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सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी कैशलेस लेनदेन में सबसे निचले पायदान पर भारत

एक अध्ययन के मुताबिक शीर्ष कैशलेस देशों में सिंगापुर 61 फीसद के साथ अव्वल है। महज 2 फीसद कैशलेस लेनदेन करने के साथ भारत निचले पायदान पर मौजूद है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 10:53 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 11:25 AM (IST)
सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी कैशलेस लेनदेन में सबसे निचले पायदान पर भारत
सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी कैशलेस लेनदेन में सबसे निचले पायदान पर भारत

नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। सरकार कैशलेस लेनदान को बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। इसके लिए कई सहूलियतें और सुविधाएं दी जा रही हैं। बुनियादी सुविधाएं तैयार की जा रही हैं। लेकिन जानकर आश्चर्य होता है कि आज भी हम 98 फीसद लेनदेन नकद में करते हैं। नकदी पर इतना आश्रित होना अर्थव्यवस्था के साथ खुद के लिए भी नुकसानदेय साबित होता है। एक अध्ययन के मुताबिक शीर्ष कैशलेस देशों में सिंगापुर 61 फीसद के साथ अव्वल है। महज 2 फीसद कैशलेस लेनदेन करने के साथ भारत निचले पायदान पर मौजूद है।

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वित्त मंत्रालय का नाम आते ही सीधे-सीधे खजाने की सेहत, राजकोषीय संतुलन, जीडीपी जैसे भारी भरकम शब्द ही दिमाग में कौंधते हैं जिससे भारत जैसे देश की लगभग अस्सी फीसद आबादी अनजान ही होती है। यह बड़ी आबादी सिर्फ यह महसूस करती है कि तकनीकी उलझनों से परे अर्थतंत्र उनकी जिंदगी में बदलाव लाने में सफल हुआ या नहीं।

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर राजनीति से लेकर आर्थिक जगत में कई सवाल उठ रहे हैं। अर्थव्यवस्था दुरुस्त हुई या कमजोर, आकलन का मापदंड बदलकर देश ने क्या हासिल किया और सरकार ने क्या हासिल किया..जैसे कई सवाल हैं जिसका सटीक जवाब आने और ढूंढने में थोड़ा वक्त लग सकता है।

यही वे मुद्दे हैं जिस पर सरकार से सवाल पूछे जा रहे हैं। लेकिन इससे परे यह कहने में किसी को भी हिचक नहीं होनी चाहिए कि पिछले चार साल में वित्त मंत्रालय का ध्यान अर्थव्यवस्था को संगठित व साफ सुथरी बनाने और तरक्की से वंचित लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाने पर रहा। जीएसटी हो या नोटबंदी जैसा साहसिक सुधार, हर मौके पर सरकार की सोच और कार्यशैली में इसकी झलक मिली। प्रधानमंत्री जन धन योजना, अटल पेंशन योजना और मुद्रा जैसी योजनाओं को रिकार्ड समय में धरातल पर उतारकर सरकार ने हाशिए पर खड़े समाज के एक बड़े वर्ग को अर्थतंत्र से जोड़ने की प्रतिबद्धता भी दिखायी।

मोदी सरकार जब सत्ता में आई तो उसके समक्ष अर्थव्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और कालेधन की व्याधियों को दूर कर उसे साफ-सुथरी बनाने की सबसे बड़ी चुनौती थी। सरकार ने इस दिशा में प्रयास किया और काफी हद तक सफलता भी मिली। इसका प्रमाण यह है कि अब पहले से अधिक संख्या में धनाढ्य लोग और व्यवसायी टैक्स दे रहे हैं।

कालेधन और भ्रष्टाचार जैसी व्याधियों की सफाई के लिए कालेधन पर एसआइटी बनायी, बेनामी कानून में संशोधन किया और विदेशी कालेधन पर नया कानून बनाया लेकिन सबसे कठोर और साहसिक कदम नोटबंदी था। इससे लोगों को कठिनाई भी हुई, खासकर असंगठित क्षेत्र पर इसका प्रतिकूल असर पड़ा लेकिन इसका सबसे बड़ा सकारात्मक असर यह हुआ कि करदाताओं की संख्या में बड़ी उछाल आई। यही ट्रेंड एक जुलाई 2017 से जीएसटी लागू होने के बाद दिखा। यह सच है कि जीएसटी के लागू होने में शुरुआती कठिनाइयां आईं लेकिन इससे ईमानदारीपूर्वक बिजनेस करना आसान हो गया है।

वंचित वर्ग को विकास की मुख्यधारा में लाने का भी बड़ा प्रयास हुआ। 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के बाद देश में एक खास वर्ग ने तो हर मामले में तरक्की की लेकिन एक बड़ा वर्ग विकास से वंचित रह गया। वंचित लोगों को औपचारिक अर्थव्यवस्था से जोड़ने और उनका जीवन स्तर उठाने की कोशिश सरकार ने की।

जन धन से खोला बैंक का दरवाजा

जन धन योजना के तहत अब तक लगभग 32 करोड़ बैंक खाते खोले जा चुके हैं और 24 करोड़ लोगों को रुपे डेबिट कार्ड दिए जा चुके हैं। गरीबों को बैंकिंग सेवा उनके नजदीक मिले इसके लिए सवा लाख से अधिक बैंक मित्र भी नियुक्त हुए।

आसान हुई फंडिंग

भारतीय अर्थव्यवस्था में एक बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र का रहा है। इस क्षेत्र में काम करने वालों के जीवन में सबसे बड़ी कठिनाई वित्तीय संसाधन जुटाने की थी। बैंक उन्हें कर्ज नहीं देते थे, लिहाजा वे ऊंची ब्याज दर पर साहूकारों से लोन लेने को मजबूर थे। ऐसे उद्यमियों का जीवन आसान करने के लिए आठ अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना शुरू की गई। जिसके तहत अब तक 4.81 करोड़ लोन दिए जा चुके हैं। इस योजना का बड़ा लाभ महिला उद्यमियों को पहुंचा है।

सामाजिक सुरक्षा से आया बदलाव

मोदी सरकार ने जिस समय देश की बागडोर संभाली, उस समय आम लोगों के जीवन में एक बड़ी समस्या सामाजिक सुरक्षा के अभाव की थी। पीएम ने सालभर के भीतर इस कमी को पूरा करने के लिए कारगर कदम उठाया। 9 मई 2015 को सामाजिक सुरक्षा से वंचित वर्ग को ‘प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना’, ‘प्रधानमंत्री जीवन च्योति बीमा योजना’ और ‘अटल पेंशन योजना’ के रूप में तिहरी सौगात दी। अब तक प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत 13 करोड़ से अधिक और प्रधानमंत्री जीवन च्योति योजना के तहत 5 करोड़ से अधिक लोगों का बीमा हो चुका है। अटल पेंशन योजना के सदस्यों की संख्या भी एक करोड़ से अधिक हो गई है। 


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