भाजपा में अब परिक्रमा नहीं पराक्रम
भाजपा का चेहरा, चरित्र और चिंतन तो पहले ही बदलने लगा था अब पूरा स्वरूप बदलेगा। अमित भाई शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पार्टी की सर्वोच्च कार्यकारिणी ने भी सील ठोक दी है। उसके साथ ही बुनियादी बदलाव का संकेत भी मिलने लगा है। सरकार और संगठन का सामंजस्य और वेवलेंथ जहां मजबूत होगा, वहीं संगठन के अंदर युवा जोश का प्रवाह ते
नई दिल्ली। भाजपा का चेहरा, चरित्र और चिंतन तो पहले ही बदलने लगा था अब पूरा स्वरूप बदलेगा। अमित भाई शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पार्टी की सर्वोच्च कार्यकारिणी ने भी सील ठोक दी है। उसके साथ ही बुनियादी बदलाव का संकेत भी मिलने लगा है। सरकार और संगठन का सामंजस्य और वेवलेंथ जहां मजबूत होगा, वहीं संगठन के अंदर युवा जोश का प्रवाह तेज होगा। परिक्रमा की बजाय पराक्रम का युग आरंभ होगा।
नरेंद्र भाई मोदी को पार्टी का चेहरा बनाकर भाजपा पहले ही ऐतिहासिक जीत का स्वाद चख चुकी है। उनके कमान संभालते ही न सिर्फ सरकार में बल्कि संगठन में भी वर्क कल्चर बदलने लगा था। जीत में अहम भूमिका निभाने वाले शाह के हाथ में संगठन की कमान फिर से सफलता का आधार बनाने लगी है। शनिवार को राष्ट्रीय परिषद की बैठक मे यह शायद ही किसी छिपा रहा हो कि सरकार के मुखिया और संगठन के मुखिया का आपसी विश्वास और भरोसा हर समस्या का समाधान खोज सकता है। खुद प्रधानमंत्री मोदी यह जताने से नहीं चूके कि संगठन की कार्ययोजना से तारतम्य बिठाकर सरकार काम करेगी। शाह ने भी यह भरोसा दिलाने में देर नही लगाई कि संगठन का हर कार्यकर्ता सरकार और जनता के बीच सेतु की तरह काम करेगा। केंद्र में सरकार गठन के बाद भाजपा के लिए दूसरी बड़ी जीत यह भी है कि संगठन एक समर्थ व्यक्ति के हाथ है जिसने खुद को साबित कर दिया है और जिसे सरकार की छवि की भी पूरी चिंता है। शायद यही कारण है कि उन्होंने कार्यकर्ताओं को निर्देश दे दिया है कि मंत्रालय की परिक्रमा करने की बजाय पार्टी में आएं और वहीं सरकार के मंत्री उनकी समस्याओं का निदान करेंगे। शनिवार को ही शाह को नई कार्यकारिणी, परिषद, संसदीय बोर्ड समेत कुछ दूसरी समितियों के गठन का अधिकार भी एक स्वर से दे दिया गया। ध्यान रहे कि महज 50 साल के शाह भाजपा के सबसे युवा अध्यक्ष हैं। अगले कुछ दिनों में उनकी नई टीम की घोषणा हो सकती है। तारतम्य मिले, वेवलेन्थ सही सलामत रहे इसलिए वह अपनी टीम की घोषणा बहुत सूझबूझ के साथ करेंगे। उन्होंने एक दर्जन राज्यों में सरकार गठन का जो महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है उसके बाबत उनकी टीम में सिर्फ पराक्रमी होंगे इससे शायद ही कोई इन्कार करेगा। यानी कार्यक्षमता पहली शर्त होगी। सर्वोच्च निर्णायक संस्था संसदीय बोर्ड मे कुछ विशेष आमंत्रित सदस्य भले हो सकते हैं, लेकिन चेहरा बोर्ड का भी बदलेगा।
अमित शाह की पहली अग्नि परीक्षा महाराष्ट्र , हरियाणा और झारखंड में होने वाली है। इनमें दो ऐसे राज्य हैं जहां पार्टी वर्षो से विपक्ष में बैठने की आदत पाल चुकी है लेकिन भाजपा के पक्ष में दिख रहे मूड, माहौल और मिजाज ने शायद नेतृत्व को यह आदत बदलने के प्रति आश्वस्त कर दिया है। सबसे बड़ी बात है कि सत्ता और संगठन दोनों ही अब एक गाड़ी के दो पहियों की तरह चलते नजर आ रहे हैं। शायद यह पिछली राजग सरकार की भूलों से संघ-भाजपा परिवार ने सीख ली है, जिसका असर अब संगठन-सरकार पर दिखाई दे रहा है।