Afghanistan Crisis : किसी के भाई और तो किसी के मंगेतर को तालिबान ने मारा, अब भारत और यूएनएचआरसी का सहारा
डॉक्टर बराक बताते हैं अफगानिस्तान में उनके माता पिता और दो भाई रह रहे थे। रविवार को तालिबान के लोगों ने अमेरिकी फोर्सेज की मदद करने के कारण उनके भाई को गोली मार दी। तालिबानियों को पता लग गया था कि वो अमेरिकी फोर्सेज की मदद करता था।
नई दिल्ली, मनीष कुमार। राजधानी दिल्ली के वसंत बिहार में यूनाइटेड नेशन हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (UNHCR) के दफ्तर के बाहर रिफ्यूजी स्टेट्स हासिल के लिए अफगानी नागरिक धरने पर बैठे हैं। उन्हीं में शामिल हैं डॉक्टर ए एस बराक। डॉक्टर बराक छह साल पहले 2015 में अपनी जान बचाकर भारत आ गये थे। लेकिन उनका परिवार अफगानिस्तान में ही था। अब अफगानिस्तान में डॉक्टर बराक के घर पर मातम पसरा है। तालिबान के लोगों ने अमेरिकी फोर्सेज की मदद करने वाले उनके भाई की बीते रविवार को गोली मारकर हत्या कर दी।
डॉक्टर बराक बताते हैं अफगानिस्तान में उनके माता पिता और दो भाई रह रहे थे। रविवार को तालिबान के लोग अमेरिकी फोर्सेज की मदद करने के कारण उनके भाई को घर के पीछे घसीटकर ले गए। फिर गोली मार दी। तालिबानियों को पता लग गया था कि वो अमेरिकी फोर्सेज की मदद करता था।
बताया-कौन से लोग अफगानिस्तान से भाग रहे
डॉक्टर बराक बताते हैं, ऐसे सभी लोग जो अमेरिकी फोर्सेज यानि अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की मदद करते थे उनकी जान को अफगानिस्तान में खतरा है। इसी को देखते हुए जब अमेरिकी फोर्सेज अफगानिस्तान छोड़ रहे थे तो ऐसे लोगों को वहां से बाहर निकाल रहे थे जिससे तालिबान से उनको बचाया जा सके। उनका पहले से ही पता लग गया था कि कुछ गड़बड़ हो सकता है। इसलिये कुछ लोगों को निकाल लिया जो लोग रह गये उनके लिये दुआ करेंगे कि वे सुरक्षित रहे।
दरअसल अमेरिका जब अफगानिस्तान छोड़ रहा था तो उसने कई अफगानियों के लिये स्पेशल इम्मीग्रेंट वीजा जारी किया था। ये वीजा उन अफगानियों को दिया गया था जिन्होंने अमेरिकी फोर्सेज के लिये अपनी जान को जोखिम में डाला था।
इन महिलाओं का नहीं कोई सहारा
यहां धरने में शामिल कई ऐसे अफगानी लोग हैं जो पूर्व में तालिबान के बर्बरता के शिकार रहे हैं अफगानिस्तान पर तालिबान के हुकूमत के बाद खुद और अपने घरों वालों की सुरक्षा के मद्देनजर खुलकर कुछ नहीं कहना चाहते। एक अफगानी महिला जो धरने में शामिल थी चार साल पहले अफगानिस्तान छोड़ भारत आ गई थीं। अब अपनी मां और दो भाईयों के साथ दिल्ली में रहती हैं। वो बताती हैं कि जिनके साथ उनका निकाह तय हुआ था उनकी तालिबानियों ने हत्या कर दी थी। भारत में उनके गुजारे के लिये उनके जीजा अफगानिस्तान से पैसे भेजा करते थे, लेकिन फिलहाल वो भी बंद हो चुका है जिसके चलते उनके सामने वित्तीय संकट खड़ा हो गया है।
प्रदर्शन में शिरकत कर रही एल एसेला अमिनी कहती हैं जो लोग रिफ्यूजी स्टेट्स के लिये आवेदन करते हैं, उनके आवेदनों को यूएनएचसीआर लटका कर रखता है। इतने दिनों में लोगों के पैसे भी खत्म हो जाते हैं तो वो भला कहीं और या वापस कैसे जाएगा। वो कहती हैं कि अफगानिस्तान कोई जाना नहीं चाहता लेकिन यहां भी उनके लिये हालात कोई बेहतर नहीं है। घर चलाने या किराया देने के लिये पैसे नहीं है। अफगानिस्तान जो किराया का पैसा आता था बदले हालात में बंद हो चुका है। वो कहती है कि दूसरे देशों में अफगान रिफ्यूजी को बहुत मदद मिलती है, वेतन भी मिलता है पर यहां कोई सुविधा नहीं मिलती। अमिनी मांग कर रही है यूएनएचसीआर हमें सपोर्ट लेटर दे जिससे वे दूसरे देश में चले जाएं जहां उन्हें रिफ्यूजी का स्टेटस मिल सके और अपने भविष्य को वो सवार सकें।
15467 नागरिक अस्थायी रूप से भारत में रह रहे
जुलाई 2021 तक यूएनएचसीआर की विशेष सुरक्षा और देखभाल के तहत अफगानिस्तान के कम से कम 15467 नागरिक अस्थायी रूप से भारत में रह रहे हैं। भारत में शरणार्थियों के लिए कोई अलग क़ानून नहीं हैं। और अब तक मामला-दर-मामला आधार पर शरणार्थियों को शरण दी गई है। भारत ने शरणार्थियों पर 1951 के कन्वेंशन या शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं किए हैं।अफगानिस्तान में मौजूदा हालात के देखते हुए, भारत ने अफगानों के आवेदनों को तेजी से ट्रैक करने के लिए ई-वीजा की एक नई श्रेणी की शुरुआत की है जो केवल छह महीने के लिए वैध होगा।
(इनपुट-विवेक तिवारी, अनुराग मिश्र और विनीत शरण)