कि उसकी पहचान पूरे जम्मू-कश्मीर में भी नहीं बन पाई है।