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ताड़मेटला अग्निकांड: आठ साल पहले जला दिया था पूरा गांव, कोई गवाही देने को तैयार नहीं

देश के सबसे संवेदनशील नक्सल प्रभावित जिलों में से एक सुकमा में आज से 8 साल पहले एक घटना घटी जिसे ताड़मेटला अग्निकांड के नाम से जाना जाता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 26 Feb 2019 08:03 PM (IST)Updated: Tue, 26 Feb 2019 08:03 PM (IST)
ताड़मेटला अग्निकांड: आठ साल पहले जला दिया था पूरा गांव, कोई गवाही देने को तैयार नहीं
ताड़मेटला अग्निकांड: आठ साल पहले जला दिया था पूरा गांव, कोई गवाही देने को तैयार नहीं

रायपुर [ हिमांशु शर्मा ]। देश के सबसे संवेदनशील नक्सल प्रभावित जिलों में से एक सुकमा में आज से 8 साल पहले एक घटना घटी जिसे ताड़मेटला अग्निकांड के नाम से जाना जाता है। 11 से 16 मार्च 2011 के दौरान ताड़मेटला और उससे लगी दो बस्तियों तिगमापुर और मोरपली में घुसे अज्ञात लोगों ने पूरे गांव में आग लगा दी थी। कुछ लोग कहते हैं कि यह माओवादी हमला था।

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एक स्थानीय नेता ने अपने बयान में कहा था कि सुरक्षा बलों के जवानों ने इस घटना को अंजाम दिया। घटना के बाद इसकी जांच शुरू हुई। आठ साल से घटना की जांच चल रही है, लेकिन पिछले तीन साल से एक भी ग्रामीण इसकी गवाही के लिए नहीं आया। आखिर किन लोगों ने पूरे गांव को जला दिया था, क्या वे नक्सली थे, या फिर सुरक्षा बल के जवान। क्या इस घटना का साल 2011 के ताड़मेटला नरसंहार से भी कोई कनेक्शन है। यह सारी बातें आज भी एक रहस्य बनी हुई हैं।

आग के हवाले कर दिए थे 270 मकान

गांव में एक भी घर सलामत नहीं बचा। यहां कुल मिलाकर 270 घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। घटना में बहुत से लोग झुलस भी गए थे। घटना के बाद पूरा गांव वीरान हो गया। लोग यहां से पलयन कर गए। इसकी जांच के लिए रिटायर्ड जज टीपी शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी। 375 लोगों को घटना का गवाह बनाया गया। इनमें सरकारी नुमाइंदे, जनप्रतिनिधि और गांव के लोग शामिल थे। मामले में 205 लोगों की गवाही अब तक हुई है। 170 लोग ऐसे हैं जिनकी गवाही पिछले तीन साल से नई हुई। ये 170 लोग गांव के ग्रामीण हैं जो, आयोग के समक्ष गवाही देने नहीं आ रहे हैं। अब आयोग ने जिले के एसपी और कलेक्टर को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे जल्द से जल्द ग्रामीणों को गवाही के लिए आयोग के समक्ष हाजिर कराना सुनिश्चित करें।

यहीं शहीद हुए थे सीआरपीएफ के 76 जवान

इसी ताड़मेटला गांव में अग्नीकांड से ठीक एक साल पहले एक ऐसी घटना घटी थी जिसने हर एक भारतीय को अंदर तक हिला दिया था। यहां 6 अप्रैल 2010 को घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने सीआरपीएफ की एक बटालियन पर हमला किया और पूरी की पूरी बटालियन खत्म हो गई। बटालियन के जवान यहां सर्चिंग के लिए निकले थे। इस हमले में सुरक्षा बल के 76 जवान शहीद हुए थे। यह आज तक का भारत का सबसे बड़ा आंतरिक नरसंहार है।

घटना की सच्चाई जानने के लिए गवाहों का बयान जरूरी

विशेष न्यायिक जांच आयोग के सचिव जस्टिस आरके पंडा ने मीडिया से चर्चा करते हुए बताया कि प्रशासन की ओर से नोटिस तामील किए जाने की जानकारी दी गई है। एक पत्र भी आयोग को गवाहों की ओर से दिया गया है, जिसमें 25 फरवरी को गांव में कई महत्वपूर्ण कामों का हवाला देते हुए गवाहों ने अगली सुनवाई में हाजिर होने की बात लिखी है।

जस्टिस पंडा ने बताया कि सोमवार की सुनवाई में ताड़मेटला व तिम्मापुर के 20 पीड़ितों को गवाही के लिए बुलाया गया था। अभी करीब 170 लोगों का बयान दर्ज करना बाकी है। गवाहों का बयान महत्वपूर्ण है क्योंकि ये लोग पीड़ित पक्ष के हैं।


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