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मरने के बाद कब्र में दफन नहीं होना चाहतीं तस्लीमा नसरीन, रिसर्च के लिए किया अंगदान

तस्लीमा ने मृत्यु के बाद अपने शरीर को दफनाने के बजाए उसे एम्स में मेडिकल रिसर्च में दान देने का फैसला किया है।

By Arti YadavEdited By: Published: Thu, 24 May 2018 01:20 PM (IST)Updated: Thu, 24 May 2018 03:11 PM (IST)
मरने के बाद कब्र में दफन नहीं होना चाहतीं तस्लीमा नसरीन, रिसर्च के लिए किया अंगदान
मरने के बाद कब्र में दफन नहीं होना चाहतीं तस्लीमा नसरीन, रिसर्च के लिए किया अंगदान

नई दिल्ली (जेएनएन)। बांग्लादेश की मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन एक जाना-पहचाना नाम है। वह अक्सर अपने बयानों की वजह से चर्चाओं में रहती हैं। एक बार फिर वह सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह अलग है। तस्लीमा ने एक ऐसा फैसला लिया जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा है।

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दरअसल तस्लीमा ने मृत्यु के बाद अपने शरीर को दफनाने के बजाए उसे एम्स में मेडिकल रिसर्च में दान देने का फैसला किया है। इस बात की जानकारी खुद लेखिका ने अपने ट्विटर हैंडल से दी। तस्लीमा ने एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ एनॉटमी की डोनर स्लिप को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, 'मैं मृत्यु के बाद अपना शरीर एम्स को वैज्ञानिक रिसर्च और शिक्षण से जुड़े उद्देश्यों के लिए दान करती हूं।'

गौरतलब है कि तस्लीमा का जन्म 1962 में बांग्लादेश में हुआ था। वह पेशे से फिजिशियन हैं। तस्लीमा कई किताबें लिख चुकी हैं। वह फेमिनिज्म और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के मुद्दे पर खुलकर लिखती हैं, जिसकी वजह से वह कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। किताब 'लज्जा' की वजह से कट्टरपंथियों ने उनकी मौत पर इनाम तक का एलान कर दिया था, जिसके बाद तस्लीमा बांग्लादेश छोड़कर स्वीडन चल गई थीं। 2005 में तस्लीमा भारत आईं और तब से यही रह रही हैं।

कुछ साल पहले तस्लीमा उस समय चर्चा में आई थी तब उन्होंने इस्लाम के नाम पर आतंक मचाने वालों की कड़ी आलोचना की थी। ढाका में कुछ आतंकियों ने एक रेस्टोरेंट पर हमला कर दिया था और 20 लोगों की हत्या कर दी थी। तस्लीमा ने ट्वीट करते हुए कहा था कि इस्लाम को शांति का धर्म कहना बंद कीजिए। बता दें कि यू तो तस्लीमा मुस्लिम हैं, लेकिन वह खुद को नास्तिक बताती हैं। देश से जुड़े मुद्दों पर तस्लीन खुलकर अपनी बात रखती हैं।


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