Teachers Day: मन में कुछ करने का दृढ़ संकल्प हो तो मुश्किलों में भी निकल आते रास्ते
देश में ऐसे अनेक युवा है जो बेशक शिक्षण के पेशे से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं लेकिन वक्त पड़ने पर उन्होंने इसकी जिम्मेदारी उठाने में देर नहीं की।
नई दिल्ली [अंशु सिंह]। जब मन में कुछ करने की इच्छा हो और संकल्प दृढ़ हो, तो मुश्किलों के बीच भी रास्ते निकल ही आते हैं। देश में ऐसे अनेक युवा है, जो बेशक शिक्षण के पेशे से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं लेकिन वक्त पड़ने पर उन्होंने इसकी जिम्मेदारी उठाने में देर नहीं की। इस बार मिलिए अलग-अलग पेशों से जुड़े ऐसे ही कुछ युवाओं से, जो शिक्षक-प्रशिक्षक की भूमिका निभा बच्चों को बना रहे हैं देश के भावी कर्णधार...
हाशिये पर रहने वाले गरीब तबके के बच्चों को दे रहे शिक्षा
पूर्वी इंफाल के इबोथोई कॉन्थोजैम पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर काम करते हैं। वे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में ग्लोबल शेपर के तौर पर भी सक्रिय हैं। स्वैच्छिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहते हैं। इन सबके अलावा वह एक शिक्षक भी हैं। समाज के हाशिये पर रहने वाले, गरीब तबके के बच्चों को पढ़ाते हैं।
बताते हैं इबोथोई, ‘मैं शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहता हूं, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की शिक्षा के स्तर में आज भी विशेष अंतर नहीं आया है। कोविड-19 के दौर में जब सभी जगह ऑनलाइन क्लासेज हो रही हैं, तो गांव के बच्चे इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके अलावा, कई के पास स्मार्टफोन तक नहीं है। ऐसे में उन्हें पढ़ाना एक चैलेंज होता है।' वैसे, इबोथोई की कोशिश रहती है कि वे बेसिक फोन से बच्चों तक पहुंचें और उन्हें पढ़ाएं। इसके अलावा, जूम से भी क्लासेज लेते हैं।
मेडिकल स्टूडेंट बनीं शिक्षक
असम के तेजपुर की पूजा मेडिकल की स्टूडेंट हैं। उन्हें अक्सर यह बात कचोटती थी कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले गरीब परिवारों के बच्चों को अच्छी, गुणवत्ता युक्त शिक्षा नहीं मिल पाती है। उन्हें पढ़ाई के साथ घर के कार्यों में भी हाथ बंटाना पड़ता है। ऐसे में एक दिन उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने खाली समय में इन बच्चों के लिए कुछ किया जाए। इस तरह, साल भर पहले वे एक संस्था के साथ वॉलंटियर के रूप में जुड़ीं और गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।
पूजा बताती हैं,‘मैं सोमवार से शुक्रवार तक शाम को तीन घंटे उन्हें फोन से पढ़ाती हूं। वीकेंड्स पर बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान देने के साथ को-करिकुलर एक्टिविटीज करायी जाती है। हमसे चार से लेकर 16 वर्ष की उम्र के बच्चे जुड़े हैं। जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं होती, वहां घरों में असाइनमेंट भेजे जाते हैं। मेरे अलावा, कई और स्टूडेंट वॉलंटियर्स इसमें योगदान दे रहे हैं।'
दिलचस्प यह है कि ये युवा न सिर्फ बच्चों को पढ़ा रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपने पुराने स्मार्टफोन भी उन्हें दिए हैं। पूजा कहती हैं,‘महामारी के कारण हर जरूरतमंद बच्चे तक पहुंच पाना मुश्किल हो रहा है। पर कोशिश जारी है। हम चाहते हैं कि सभी बच्चों का सर्वांगीण विकास हो, क्योंकि इन बच्चों के भी बहुत सारे सपने हैं, जो पूरे होने चाहिए।'
ऑनलाइन सिखाते हैं शतरंज
कृष्णन कार्तिक शतरंज के खिलाड़ी हैं। कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है। रोमानिया, चेक रिपब्लिक, श्रीलंका, मलेशिया जैसे देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। 2013 के वर्ल्ड एमेच्योर चेस चैंपियनशिप में भी उन्होंने भागीदारी की है। लेकिन वे सिर्फ खिलाड़ी नहीं, बल्कि बच्चों-किशोरों-युवाओं को चेस की कोचिंग भी देते हैं। मूल रूप से केरल के पालाकाड जिले के निवासी कृष्णन ने छत्तीसगढ़ के अलावा पुणे से स्नातक की पढ़ाई की है।
