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प्रदूषण के लिए पराली ही नहीं आप भी हैं जिम्मेदार, सर्वे में सामने आई चौंकाने वाली वजहें

सर्दियों में राजधानी में 36 फीसद प्रदूषण के लिए दिल्ली खुद जिम्मेदार है। 34 प्रतिशत हिस्सेदारी एनसीआर की और शेष 30 फीसद प्रदूषण एनसीआर से सटे शहर व अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार है।

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 01 Nov 2018 03:43 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2018 06:11 PM (IST)
प्रदूषण के लिए पराली ही नहीं आप भी हैं जिम्मेदार, सर्वे में सामने आई चौंकाने वाली वजहें
प्रदूषण के लिए पराली ही नहीं आप भी हैं जिम्मेदार, सर्वे में सामने आई चौंकाने वाली वजहें

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। राजधानी में हर साल की तरह एक बार फिर प्रदूषण चरम पर पहुंचने लगा है। राजधानी में 18 जगहों पर प्रदूषण जानलेवा स्तर पर है। दिवाली और एक सप्ताह बाद तक राजधानी में प्रदूषण चरम पर रहने की आशंका है। इसे देखते हुए दिल्ली में बृहस्पतिवार (एक नवंबर) से ग्रेडेड रिस्पॉश एक्शन प्लान (GRAP) लागू कर दिया गया है। इसकी वजह से कभी भी दिल्ली-एनसीआर में निजी वाहनों पर प्रतिबंध लागू हो सकता है।

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दिल्ली में इस सीजन में प्रत्येक वर्ष बढ़ते प्रदूषण के लिए आसपास के राज्यों हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बड़ी मात्रा में इस दौरान किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने को वजह माना जाता है। केंद्र सरकार ने दिल्ली समेत आसपास के राज्यों में पराली जलाने से रोकने के लिए इस बार 1200 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा भी की थी। ऐसे में हर साल सवाल उठता है कि इस प्रदूषण के लिए क्या पराली जलाना या निजी वाहनों ही जिम्मेदार हैं। इसका जवाब है नहीं, प्रदूषण के केवल एक-दो नहीं बल्कि 25 वजहें हैं। सबकी छोटी-छोटी भूमिका है। मतलब यूं कह सकते हैं कि बूंद-बूंद से प्रदूषण का सागर भर रहा है और इसके लिए हम-आप सब जिम्मेदार हैं।

टेरी संस्था द्वारा जारी एक अध्ययन में प्रदूषण से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए गए हैं। इसके अनुसार सर्दियों से ठीक पहले राजधानी में होने वाले 36 फीसद प्रदूषण के लिए दिल्ली खुद जिम्मेदार है। इसके बाद 34 प्रतिशत हिस्सेदारी एनसीआर के शहरों की होती है। शेष 30 फीसद प्रदूषण एनसीआर से सटे इलाकों और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार से आता है। टेरी ने ये अध्ययन वर्ष 2016 में किया था, जिसे इसी वर्ष अगस्त माह में जारी किया गया है।

कार से ज्यादा बाइक से प्रदूषण
टेरी के अनुसार उन्होंने अपने अध्ययन में जब पीएम 2.5 का आंकलन किया तो हैरान करने वाली वजहें सामने आयीं। प्रदूषण बढ़ने पर सबसे पहले निजी कारों पर रोक लगाई जाती है। जबकि सभी तरह के वाहनों से होने वाले प्रदूषण में सबसे कम 3 फीसद योगदान कारों का है। हल्के वाणिज्यिक वाहन (LCVs) का योगदान मात्र एक फीसद है, क्योंकि दिल्ली एनसीआर में ज्यादातर LCV सीएनजी से चल रहे हैं। अध्ययन से पता चला है कि कार के मुकाबले दो पहिया वाहन दोगुने से भी ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। प्रदूषण में कारों का योगदान जहां 3 फीसद है, वहां दो पहिया वाहनों का योगदान 7 प्रतिशत है। पीएम-2.5 के अध्ययन में पता चला है कि सभी तरह के वाहनों से होने वाले प्रदूषण का कुल योगदान 28 प्रतिशत है। इसमें से सबसे ज्यादा 9 फीसद प्रदूषण ट्रकों व ट्रैक्टर जैसे भारी वाहनों की वजह से होता है। तीन पहिया वाहनों का योगदान 5 फीसद और बसों की वजह से 3 फीसद प्रदूषण हो रहा है।

