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फंसे कर्ज को लेकर बैंकों का ही होता है राइट ऑफ का अंतिम फैसला, जानें क्‍या कहते हैं नियम

भाजपा विपक्ष में थी तब उसने उसी तरह से यूपीए को इस मुद्दे पर घेरा था जैसे तब कांग्रेस ने वैसे ही बैंकिंग प्रबंधन पर जवाब दिया था जैसे अब राजग सरकार कर रही है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 29 Apr 2020 07:08 PM (IST)Updated: Wed, 29 Apr 2020 07:08 PM (IST)
फंसे कर्ज को लेकर बैंकों का ही होता है राइट ऑफ का अंतिम फैसला, जानें क्‍या कहते हैं नियम
फंसे कर्ज को लेकर बैंकों का ही होता है राइट ऑफ का अंतिम फैसला, जानें क्‍या कहते हैं नियम

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। फंसे कर्जे को लेकर एक बार फिर सत्ता पक्ष व विपक्ष आमने सामने है। इस बार फंसे कर्जे (एनपीए) की राशि को बट्टे खाते यानी राइट ऑफ करने को लेकर वाद विवाद चल रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर राजनीतिक पार्टियां अपने अपने हिसाब से उठाती हैं। मसलन, जब भाजपा विपक्ष में थी तब उसने उसी तरह से यूपीए को इस मुद्दे पर घेरा था जैसे तब कांग्रेस ने वैसे ही बैंकिंग प्रबंधन पर जवाब दिया था जैसे अब राजग सरकार कर रही है। 

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एनपीए को बट्टे खाते को लेकर आरबीआइ की नहीं है स्पष्ट नीति

असलियत में फंसे कर्जे को लेकर आरबीआइ ने कोई ठोस नियम नहीं बनाये हैं बल्कि इस बारे में अंतिम फैसला करने की जिम्मेदारी बैंकों के उपर छोड़ रखी है। जब भी एनपीए ज्यादा होता है तब बट्टे खाते में डालने वाली राशि भी ज्यादा होती है। 2009-14 के बीच 1,45,226 करोड़ रुपये बट्टे खाते में गया। वर्ष 2010-11 के बाद से ही बैंकों का एनपीए बढ़ना शुरु हो गया था और इसके साथ ही बट्टे खाते में डाली जाने वाली राशि भी बढ़ने लगी थी। यही कारण है कि 2014-19 के बीच 6,24,210 करोड़ रुपये बट्टा खाता में गया।

वर्ष 2012-13 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने 32,992 करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली थी, तब भाजपा ने इसे संसद में उठाया था। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने लोकसभा में बैंकों के इस कदम को उन्हीं तर्कों के साथ सही ठहराया था जिसे अभी वित्त मंत्री सीतारमण कर रही हैं। 

अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था की है सर्वमान्य नीति 

बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक राइट ऑफ करने को लेकर आरबीआइ के नियम बेहद उदार हैं। इसमें केंद्रीय बैंक ने सिर्फ आधार तय किया हुआ है और तकनीकी तौर पर किस खाते की कितनी राशि को बट्टे खाते में डालना है, इसका अंतिम फैसला बैंक बोर्ड ही करता है। अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग व्यवस्था में यह सर्वमान्य नियम है। तकनीकी तौर पर बकाये राशि को बट्टे खाते में डालना बैंकों के वित्तीय हेल्थ को देखते हुए भी जरूरी है।

बकाये राशि को राइट ऑफ करने का मतलब यह नहीं हुआ कि उस खाताधारक से कर्ज वसूली नहीं होगी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण नीरव मोदी है जिस पर बकाये पूरी राशि पीएनबी (13,473 करोड़ रुपये) और एसबीआइ (13,432 करोड़ रुपये) बट्टे खाते में डाल चुके हैं लेकिन वसूली के लिए बैंकों की तरफ से लगातार कोशिश चल रही है।

बट्टे खाते में डाली जाने वाली राशि में और वृद्धि होगी

बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक आने वाले महीनों में बट्टे खाते में डाली जाने वाली राशि में और वृद्धि होगी क्योंकि कोविड-19 की वजह से उद्योग जगत पर भारी दवाब है। दिवालिया कानून के तहत कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर लगी रोक का भी असर होगा। हालात ऐसे बन रहे हैं कि कर्ज की वसूली की पूरी प्रक्रिया प्रभावित होगी। आरबीआइ के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर, 2019 तक वाणिज्यिक बैंकों का कुल एनपीए 9,58,156 करोड़ रुपये था। यह राशि दिसंबर, 2018 में 10,36,187 करोड़ रुपये की थी। वर्ष 2014 से वर्ष 2019 के दौरान बैंकों ने फंसे कर्जे के 5,12,687 करोड़ रुपये की राशि वसूल की थी जो अपने आप में रिकार्ड है। फिलहाल, अब हालात बदलता दिख रहा है।


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