2008 में वे चेस से जुड़े और फिर वह उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। अपने बारे में वह दिलचस्प राज बताते हुए कहते हैं, ‘मैं दूरदर्शन पर चेस के मैच देखा करता था। उससे इस खेल में रुचि उत्पन्न हुई और मैंने इंटरनेट पर ग्रैंड मास्टर्स के वीडियोज, उनके डीवीडी देखना एवं किताबें पढ़ना शुरू किया और सीखते-सीखते यहां तक पहुंचा हूं। मैं जो भी जानता हूं, उसे अन्य बच्चों को बताना चाहता हूं।
इसलिए उन्हें ट्रेनिंग देनी शुरू की है।' कार्तिक जूम व स्काइप से चेस की क्लास लेते हैं, जिससे देश ही नहीं, विदेश के बच्चों को भी फायदा मिल रहा है। वह आगे बताते हैं, ‘ऑनलाइन क्लासेज के लिए मुझे सॉफ्टवेयर आदि में थोड़ा निवेश करना पड़ा है। ग्रैंड मास्टर्स के वीडियोज भी खरीदने पड़े हैं। लेकिन इससे अपनी प्रैक्टिस के साथ बच्चों को गाइड कर पाता हूं।' लॉकडाउन के बाद कार्तिक अपने खेल पर फोकस करने के साथ ही ऑनलाइन क्लासेज को जारी रखना चाहते हैं।
देश-दुनिया के बच्चे सीख रहे कथक
दिल्ली के हंसराज कॉलेज से स्नातक के बाद कथक में मास्टर्स (अलंकार) करने वाली अंशिता सुरी युवा नृत्यांगना हैं। नियमित रूप से स्टेज पर प्रस्तुति देती रहती हैं। करीब डेढ़ वर्ष पहले इन्होंने एक संस्थान से जुड़कर नृत्य सिखाने का निर्णय लिया। कोरोना की दस्तक से पहले इस साल की शुरुआत तक सब अच्छा ही चल रहा था। लेकिन फिर परिस्थितियां बदलीं। सब बंद हो गया, तो इन्होंने कथक की ऑनलाइन क्लासेज लेनी शुरू की।
इसके बाद जो प्रतिक्रिया मिली, उसकी उम्मीद नहीं थी। अंशिका बताती हैं, ‘पहले मैं सिर्फ दिल्ली के बच्चों-युवाओं-महिलाओं को सिखा पाती थी। आज केरल, महाराष्ट्र, जैसे अलग-अलग राज्यों के अलावा जर्मनी, ब्रिटेन एवं दूसरे देशों के बच्चों का भी कथक से परिचय करा पा रही हूं। सुखद है कि वे इसमें गहरी रुचि ले रहे हैं। इस वैश्विक जुड़ाव को आगे भी जारी रखना चाहूंगी।' पहले बच्चों के बीच रहकर नृत्य सिखाना और अब जूम पर क्लास लेने में क्या अंतर आया है और वे इसे किस रूप में ले रही हैं?
इस पर अंशिता बताती हैं,‘आमने-सामने होने से स्टूडेंट्स के साथ एक निजी संबंध बन जाता है। खासकर छोटे बच्चों को समझाना आसान होता है। ऑनलाइन में उनके साथ थोड़ी चुनौतियां आती हैं। वे घर के वातावरण में सबके बीच रहकर क्लास ज्वाइन करते हैं। इससे कई बार भटकाव आ जाता है। लेकिन जो वयस्क हैं, उनकी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।
वह अपने शौक को घर बैठे पूरा कर पा रहे हैं, जिसके लिए पहले सोचना पड़ता था।'अंशिता ने नए माहौल में खुद को सकारात्मक तरीके से ढाल लिया है। क्लास से पहले वह उसकी पूरी तैयारी करती हैं। जैसे बच्चों के लिए नोट्स एवं वीडियोज बनाना। उन्हें अभिभावकों के साथ शेयर करना आदि। लेकिन कभी-कभी ऑनलाइन बच्चों से जुड़े रहने के बावजूद उन्हें क्लास में खालीपन का एहसास होता है।
बच्चों के लिए ‘अनंत विद्या’ अभियान
मैं पेशे से एक होटेलियर हूं। लेकिन एक दिन जब सड़क पर रहने वाले बच्चों की जिंदगी को देखा, तो लगा कि उनके लिए कुछ करना चाहिए। इसके बाद हमने अपने यूसीआइ फाउंडेशन के बैनर तले ‘अनंत विद्या’ नाम से एक अभियान शुरू किया, जिसके तहत हम फिलहाल 80 बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्रों के 30 से 35 लोग, स्टूडेंट्स वॉलंटियर के तौर पर पढ़ाने की सेवा देते हैं।
इनमें से कुछ वॉलंटियर्स ने खुद अपने पुराने स्मार्टफोन बच्चों को दिए हैं, ताकि पढ़ाने में सहूलियत हो। अभियान के लिए फंड्स की व्यवस्था क्राउड फंडिंग से की गई है। इसके अलावा, दोस्तों व समाज से भी सहयोग मिला है। इस अभियान के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। जो बच्चे पहले नशा करते थे या भिक्षावृत्ति में संलग्न थे, वे अब पढ़ाई कर रहे हैं। हमारी कोशिश रहेगी कि इनका दाखिला स्कूल में कराएं।
रोहन, संस्थापक, यूसीआइ फाउंडेशन, तेजपुर (असम)