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आखिर क्‍यों, खजुराहो के मंदिरों की पहचान मरम्मत के नाम पर की जा रही नष्ट!

खजुराहो में मंदिरों की तीन श्रेणी वेस्टर्न, ईस्टर्न और सदर्न हैं, जिनमें कुल 25 मंदिर हैं। हर मंदिर पर इंसान के जन्म से लेकर मरण तक की कलाकृतियां पत्थरों पर अंकित हैं।

By Tilak RajEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 09:55 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 09:55 AM (IST)
आखिर क्‍यों, खजुराहो के मंदिरों की पहचान मरम्मत के नाम पर की जा रही नष्ट!
आखिर क्‍यों, खजुराहो के मंदिरों की पहचान मरम्मत के नाम पर की जा रही नष्ट!

खजुराहो, हरिओम गौड़। चंदेल राजाओं द्वारा 11वीं सदी में बनाए गए खजुराहो के मंदिर बुंदेलखंड ही नहीं पूरे मध्‍यप्रदेश पर्यटन का सिरमौर है, लेकिन, मेंटेनेंस के नाम पर यह पहचान धुंधली और खंडित होती जा रही है। मंदिरों के रख-रखाव के नाम पर कितनी गंभीर लीपापोती हो रही है, इसकी गवाही खुद खजुराहो के मंदिर, उनकी दीवारें, गुंबद व कलश दे रहे हैं। 50 साल पहले खजुराहो के सभी मंदिर जिस रूप में थे उनमें से अधिकांश अब वैसे नहीं रहे।

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आधी सदी से आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया (एएसआइ) खजुराहो के मंदिरों का मेंटेनेंस करवा रही है। स्थिति यह है कि जिस मंदिर की दीवार, गुंबद या फिर कलश की मरम्मत होती है, वह अपना मूल रूप खो देता है। नक्काशी व मूर्तिदार पत्थरों को हटाकर उनकी जगह प्लेन पत्थर लगा दिए जाते हैं। जिस नक्काशी को जीर्ण बताकर हटा दिया जाता है, उसकी जगह लगाया पत्थर, सबसे अलग व भद्दा दिखता है। परिसर में ऐसे गई गुंबद, कलश व दीवारें हैं जिनमें नक्काशीदार पत्थरों की जगह भारी मात्रा में सादा पत्थर लगाए गए हैं। लीपापोती इस दर्जे की हुई है कि कई मंदिरों के गुंबद व कलश की नक्काशी को विलुप्त कर दिया गया है। उनकी जगह सपाट पत्थरों के गुंबद-कलश बना दिए गए।

खो रही पहचान
खजुराहो में मंदिरों की तीन श्रेणी वेस्टर्न, ईस्टर्न और सदर्न हैं, जिनमें कुल 25 मंदिर हैं। हर मंदिर पर इंसान के जन्म से लेकर मरण तक की कलाकृतियां पत्थरों पर अंकित हैं। परिसर की दीवारों, मंदिर के अंदर-बाहर और गुंबद तक में महीन नक्काशी है। पत्थर पर उकेरी गई यही कलाकृतियां खजुराहो की पहचान हैं, जिसे देखने सात समंदर पार से विदेशी भी आते हैं, लेकिन, मंदिरों की यही कलाकृति गायब हो रही हैं। राजस्थान, उड़ीसा में कारीगरों की भरमार ऐसा भी नहीं है कि देश में ऐसे कारीगर न हों जो खजुराहो के मंदिरों जैसी नक्काशी पत्थरों पर जस की तस न उकेर सकें। एएसआइ के अफसर भी मानते हैं कि राजस्थान के जयपुर, उदयपुर, बारां के अलावा उड़ीसा के भुवनेश्वर, कोणार्क में ऐसे कारीगरों की भरमार है जो ऐतिहासिक नक्काशी को हूबहू आकार दे देते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि उन कारीगरों का उपयोग खजुराहो में क्यों नहीं किया जा रहा?

नहीं मिला संतोषजनक जवाब
हमारे सहयोगी न्‍यूजपेपर नईदुनिया के संवाददाता ने खजुराहो में एएसआइ के कर्ताधर्ताओं से ऐसे मेंटेनेंस को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने इस लापरवाही से खुद हो अलग कर लिया और बस इतना ही कहा कि यह पूर्व में रहे अफसरों ने किया है, अब हम क्या कर सकते हैं। खजुराहो के संरक्षण सहायक जीके शर्मा ने कहा कि मरम्मत तो एएसआइ ही कराता है, लेकिन यह मरम्मत मेरे समय में नहीं हुई। पूर्व के अफसरों ने ऐसा क्यों किया? यह मैं कैसे बता सकता हूं। हां यह बात सही है कि देश में आज भी ऐसे कई कारीगर हैं जो पुरातनकाल की नक्काशी को हूबहू बना देते हैं। ऐसे कारीगरों का उपयोग यहां क्यों नहीं हुआ, इस सवाल का जवाब भी पुराने अफसर दे सकते हैं।


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