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गृह मंत्रालय ने राज्यों से कहा, पुलिस आइटी एक्ट की निरस्त धारा 66ए के तहत मामला दर्ज न करें

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के सभी पुलिस थानों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की निरस्त धारा 66ए के तहत मामला दर्ज न करने का निर्देश दें।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 14 Jul 2021 07:41 PM (IST)Updated: Wed, 14 Jul 2021 07:47 PM (IST)
गृह मंत्रालय ने राज्यों से कहा, पुलिस आइटी एक्ट की निरस्त धारा 66ए के तहत मामला दर्ज न करें
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा

नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के सभी पुलिस थानों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की निरस्त धारा 66ए के तहत मामला दर्ज न करने का निर्देश दें। 24 मार्च, 2015 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संवेदनशील बनाने के लिए भी कहा था। गृह मंत्रालय ने यह भी कहा है कि यदि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में धारा के तहत कोई मामला दर्ज किया गया है, आईटी एक्ट, 2000 के 66ए ऐसे मामलों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने 24 मार्च, 2015 को श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ के मामले में अपने फैसले में धारा 66ए को रद्द कर दिया था और आदेश की तारीख से इसे खत्म कर दिया था और इसलिए इस धारा के तहत कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती थी।

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गृह मंत्रालय (एमएचए) ने यह भी अनुरोध किया है कि यदि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत कोई मामला दर्ज किया गया है, तो ऐसे मामलों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

धारा 66ए के तहत लोगों की गिरफ्तारी को लेकर हैरान रह गया सुप्रीम कोर्ट

ज्ञात हो कि धारा 66ए के तहत लोगों पर मामला चलाए जाने की बात पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सोमवार को हैरानी जताई और कहा कि आइटी एक्ट के अंतर्गत धारा 66 ए को 2015 में ही सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया था। रद किए गए इस धारा के अंतर्गत आपत्तिजनक मैसेज करने वाले शख्स को तीन साल के लिए कैद की सजा दी जाती थी और जुर्माना भी लगाया जाता था। जस्टिस आरएफ नरीमन, के एम जोसफ और बी आर गवई ने PUCL नामक एनजीओ संस्था द्वारा दर्ज किए गए आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया।

2019 में कोर्ट ने किया था अलर्ट

सीनियर एडवोकेट संजय पारिख से बेंच ने कहा कि आपको यह हैरानी और आश्चर्यजनक नहीं लगता? 2015 का श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ का फैसला है। यह वास्तव में हैरानी की बात है। जो हो रहा है वह भयावह है। एडवोकेट पारीख ने बताया कि 2019 में कोर्ट द्वारा स्पष्ट निर्देश जारी हुआ सभी राज्य सरकारें 24 मार्च 2015 के फैसले के बारे में पुलिस कर्मियों को संवेदनशील बनाएं, बावजूद इसके इस धारा के तहत हजारों मामले दर्ज कर लिए गए। बेंच ने कहा, 'हां, हमने इससे जुड़े आंकड़े देखें हैं। चिंता न करें, हम कुछ करेंगे।' उन्होंने यह भी कहा कि मामले से निपटने के लिए किसी तरह का तरीका होना चाहिए क्योंकि लोगों को परेशानी हो रही है।


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