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जब बूंद बूंद पानी को तरस रहे पंडो जनजाति को नहीं मिली मदद तो खुद खोदने लगे कुआं, देखें तस्वीरें

सुबह छह से दस बजे तक 15-20 ग्रामीण व शाम पांच से सात बजे तक दो शिफ्ट में करीब 30 ग्रामीण श्रमदान कर रहे हैं। इनमें महिलाएं-बच्चे सभी शामिल रहते हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 10:34 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 10:42 PM (IST)
जब बूंद बूंद पानी को तरस रहे पंडो जनजाति को नहीं मिली मदद तो खुद खोदने लगे कुआं, देखें तस्वीरें
जब बूंद बूंद पानी को तरस रहे पंडो जनजाति को नहीं मिली मदद तो खुद खोदने लगे कुआं, देखें तस्वीरें

देवेंद्र गुप्ता, कोरबा। 'प्यासो रहो न दश्त (जंगल) में बारिश के मुंतजिर, मारो जमीं पे पांव कि पानी निकल पड़े' प्रसिद्ध शायर इकबाल साजिद की इन दो पंक्तियों में जिस हौसले की जिक्र किया गया है, उसकी बानगी देखनी हो तो कोरबा आइए। यहां निवास करने वाली संरक्षित पंडो जनजाति के लोगों के गांव में पेयजल की सुविधा पहुंचा पाने में सरकारी तंत्र नाकाम हुआ तो ग्रामीणों ने कुआं खोदने के लिए फावड़ा उठा लिया। जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर पोड़ी-उपरोड़ा स्थित वनांचल क्षेत्र के ग्राम रावा के पंडो पारा में रहने वाले 35 पंडो आदिवासी परिवार आज भी पानी जैसी बुनियादी सुविधा से महरूम हैं। रावा की इस बस्ती से डेढ़ किलोमीटर दूर ढोढ़ी से पानी ढोकर ग्रामीण लाते हैं, तब कहीं जाकर खाना बनाने व प्यास बुझाने का इंतजाम हो पाता है।

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पिछली गर्मी में ग्राम पंचायत ने बस्ती में ही कुआं खोदने का काम शुरू कराया तो पानी की मशक्कत से निजात मिलने की उम्मीद बंधी। काम शुरू तो हुआ पर आधा-अधूरा छोड़ दिया गया। एक-एक दिन गुजरकर फिर से गर्मी का मौसम आ गया और इसके साथ वह अधूरा कुआं भी फिर से पट गया। जनप्रतिनिधियों व अफसरों ने जब उन्हें भगवान के भरोसे छोड़ दिया, तो उन्होंने अपनी परेशानी का हल खुद ढूंढ़ने की ठान ली। पिछले तीन दिन से बस्ती के पट चुके गढ्डे को फिर से खोदना शुरू कर दिया है। सुबह छह से दस बजे तक 15-20 ग्रामीण व शाम पांच से सात बजे तक दो शिफ्ट में करीब 30 ग्रामीण श्रमदान कर रहे हैं। इनमें महिलाएं-बच्चे सभी शामिल रहते हैं।

पंचायत ने 40 हजार खर्च किए, नहीं मिला एक बूंद पानी

ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार की जड़ें किस कदर मजबूत हैं, इसका भी उदाहरण यहां देखा जा सकता है। कुआं खोदने में बीते वर्ष पंचायत ने 40 हजार रपये खर्च होना दिखाया, लेकिन एक बूंद पानी पंडो आदिवासियों को नहीं मिला। यदि पुराना कुआं ढूंढ़ने अफसर निकलते तो ढूंढ़े से भी नहीं मिलता। उन्हें यह उम्मीद थी कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में कुआं निर्माण स्वीकृत कर दिया जाता तो इसके सहारे उन्हें एक ओर मजदूरी मिलती, तो दूसरी ओर गांव के लिए पानी की दिक्कत भी दूर हो जाती।

केरल की संस्था ने बढ़ाए सहयोग के हाथ

आदिवासियों के लिए काम करने वाली केरल की समाजसेवी संस्था एकता परिषद ने इन पंडो आदिवासियों की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है। दोनों वक्त के काम के बाद मजदूरों को नि:शुल्क भोजन उपलब्ध कराया जा रहा। संस्था के जिला परियोजना समन्वयक रामसिंह ने बताया कि इसके अलावा कुएं के निर्माण में ईट-सीमेंट आदि के लिए जो खर्च आ रहा, उसका निर्वहन भी संस्था करेगी। उनका कहना है कि पंडो आदिवासियों को लेकर वे पाली-तानाखार क्षेत्र के विधायक मोहितराम केरकेट्टा के पास मदद मांगने गए थे। इसके अलावा फॉरेस्ट व राजस्व विभाग के अफसरों के भी चक्कर काटे। पर सभी जगह से केवल आश्वासन ही मिला। अंतत: ग्रामीणों ने साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज पर कुआं खोदने का बीड़ा खुद उठा लिया।

अनोखे ढंग से जल स्रोत तलाशने की परंपरा

वनांचल क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों में आज भी जल स्रोत का पता लगाने की अनोखी परंपरा और मान्यता है। इसके लिए जल मंत्र व नारियल का इस्तेमाल करते हैं। बताते हैं तक समाज का बैगा (पूजा करने वाला) इसका विशेष जानकार होता है। वह हथेली पर नारियल रख कर संभावित स्थान पर मंत्रोच्चार करते हुए आगे बढ़ता है। जहां नारियल अपनी दिशा बदल ले, बस वहीं खोदाई की जाती है। ग्राम पंचायत ने रावा में इससे पहले खोदाई की थी तो इसी पद्धति का इस्तेमाल किया गया था। नतीजा यह रहा कि 12 फीट खोदाई में ही पानी नजर आने लगा था।

जिला पंचायत सीईओ कुंदन कुमार ने बताया कि मैंने अभी-अभी प्रभार संभाला है, इसलिए ग्रामीणों की पेयजल समस्या की जानकारी नहीं है। रावा के पंडो आदिवासी अगर समस्या से जूझ रहे हैं, तो त्वरित कार्रवाई कर उसे दूर करने की कवायद भी शुरू की जाएगी।


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