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समाज में निचले पायदान पर खड़े लोगों की आर्थिक उन्नति में सहकारी क्षेत्र की अहम भूमिका

इसी माह के आरंभ में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कैबिनेट विस्तार के दौरान एक सहकारिता मंत्रलय का भी गठन किया है। इसका प्रभार गृहमंत्री अमित शाह को दिया गया है। सहकारिता का स्वतंत्र भारत में अपना इतिहास रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 10:04 AM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 10:05 AM (IST)
समाज में निचले पायदान पर खड़े लोगों की आर्थिक उन्नति में सहकारी क्षेत्र की अहम भूमिका
सहकारिता आंदोलनों ने देश की राजनीति को प्रभावित करते हुए एक नई दिशा देने का काम भी किया है।। फाइल

डा. विकास सिंह। इसी माह केंद्रीय मंत्रिमंडल में किए गए विस्तार के साथ ही एक सहकारिता मंत्रलय का गठन चर्चा में है। हमारे देश में आज सहकारी क्षेत्र को मजबूत समर्थन की जरूरत है। सहकारिता वास्तव में ग्रामीण परिदृश्य में सर्वव्यापी है। भारत की अधिकांश ग्रामीण अर्थव्यवस्था सहकारिता से प्रभावित होती है और किसी न किसी रूप में लगभग हर ग्रामीण जीवन को प्रभावित करती है। ग्रामीण परिवेश में यह ‘जीवन की सुगमता’ के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है। हालांकि इसका योगदान कुछ क्षेत्रों में अधिक प्रभावी नहीं रहा है, यहां तक कि इस कारण से कुछ क्षेत्रों में एक प्रकार से ह्रास ही हुआ। विडंबना यह है कि राज्य इस क्षेत्र पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे हैं। जबकि इसे पोषण के साथ एक मजबूत रीढ़ और अभिनव दिमाग की जरूरत है।

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नीति निर्माताओं की उदासीनता : हमारे नीति निर्माता इस क्षेत्र के विकास के प्रति उदासीन रहे हैं। प्रत्येक राज्य में सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार जो इस क्षेत्र की देखरेख करते हैं, उनके पास प्रभावी रूप से योगदान करने के लिए न तो क्षमता है और न ही संसाधन। उदासीनता में जकड़े सहकारिता के इन कर्ताधर्ताओं को इसकी वास्तविक जरूरतों से कोई खास मतलब नहीं है।

संबंधित विश्लेषणों से यह तथ्य सामने आया है कि बड़े पैमाने पर उदासीनता और पोषणकर्ता (राज्य सरकारों) की लापरवाही के कारण आज हमारा सहकारी ढांचा टूट गया है। इसकी नींव बेहद नाजुक है। इसकी संरचना वर्तमान दौर के अनुकूल नहीं है। इसे कमजोर आधार पर खड़ा किया जाता है। हालांकि राज्य इसके कर्ताधर्ता हैं, लेकिन अपनी ओर से वह कोई जवाबदेही स्वीकार नहीं करता है और न ही कोई जिम्मेदारी लेता है, लिहाजा यह क्षेत्र समुचित रूप से पनप नहीं पाता है।

सर्वश्रेष्ठ निर्देशन, कमजोर नियंत्रण : हमारे देश में सहकारी पारितंत्र का राजनीतिकरण किया जाता है। वर्तमान परिस्थितियों में अगर कोई इसे सामाजिक-आíथक के बजाय राजनीतिक इकाई मानता है, तो उसे आसानी से समझा जा सकता है। कई राज्यों में यह एक पालन-पोषण क्षेत्र बन गया है, तो कुछ राज्यों में उभरते राजनेताओं के लिए पहचान बनाने और विधानसभा में जाने का एक माध्यम बन गया है। एक समय महाराष्ट्र के निर्वाचित विधायकों में से करीब एक-तिहाई ने सहकारी क्षेत्र में हाथ आजमाते हुए ही अपनी लोकप्रियता बढ़ाई थी। लेकिन इसके बावजूद इस क्षेत्र ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान करना जारी रखा है। वैसे यह क्षेत्र गरीबों की तमाम आकांक्षाओं को पूरा करता है और वंचितों की सेवा करता है। कई ग्रामीण समुदायों में सहकारिता अक्सर एकमात्र सेवा प्रदाता है। विशेष रूप से देश के सबसे गरीब जिलों में।

