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पर्यावरण नीति के लिए की गई अमेरिकी प्लान की नकल

एक नया खुलासा हुआ है कि प्रकाश जावड़ेकर के कार्यकाल के दौरान पर्यावरण मंत्रालय ने एनवायरमेंट सप्लीमेंट प्लान पूरी तरह से अमेेरिकी प्लान से कॉपी कर ली थी।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Fri, 08 Jul 2016 10:17 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jul 2016 09:15 AM (IST)
पर्यावरण नीति के लिए की गई अमेरिकी प्लान की नकल

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विवादित रहे पर्यावरण मंत्रालय में भी गैर विवादित रहे प्रकाश जावड़ेकर पर अब सवाल खड़ा हो गया है। उनके कार्यकाल में पर्यावरण मंत्रालय ने एनवायरन्मेंट सप्लीमेंट प्लान पूरी तरह अमेरिकी प्लान से कापी कर ली थी। यह खुलासा तब हुआ है जब दो दिन पहले ही प्रोन्नत होकर उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का जिम्मा संभाला है। ऐसे में जावड़ेकर के कार्यकाल में मंत्रालय के अफसरों की दक्षता पर सवाल उठने लगे हैं। जावड़ेकर इस पर प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध नहीं थे और पर्यावरण मंत्रालय ने चुप्पी साधे रखना ही उचित समझा।

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अमेरिका के पर्यावरण नियमों की अक्षरश: नकल करने का मामला एनवायरमेंट सप्लीमेंट प्लान (पर्यावरण पूरक योजना) से जुड़ा है जिसका ड्राफ्ट हाल में मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर जनता की टिप्पणी के लिए डाला है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस दस्तावेज के जरिए मंत्रालय परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए जरूरी पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआइए) की मौजूदा प्रक्रिया को कमजोर बनाने की कोशिश कर रही है। इसलिए मंत्रालय का यह कदम पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से बेहद गंभीर है।

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हालांकि इससे भी गंभीर मामला यह है कि पर्यावरण मंत्रालय ने एनवायरमेंट सप्लीमेंट प्लान का दस्तावेज तैयार करने के लिए अपने देश की परिस्थितियों और जरूरतों पर चिंता किए बगैर इसका अधिकांश भाग अमेरिकी एनवायरमेंट सप्लीमेंट प्लान से अक्षरश: नकल करके लिख दिया है। एनवायरमेंट सप्लीमेंट प्लान के मसौदे में 3850 शब्द हैं जिनमें से करीब 2900 शब्द अमेरिकी एनवायरमेंट सप्लीमेंट प्लान से ही अक्षरश: नकल करके लिख दिए गए हैं।

असल में मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव आकलन नियम 2016 में संशोधन करने के लिए एक अधिसूचना का मसौदा जारी किया था जिसमें एनवायरनमेंट सप्लीमेंट प्लान का प्रावधान किया गया है। इस प्लान के अनुसार जो भी परियोजनाएं पर्यावरण कानून का उल्लंघन करती हैं वे एनवायरनमेंट सप्लीमेंट प्लान के माध्यम से अपना कामकाज जारी रख सकती हैं। विशेषज्ञ मंत्रालय के इस कदम को परियोजनाओं के पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों के आकलन की मौजूदा व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास बता रहे हैं।

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उल्लेखनीय है कि पर्यावरण प्रभाव आकलन की शुरुआत 1992 की रियो अर्थ समिट के बाद शुरु हुई थी जहां 170 देशों ने पर्यावरण संरक्षण की जरूरत और आर्थिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करने पर जोर दिया गया था। इस लक्ष्य को हासिल करने में परियोजनाओं के पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रक्रिया एक प्रमुख टूल है। ऐसे में अगर यह प्रक्रिया कमजोर हो जाती है तो पर्यावरण संरक्षण की कोशिशों को धक्का लगेगा।


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