इन फैसलों के चलते सुर्खियों में रहे हैं जस्टिस गोगोई, जानें कैसे होती है CJI की नियुक्ति
यदि जस्टिस गोगोई तीन अक्टूबर को शपथ लेते हैं तो वह देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश होंगे और 17 नंवबर 2019 तक उनका कार्यकाल होगा।
नई दिल्ली [जेएनएन]। देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा दो अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर अपने बाद सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस रंजन गोगोई के नाम की सिफारिश केंद्र सरकार से की है। अगर जस्टिस गोगोई देश के मुख्य न्यायाधीश बनते हैं तो वह इस पद पर पहुंचने वाले पूर्वोत्तर भारत के पहले मुख्य न्यायधीश होंगे। यदि जस्टिस गोगोई तीन अक्टूबर को शपथ लेते हैं तो वह देश के 46वें प्रधान न्यायाधीश होंगे और 17 नंवबर 2019 तक उनका कार्यकाल होगा। बतौर सुप्रीम कोर्ट के जज पिछले छह वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने कई अहम फैसले दिए हैं। इसके चलते वह सुर्खियों में रहे। आइए जानते हैं उनके अहम फैसलों के बारे में और इसके साथ यह भी जानेंगे कि प्रधान न्यायाधीश की कैसे नियुक्ति होती है। उन्हें कैसे पद से हटाया जाता है और क्या हैं उनके प्रमुख अधिकार।
कब-कब सुर्खियों में रहे जस्टिस गोगाेई
सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में जस्टिस रंजन गोगोई कई पीठों में शामिल रहे। इस दौरान उन्होंने कई अहम फैसले भी सुनाए हैं।
1- चुनाव के दौरान उम्मीदवारों की संपत्ति, शिक्षा व चल रहे मुकदमों का ब्यौरा देने के लिए ओदश देने वाली पीठ में जस्टिस रंजन गोगोई भी शामिल थे।
2- मई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकारी विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के प्रधान न्यायाधीश की तस्वीरें ही शामिल हो सकती हैं। इसका मकसद यह सुनिचित करना था कि राजनेता राजनीतिक फायदे के लिए करदाता के पैसे का बेजा इस्तेमाल नहीं कर सकें। इस फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की गई थी, जिसमें गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की थी।
3- वर्ष 2016 में जस्टिस गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मार्कंडेय काटजू को अवमानना का नोटिश भेजा था। जस्टिस काटजू ने अपने एक फेसबुक पोस्ट में सोम्या दुष्कर्म और हत्या मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले की निंदा की थी। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को दुष्कर्म का दोषी करार दिया, लेकिन हत्या का नहीं। यह फैसला जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिया था। अवमानना नोटिस के बाद जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने फेसबुक के पोस्ट के लिए माफी भी मांगी थी।
4- कोलकाता हाईकोर्ट के जज कर्णन को छह महीने की कैद की सजा सुनाई और असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर एनआरसी बनाने वाली पीठ में शामिल रह चुके हैं। जाटों को केंद्रीय सेवा से बाहर रखने वाली पीठ का भी हिस्सा रह चुके हैं जस्टिस गोगोई।
कौन हैं रजंन गोगाेई
जन्म : 18 नवंबर 1954 को असम के डिब्रूगढ़ में हुआ।
शिक्षा : उनकी शुरुआती शिक्षा डॉन वास्को स्कूल में हुई। इंटरमीडिएट की पढ़ाई काटेन कॉलेज गुवाहटी से हुई । दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में स्नातक की शिक्षा पूरी की। इसके बाद डीयू से कानून की डिग्री हासिल की।
करियर : 1978 में गुवाहाटी हाईकोर्ट में बतौर वकील करियर की शुरुआत की। 28 फरवरी 2001 को गुवाहटी हाईकोर्ट का जज बनाया गया। इसके बाद 9 सितंबर 2010 को उनका तबादला पंजाब एवं हरियाणा होईकोर्ट में हो गया। 12 फरवरी 2011 को वह पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हुए। इस पद पर वह करीब एक वर्ष तक रहे। 23 अप्रैल 2012 काे वह सुप्रीम कोर्ट के जज बने।
क्या है परंपरा
मौजूदा मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के बाद शीर्ष अदालत में सबसे ऊपर नाम जस्टिस रंजन गोगोई का ही है। परंपरा के मुताबिक मौजूदा प्रधान न्यायाधीश ही अगले चीफ जस्टिस की सिफारिश करते हैं। इसमें सबसे वरिष्ठ जज के नाम की सिफारिश केंद्र सरकार से की जाती है। सरकार के लिए यह सुझाव बाध्यकारी नहीं है। लेकिन मुख्य न्यायाधीश के सुझाव को केंद्र सरकार अमूमन मान लेती है।