सहकारिता के माध्यम से कृषि क्षेत्र में बाजार तक पहुंच प्रदान करते हुए किसानों की समुचित तरीके से मदद की जा सकती है। इसके माध्यम से किसानों को उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन जैसी प्रक्रियाओं में काफी मदद मिलती है। सहकारिता के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण, ऋण और अन्य संसाधन प्रदान किए जाते हैं, जिससे कृषि में उन्हें उच्च लाभ प्राप्त होता है। इस प्रकार सहकारी संगठनों के जरिये किसानों की उपज का उन्हें अधिकतम मूल्य हासिल करवाने का प्रयास किया जाता है।

विभिन्न सहकारी संस्थाएं व्यक्तिगत जोखिम को कम करके उद्यमिता को सक्षम बनाती हैं। वे साझा उत्पादकता, निर्णय लेने की क्षमता और रचनात्मक समस्या-समाधान द्वारा सहयोगी उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देती हैं। संबंधित पेशेवरों के बीच किए गए एक हालिया अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि सहकारिता की सफलता दर आठ गुना अधिक और एमएसएमई यानी लघु एवं मध्यम आकार के उद्योगों की तुलना में दोगुना मजबूत और टिकाऊ है।

ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाने का बेहतर माध्यम : क्रेडिट सहकारिता सूक्ष्म उद्यमियों को छोटे कारोबार शुरू करने, खेती या पशुधन में उद्यम करने के लिए भी प्रोत्साहित करने और उन्हें ऋण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, हस्तशिल्प उद्योग को संरक्षित करने और ‘बाजार तक पहुंचाने’ में कुछ खास सहकारी समितियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उल्लेखनीय है कि सहकारी पारिस्थितिकी तंत्र ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाने का एक बड़ा माध्यम बनता है और उन्हें अपने समुदायों के बीच ही रहते हुए सभी के साथ मिलकर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।

परोक्ष रूप से देखें तो देश के कुछ खास इलाकों में गांवों से शहरों की ओर पलायन को रोकने में ग्रामीण सहकारी समितियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। एक संबंधित अध्ययन यह बताता है कि शहरों की ओर ग्रामीण नागरिकों का मजबूरी में किया गया प्रवासन शहरों और महानगरों के संसाधन पर बोझ बढ़ाने के साथ सामाजिक संघर्षो को बढ़ाता है। इसका एक बड़ा असर यह भी होता है कि ग्रामीण विकास की गति धीमी हो जाती है। एक फलता-फूलता सहकारी क्षेत्र मांग और निवेश को बढ़ा सकता है, एक अच्छे विकास चक्र को प्रोत्साहित कर सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर इस बात की सराहना करते हैं कि सहकारिता ग्रामीण परिदृश्य में वास्तविक विकास की शुरुआत करने के लिए एक वाहक हो सकती है और आर्थिक असमानता को कम करने तथा सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इस विषय में एक नया मंत्रलय बनाकर उन्होंने इसे एक नई दिशा प्रदान की है। इस मंत्रलय का मुख्य फोकस इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने और आर्थिक रूप से उचित स्थान दिलाने पर होगा। प्रधानमंत्री की मंशा स्पष्ट है और इस संदर्भ में उनका लक्ष्य व्यापक है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार करने के साथ ही उसे विकसित करने वाला है। इस नवगठित सहकारिता मंत्रलय का एजेंडा ग्रामीण नागरिकों को एक राजनीतिक-सामाजिक इकाई से आगे बढ़ने और एक संपन्न सामाजिक आíथक उद्यम के रूप में उभरने के लिए मार्गदर्शन करना होना चाहिए। सभी प्रकार के लेन-देन को समुचित रूप से पारदर्शी बनाते हुए इसके विस्तार तथा विकास के लिए कम लागत वाली निधियों तक पहुंच को मजबूत करना चाहिए, तभी सहकारिता का चरित्र साकार होगा। हालांकि इस ओर उदासीनता से इस क्षेत्र के प्रति वर्तमान और संभावित हितधारकों का आकर्षण अवश्य कम हुआ है, लेकिन उनका भरोसा कम नहीं हुआ है।

