Mobile और Social Media बना रहे आपके बच्चों को डिप्रेशन का शिकार; ले जा रहे आपसे दूर
यूनिवर्सिटी ऑफ मोंट्रियाल ने स्कूल के छात्रों पर एक रिसर्च किया है। इस रिसर्च में पाया गया है कि सोशल मीडिया और टीवी शो की वजह से छात्रों में डिप्रेशन की जड़ें गहरी हो रही हैं।
नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। आज के दौर में मोबाइल और कंप्यूटर हमारे जीवन से ऐसे जुड़े हुए हैं कि इन्हें अलग नहीं किया जा सकता। सोशल मीडिया ने आग में घी का काम किया है। उस पर तरह-तरह के ऐप्स, जो बच्चों के बीच खासे मशहूर हैं। खासतौर पर मोबाइल ऐप्स ने तो बच्चों से उनका बचपन ही छीन लिया है। अब बच्चे ग्राउंड में जाकर खेलने की बजाय मोबाइल पर गेम्स खेलना, टिक-टैक वीडियो बनाना और दोस्तों से चैट करना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। ऐसे में एक रिसर्च सामने आई है जो माता-पिता होने के नाते आपकी चिंता बढ़ा सकती है।
क्या है रिसर्च में
यूनिवर्सिटी ऑफ मोंट्रियाल ने स्कूल के छात्रों पर एक रिसर्च किया है। इस रिसर्च में पाया गया है कि सोशल मीडिया और टीवी शो की वजह से छात्रों में डिप्रेशन की जड़ें गहरी हो रही हैं और वे अपने तक ही सीमित होते जा रहे हैं। रिसर्च में बताया गया है कि टीनएजर्स औसतन नौ घंटे ऑनलाइन बिता रहे हैं और इसका असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है। इसी वजह से युवाओं में डिप्रेशन का स्तर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
आप कैसे बचाएं अपने बच्चों को
यूनिवर्सिटी ऑफ मोंट्रियाल की रिसर्च में जो बात सामने आई है उसे साइकोलॉजिस्ट भी सही बता रहे हैं। इसके बावजूद अनुसंधानकर्ताओं को अपनी इस रिसर्च में एक अच्छी बात पता चल गई। उनका कहना है कि इस रिसर्च से अच्छी बात यह पता चली कि बच्चे ऑनलाइन कितना और क्या-क्या देख रहे हैं उससे उनके डिप्रेशन के बारे में शुरुआती जानकारी मिल सकती है। वैसे 20 फीसद लोगों ने जवानी की दहलीज पर कदम रखने तक कभी न कभी कुछ हद तक डिप्रेशन झेला है। चिंताजनक बात यह है कि पिछले कुछ सालों में यह औसत बढ़ी है।
बच्चों में बढ़ रही हैं आत्महत्या की घटनाएं
डिप्रेशन और अन्य दिमागी बीमारियां टीनएजर्स के लिए और भी खतरनाक बनती जा रही हैं। इसका एक उदाहरण इस रूप में सामने आता है कि अब हर 100 मिनट यानि एक घंटे 40 मिनट में एक टीनएजर आत्महत्या कर रहा है। वैसे भी यह एक ऐसी उम्र होती है, जब बच्चों के दिमाग और शरीर में कई बदलाव आते हैं। यही वह समय भी होता है जब उनमें भावनाओं का ज्वार हिलोरे मारता है।
4000 छात्रों पर चार साल तक हुआ रिसर्च
शोधकर्ताओं ने चार साल तक 4000 छात्रों पर रिसर्च किया। इस दौरान उन्होंने 12 से 16 साल के छात्रों को उनके हाई स्कूल के दिनों में अपने रिसर्च के केंद्र में रखा। इस दौरान शोधकर्ताओं ने देखा कि छात्र हर साल उसके पिछले साल के मुकाबले ज्यादा समय सोशल मीडिया पर टीवी देखने में बिता रहे थे। इसी के साथ हर गुजरते साल के साथ उनमें डिप्रेशन की निशानियां भी औसतन बढ़ती जा रही थीं। इस दौरान साल-दर-साल उनके वीडियो गेम खेलने के समय में तो गिरावट आई, लेकिन कंप्यूटर पर अब भी वे उतना ही समय बिता रहे थे।
डिप्रेशन का कारण बन रहा सोशल मीडिया
सोशल मीडिया पर टीवी देखने में बिताए गए हर घंटे के साथ छात्रों के आत्मविश्वास कमी और डिप्रेशन और ज्यादा दिखने लगा। पोस्ट डॉक्टोरल साइकैट्री रिसर्चर डॉ. एलरॉय बोअर्स ने इस रिसर्च को लीड किया है। डॉ. एलरॉय के अनुसार सोशल मीडिया और टीवी वो माध्यम हैं, जिसके जरिए टीनएजर्स ऐसी तस्वीरों से रूबरू होते हैं, जिनमें उनके जैसी ही उम्र के लोग ज्यादा अमीर, ज्यादा अच्छी लाइफस्टाइल जी रहे हैं। इस दौरान उन्हें अहसास होता है कि जिन लोगों को वह सोशल मीडिया या टीवी पर देख रहे हैं उनकी शारीरिक बनावट उनसे ज्यादा अच्छी है। इससे उनमें खुद के लिए हीन भावना आने लगती है और वे डिप्रेशन में जाने लगते हैं। सोशल मीडिया की खराब बात यह भी है कि एक चीज जो किसी को डिप्रेशन की तरफ लेकर जा रही है, यदि उसने वह कंटेंट कंज्यूम किया है तो उसके यूजर विहेवियर को पढ़कर उसे ऐसा ही कंटेंट बार-बार परोसा जाता है। इसकी वजह से वह डिप्रेशन से बाहर निकल ही नहीं पाता।
हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ मोंट्रियाल में साइकैट्रिस्ट और वरिष्ठ लेखक डॉ. पैट्रिसिया कोनरॉड कहते हैं, उनकी रिसर्च सोशल मीडिया को टीनएजर्स में डिप्रेशन की वजह साबित नहीं करती है, बल्कि ऐसा हो सकता है इस थ्योरी का समर्थन करती है। उनका कहना है कि उनकी रिसर्च डिप्रेशन से अपने नौनिहालों को बचाने के रूप में काम कर सकती है। टीनएजर्स को सोशल मीडिया के इस्तेमाल और टीवी देखने को लेकर कुछ हद तक रोक लगाने से उन्हें डिप्रेशन के खतरे से बचाया जा सकता है।