10-15 साल बाद दिखेगा BS6 वाहनों का असर
टेरी के विशेषज्ञों के अनुसार फिलहाल वाहनों में BS4 इंजन का इस्तेमाल हो रहा है। प्रदूषण नियंत्रम के लिए वर्ष 2020 तक BS6 इंजन वाले वाहनों को उतारने का लक्ष्य है। विशेषज्ञों का मानना है कि BS6 वाहनों का असर 10-15 साल बाद पता चलेगा, जब BS4 श्रेणी के सभी वाहन सड़कों से हट जाएंगे। जब तक पुरानी गाड़ियां सड़क से नहीं हटेंगी, पुरानी तकनीक के वाहन प्रदूषण फैलाते रहेंगे। टेरी ने BS6 स्टैंडर्ड के वाहन उतारने के फैसले का स्वागत किया है।

धूल और उद्योग फैला रहे 48 फीसद प्रदूषण
टेरी के अनुसार पीएम 2.5 बढ़ने के पीछे धूल का 18 प्रतिशत और उद्योगों का 30 प्रतिशत योगदान है। धूल के प्रदूषण में 4 फीसद हिस्सेदारी सड़क की धूल, निर्माण कार्य से उड़ने वाली धूल 1 प्रतिशत व अन्य वजहों का योगदान 13 फीसद है। वहीं उद्योगे के 30 फीसद प्रदूषण में से पावर प्लांट का 6 प्रतिशत, ईंट का 8 प्रतिशत, स्टोन क्रशर 2 फीसद, जबकि अन्य छोटे बड़े उद्योगों से 14 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है।

घर से फैल रहा 10 फीसद प्रदूषण
हैरानी की बात है कि हम अपने घरों को प्रदूषण से मुक्त समझते हैं, लेकिन हमारे घर भी प्रदूषण स्तर को बढ़ाने में 10 फीसद भूमिका निभा रहे हैं। इसमें बायोमास (जैव ईंधन) की भूमिका 9 फीसद, केरोसीन इस्तेमाल की हिस्सेदारी 1 फीसद और घरों में खाना पकाने के लिए प्रयोग होने वाली एलपीजी गैस का योगदान 0.1 फीसद है।

पराली से मात्र 4 फीसद होता है प्रदूषण
अध्ययन में दिलचस्प बात सामने आयी है कि सर्दियों के पूरे मौसम में खेतों में जलाई जाने वाली पराली और बायोमास से फैलने वाले प्रदूषण का योगदान मात्र 4 प्रतिशत है। टेरी के अनुसार प्रदूषण के सभी कारकों में पराली भी एक वजह है। पराली जलाने से लगभग 15 से 20 दिनों के बीच में सबसे अधिक प्रदूषण होता है। इसी बीच किसान सबसे ज्यादा पराली जलाते हैं। इसलिए दिवाली के आसपास के 15-20 दिन प्रदूषण सबसे अधिक रहता है। इन 15 से 20 दिनों में दिल्ली में 30 प्रतिशत प्रदूषण का योगदान पराली जलाने की वजह से होता है। हालांकि, सर्दियों के पूरे मौसम का आंकलन करें तो पराली जलाने से फैलने वाले प्रदूषण का योगदान मात्र 4 फीसद है।

दिल्ली में पीएम 10 के बढ़ने की वजह
टेरी ने सर्दियों के मौसम में पीएम 10 के बढ़ते स्तर पर भी अध्ययन किया है। अध्ययन के अनुसार वाहनों से फैलने वाले प्रदूषण (2.5) की भूमिका 24 प्रतिशत, धूल का योगदान 25 फीसद, उद्योग 27 प्रतिशत, पराली और बायोमास 4 फीसद है। वहीं रिहायशी इलाकों से 9 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। टेरी के अनुसार एनसीआर के तकरीबन 30 लाख घरों में अब भी खाना पकाने के लिए बायोमास का प्रयोग किया जाता है। इससे दिल्ली की हवा प्रदूषित होती है। सिर्फ दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए वाहन, इंडस्ट्री और बायोमास बर्निंग मुख्य तौर पर जिम्मेदार है।

एनसीआर के प्रदूषण से प्रभावित है दिल्ली
टेरी के अनुसार दिल्ली के साथ ही उससे सटे एनसीआर के इलाकों में भी बढ़ते प्रदूषण की स्थिति का अध्ययन किया गया। इसमें नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम जैसे शहरों को प्रमुख रूप से शामिल किया गया। इस अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आयी है। अध्ययन में पता चला कि एनसीआर के शहर, दिल्ली के प्रदूषण को प्रभावित करते हैं। दिल्ली में 40 फीसद प्रदूषण की वजह नोएडा का प्रदूषण है। गाजियाबाद में उद्योगों का प्रदूषण बेहद अधिक है। वहीं गुरुग्राम में वाहनों का प्रदूषण बेहद ज्यादा है। पानीपत में बायोमास बर्निंग प्रदूषण की मुख्य वजह है। इन वजहों से इस सीजन में दिल्ली की दुश्वारियां बढ़ जाती हैं।


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