कैसे होती है नियुक्ति
भारतीय संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय के सभी जजों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। हालांकि इसके लिए वह मंत्रिमंडल की सलाह के अलावा अन्य लोगों की भी सलाह ले सकते हैं। जबकि देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में वह उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के ऐसे जजों से राय ले सकते हैं, जिन्हें वह इसके लिए उपयुक्त समझें।
1993 में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच का फैसला
इस संबंध में 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने नौ जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया कि यदि सुप्रीम कोर्ट का वरिष्ठतम न्यायाधीश पद धारण करने के लिए उपयुक्त है तो उसे मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति किया जाना चाहिए। इस फैसले से साफ है कि नियुक्ति के मामले में वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए। जबकि उच्चतम न्यायालय के अन्य जजों की नियुक्ति के मामलों में मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेना अनिवार्य है।
क्या है अनुच्छेद 124 (2)
अनुच्छेद 124 (2) के अनुसार मुख्य न्यायाधीश अपनी इच्छा के अनुरूप सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जजों से परामर्श ले सकता है। संवधिान में मुख्य न्यायाधीश के लिए कोई अलग से प्रावधान नहीं है। अन्य न्यायाधीशों के नियुक्ति के लिए जो योग्यताएं संविधान में दी गईं हैं, वही मुख्य न्यायाधीश के लिए भी लागू होती हैं। संविधान में योग्यताएं निर्धारित की गई हैं वे इस प्रकार हैं...
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- कानून या संविधान का जानकार होना चाहिए।
- किसी उच्च न्यायालय में पांच वर्ष रह चुका हो।
- या किसी उच्च न्यायालय में दस वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में रहा हो।
- इसके अलावा वह राष्ट्रपति की द्ष्टि में कानून का जानकार होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश के अधिकार
उच्चतम न्यायालय में हालांकि सभी जज समान हाेते हैं। लेकिन मुख्य न्यायाधीश उनमें से पहला हाेता है। मुख्य न्यायाधीश प्रशासनिक प्रमुख होता है। इसके चलते अदालत के नियम और कायदे वही बनाता है। संवैधानिक पीठ के गठन का मामला हो या किसी मामले की सुनवाई कौन सा जज करेगा यह शक्ति मुख्य न्यायाधीश के पास होती है। किस पीठ में कौन सा जज होगा, यह फैसला मुख्य न्यायाधीश करता है। भारत के सवंधिान में न्यायपालिका को विशेष महत्व दिया गया है। संविधान में केंद्र व राज्यों के लिए एक न्यायप्रणाली की व्यवस्था की गई है, जिसमें सर्वोच्च व अंतिम अपीलीय न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ही है। सुप्रीम कोर्ट का मुखिया होता है चीफ जस्टिस।
आपातकालीन परिस्थिति में देश में अगर राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति का पद अचानक से रिक्त हो जाए तो राष्ट्रपति की भूमिका का निर्वहन मुख्य न्यायाधीश ही करते हैं। इसके साथ ही संविधान की व्याख्या करने की शक्ति भी सुप्रीम कोर्ट के पास ही है। देश की न्याय प्रणाली क्या है। कैसे होती है मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति। क्या हैं उसके अधिकार। साथ ही जानेंगे कालेजियम व्यवस्था क्या है। यह कब अस्तित्व में आई।
जजों को हटाने की क्या है प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश कुछ कारणों से ही अपने पद पर नहीं रह सकते हैं। उनमें शामिल हैं 65 साल की उम्र से पहले ही राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देने पर। संसद के दोनों सदनों द्वारा कुल सदस्य संख्या के बहुमत और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा हटाए जाने पर। लेकिन सदन में इसके लिए दो ही आधार होते हैं। पहला साबित कदाचार या दूसरा असर्मथता। यह उच्चतम न्यायालय के सभी जजों या प्रधान न्यायाधीश के साथ भी लागू होता है।