सहकारिता मंत्रलय यदि समाज के वंचित समुदायों को जीवंत आर्थिक संस्थाओं में बदलने की क्षमता को भुनाने में असमर्थ रहता है, तो वह ग्रामीण भारत, विशेष रूप से वंचितों को विफल कर देगा। लिहाजा प्रधानमंत्री को अपने राजनीतिक प्रभाव का उपयोग संबंधित महत्वपूर्ण हितधारकों को मनाने के लिए करना चाहिए और एक सामंजस्यपूर्ण तथा समृद्ध ग्रामीण भारत के महात्मा गांधी के लक्ष्य को साकार करने के लिए इसका समग्र प्रारूप तैयार करना चाहिए।

भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारिता का महत्वपूर्ण योगदान है। आंकड़े इस तथ्य को साबित भी करते हैं। देश में चीनी उत्पादन में सहकारी क्षेत्र का हिस्सा 35 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, चीनी उत्पादन के क्षेत्र में सहकारी संगठनों में बड़ी संख्या में ग्रामीण कार्यबल को आजीविका प्रदान करने की क्षमता है। देश में पीएसी (प्राथमिक कृषि सहकारी) की संख्या लगभग एक लाख है तथा इस मामले में ये प्रमुख ऋणदाता हैं और लगभग हर ग्रामीण ब्लाक इसके दायरे में आते हैं। यानी जमीनी स्तर पर किसानों को ऋण मुहैया कराते हुए इसके प्रवाह को गति देते हैं।

सहकारी समितियां ग्रामीण-शहरी प्रवास को कम करने और ग्रामीण सामुदायिक संस्कृति को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे बड़ी संख्या में लोगों को जीविका प्रदान करती हैं। एक फलता-फूलता सहकारी क्षेत्र न केवल आर्थिक विकास में सहयोग देगा, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ाएगा। कृषि क्षेत्र के साथ एक बड़ी विसंगति यह भी है कि इससे जुड़े अधिकांश रोजगार अल्पकालीन अवधि के होते हैं, लिहाजा लोगों को पूरे साल काम देने में यह सेक्टर सक्षम नहीं हो पाता है। ऐसे में खेती से जुड़े विभिन्न सहकारी संगठनों का व्यापक विस्तार करते हुए किसानों और कृषि कारोबार से जुड़े लोगों को पूरे वर्ष रोजगार मुहैया कराया जा सकता है। उचित संरचना और सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र के साथ सहकारी समितियों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को व्यापक तौर पर प्रोत्साहित करने की क्षमता भी है। सहकारी समितियां ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कई प्रकार से सहारा देने में सक्षम साबित हो सकती हैं। आवश्यकता है इनके भीतर छिपी हुई संबंधित क्षमता को जानने-समझने और उसे विकसित करने की। उम्मीद की जा सकती है कि केंद्र में सहकारिता मंत्रलय के गठन से ऐसा संभव हो सकेगा।

पुराने अनुभवों से सीख लेते हुए यह समझना होगा कि सहकारी समितियांतभी फल-फूल सकती हैं, जब इसके सभी सदस्यों के व्यावसायिक और सामाजिक लक्ष्य आपस में जुड़े हों। किसी एक की कीमत पर दूसरे को आगे बढ़ाने की व्यवस्था को अमल में लाने से पूरा सिस्टम बिगड़ जाएगा। इस क्षेत्र का सार और भावना महात्मा गांधी के भारत के प्रति दृष्टिकोण को दर्शाती है।

समग्रता में देखा जाए तो सहकारी समितियां भारत के आर्थिक माडल के लिए सबसे उपयुक्त हैं। सहकारिता का लाभ साझाकरण (लाभांश) और सामाजिक जिम्मेदारी (हेल्थ क्लीनिक, शिक्षा आदि) गरीबी उन्मूलन और सामाजिक गतिशीलता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। जमीनी स्तर पर केंद्रित इसका बिजनेस माडल बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर सकता है। इसी तरह, एकीकृत और परिवार आधारित रोजगार माडल लैंगिक समानता को मजबूती प्रदान करते हुए महिलाओं की भूमिका को बढ़ाता है तथा उनके योगदान को महत्व देता है। इसके अलावा, हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाते हुए वंचितों को संबल प्रदान करता है। साथ ही, सामाजिक एकजुटता बढ़ाने तथा खुशहाली एवं सद्भाव को बढ़ावा देने में सहकारी समितियां एक प्रभावी वाहक की भूमिका निभाती हैं।

[मैनेजमेंट गुरु तथा वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ]


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