क्या अफगानिस्तान में तालिबान के उदय से कश्मीर घाटी में फिर पनप सकता है आतंकवाद, जानें-भारत की चिंता के क्या हैं कारण
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद सरकार ने दावा किया था कि घाटी में आतंकवाद में भारी कमी आई है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अफगानिस्तान के ताजा राजनीतिक परिदृष्य में भारत किस तरह से सामंजस्य स्थापति करता है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। अफगानिस्तान में तालिबान के उदय के साथ यह सवाल उठने लगा है कि क्या जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फिर सक्रिय हो सकता है। यह सवाल तब उठ रहा है, जब जम्मू और कश्मीर में हालात पूरी तरह से बदले हुए हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभुत्व के बाद भारत सरकार को यह चिंता सता रही है कि क्या तालिबान के शासन के बाद जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर आतंकवाद को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद सरकार ने दावा किया था कि घाटी में आतंकवाद में भारी कमी आई है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अफगानिस्तान के ताजा राजनीतिक परिदृष्य में भारत किस तरह से सामंजस्य स्थापित करता है। खासकर, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को रोक पाने में कैसे सफल रहता है।
आतंकवाद को समाप्त करने के लिए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति
विपक्ष की तमाम आलोचनाओं के बावजूद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करके राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करके इतिहास रच दिया। मोदी सरकार के अनुसार, राज्य में आतंकवाद को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया है। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद आतंकी घटनाओं में 60 फीसद की गिरावट का भी दावा किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद से राज्य में आतंकी घटनाओं में गिरवाट दर्ज की गई है। मंत्रालय ने कहा कि 28 फरवरी तक राज्य में महज 15 आतंकी घटनाएं हुई हैं, जबकि आठ आतंकवादी मारे गए हैं। वर्ष 2018 में 614 आतंकी घटनाएं हुईं थीं, जबकि 2019 में यह घटकर 594 हो गई। वर्ष 2020 में यह घटकर सिर्फ 244 रह गई।
आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति
केंद्र सरकार ने आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है। इसके साथ राज्य में सुरक्षा तंत्र को और मजबूत किया गया है। राष्ट्र विरोधी तत्वों से निपटने के लिए कानून को और सख्त किया गया है। राज्य में आतंकवादियों द्वारा पेश की गई चुनौती को प्रभावी ढंग से निपटाने के लिए कड़ी घेराबंदी की गई है। सरकार ने आतंकवाद पर विराम लगाने के लिए तलाशी अभियान जैसे कई और उपाय किए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों में कहा गया है कि सुरक्षा बल उन लोगों पर भी कड़ी नजर रखते हैं, जो आतंकवादियों को सहायता प्रदान करने और उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करके घाटी में आतंकवाद को कम करने की दिशा में पहला ठोस कदम उठाया गया है।
अफगानिस्तान में बदले राजनीतिक परिदृष्य से क्यों चिंतित है भारत
हालांकि, अफगानिस्तान में बदले राजनीतिक परिदृष्य में जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार चिंतित दिख रही है। भारत सरकार अमेरिका और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन के रूप में अफगानिस्तान में अस्थिर स्थिति में बारे में चिंतित है। तालिबान द्वारा दो शहरों के आसपास के कई प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करने के बाद भारत ने अपने कंधार और मजार ए शरीफ वाणिज्य दूतावासों से अपने राजनयिकों और सुरक्षा कर्मियों को निकाला है। हालांकि, सरकार का कहना है कि वह कंधार और मजार ए शरीफ में अपने वाणिज्य दूतावास को बंद नहीं करेगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या तालिबान के प्रभुत्व के बाद भारत अपने राजनयिकों को वापस भेजेगा।
क्या अस्थिर अफगानिस्तान जम्मू-कश्मीर के लिए खतरनाक
केंद्र सरकार में भी कई लोगों का मानना है कि एक अस्थिर अफगानिस्तान का जम्मू-कश्मीर पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है, जैसा कि 1990 के दशक में तालिबान और अल कायदा के शिविरों में प्रशिक्षित आतंकवादियों ने घाटी में प्रवेश करने उथलपुथल मचाई थी। उन्होंने कई आतंकी वारदातों को अंजाम भी दिया था। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि तालिबान के जम्मू-कश्मीर में तुरंत हस्तक्षेप करने की संभावना बहुत कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि तालिबान अफगानिस्तान में अधिक नियंत्रण हासिल करने पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा।
अफगानिस्तान पर ध्यान केंद्रित करेगा तालिबान
सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर अरुण सहगल (फोरम फॉर स्ट्रैटेजिक इनिशिएटिव के कार्यकारी निदेशक) का मानना है कि तालिबान वर्तमान में पूरी तरह से अफगानिस्तान पर ध्यान केंद्रित करेगा। उन्होंने कहा कि तालिबान यह बात दृढ़ता से कह चुका है कि वह जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के सरोगेट की भूमिका नहीं निभाएगा। यह पूछे जाने पर कि जम्मू-कश्मीर में हाल ही में ड्रोन गतिविधियों में वृद्धि हुई है और क्या अफगानिस्तान में तालिबान के उदय से ऐसे हमलों में वृद्धि हो सकती है। ब्रिगेडियर सहगल ने कहा कि काबुल की स्थिति का पाकिस्तान द्वारा की जा रही ड्रोन से जुड़ी गतिविधियों से कोई सरोकार नहीं है।
सुरक्षा परिषद के मंच का भारत करे इस्तेमाल
TOLOnews में विदेश मामलों के जानकार शबीर अहमदी ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में कहा कि मेरा मानना है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष होने के नाते तालिबान और उसके समर्थकों पर शांति के लिए आने और हिंसा को समाप्त करने के लिए कूटनीति का उपयोग करना चाहिए। हालांकि, उनका तर्क है कि अफगानिस्तान में भारतीय या किसी अन्य विदेशी सैनिकों को भेजने से क्षेत्र में उभरती स्थिति का समाधान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि सैनिकों को तैनात करने से अफगानिस्तान की समस्या का समाधान हो सकता है। साथ ही, भारत सहित अन्य देश अफगानिस्तान में सेना नहीं भेजना चाहेंगे।