आपातकाल का विरोध करने के बाद सक्रिय राजनीति से जुड़ी थी सुषमा स्वराज
भारतीय राजनीति में एक महिला नेता के तौर पर सुषमा स्वराज की अपनी अलग ही पहचान थी। वो आज भी राजनीति में आने वाली लड़कियों के लिए एक आदर्श हैं।
नई दिल्ली। सुषमा स्वराज भारत की राजनीति का एक ऐसा नाम था जिनके जैसा लोग बनना चाहते थे। उनका व्यक्तित्व, हिंदी और संस्कृत पर पकड़, राजनीति की समझ, लोगों को साथ लेकर चलने की कला जैसे तमाम गुण उनमें विद्यमान थे। वो अचानक से राजनीति में नहीं आई बल्कि पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
आपातकाल के दौरान राजनीति से जुड़ी
आपातकाल का पुरजोर विरोध करने के बाद वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं। साल 2014 में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जबकि इसके पहले इंदिरा गांधी दो बार कार्यवाहक विदेश मंत्री रह चुकी थीं। कैबिनेट में उन्हें शामिल करके उनके कद और काबिलियत को स्वीकारा गया। दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है। ऐसे तमाम तमगे सुषमा स्वराज के नाम पर है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
आज सुषमा स्वराज का जन्मदिन है। उनका जन्म 14 फरवरी, 1952 को अम्बाला छावनी में हुआ था। उन्होंने एस॰डी॰ कालेज अम्बाला छावनी से बी॰ए॰ तथा पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। 13 जुलाई 1975 को उनका विवाह स्वराज कौशल के साथ हुआ, स्वराज कौशल सर्वोच्च न्यायालय में उनके सहकर्मी और साथी अधिवक्ता थे। कौशल बाद में 6 साल तक राज्यसभा में सांसद रहे, और इसके अतिरिक्त वे मिजोरम प्रदेश के राज्यपाल भी रह चुके हैं। उनकी एक पुत्री है उसका नाम बांसुरी है। वो लंदन के इनर टेम्पल में वकालत कर रही हैं।वो एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ और भारत की पूर्व विदेश मंत्री थीं।
उनका साल 2009 में भाजपा द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुना गया था। इस नाते वे भारत की 15 वीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रही हैं। इसके पहले भी वे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रह चुकी थी तथा दिल्ली की मुख्यमन्त्री भी रही। वे सन 2009 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के 19 सदस्यीय चुनाव-प्रचार-समिति की अध्यक्ष भी रही थीं। उनकी माता का नाम लक्ष्मी देवी और पिता का नाम हरदेव शर्मा था। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख सदस्य थे। उनका परिवार मूल रूप से लाहौर के धरमपुरा क्षेत्र का निवासी था, जो अब पाकिस्तान में है।
शिक्षा-दीक्षा
उन्होंने अम्बाला के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत तथा राजनीति विज्ञान में स्नातक किया। 1970 में उन्हें अपने कालेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा के सम्मान से सम्मानित किया गया था। वे तीन साल तक लगातार एस॰डी॰ कालेज छावनी की एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और 3 साल तक राज्य की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी वक्ता भी चुनी गईं। इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से कानून की शिक्षा प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय से भी उन्हें 1973 में सर्वोच्च वक्ता का सम्मान मिला था।
पति-पत्नी दोनों ही राजनीति में
2014 के लोकसभा चुनाव में वे मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से लोकसभा की सदस्या चुनी गयीं। कौशल जी 6 साल तक राज्यसभा में सांसद रहे इसके अलावा वे मिजोरम प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। स्वराज कौशल अभी तक सबसे कम आयु में राज्यपाल का पद प्राप्त करने वाले व्यक्ति हैं। सुषमा स्वराज और उनके पति की उपलब्धियों के ये रिकार्ड लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज करते हुए उन्हें विशेष दम्पत्ति का स्थान दिया गया है। हरियाणा सरकार में श्रम व रोजगार मंत्री रहने वाली सुषमा अम्बाला छावनी से विधायक बनने के बाद लगातार आगे बढ़ती गयीं और बाद में दिल्ली पहुंचकर उन्होंने केन्द्र की राजनीति में सक्रिय रहने का संकल्प लिया जिसमें वे अंत तक सक्रिय थीं।
देश की पुरानी भाषाओं हिन्दी, संस्कृत की पक्षधर
सुषमा स्वराज की हिन्दी पर शानदार पकड़ थी। विदेश मंत्री रहते हुए सुषमा स्वराज ने सितम्बर 2016 में सयुंक्त राष्ट्र में हिन्दी में ही भाषण दिया था। उनके इस भाषण की पूरे देश में चर्चा हुई थी। विश्व हिन्दी सम्मेलनों में वे बढ़-चढ़कर भाग लेतीं थीं। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए भी उन्होंने अनेक प्रयत्न किए। संस्कृत से भी उनका विशेष प्रेम था। वे सदा संस्कृत में शपथ लेतीं थीं। उन्होंने अनेक अवसरों पर संस्कृत में भाषण भी दिया। इसी प्रकार जून 2015 में 16वां विश्व संस्कृत सम्मेलन बैंकाक में
हुआ जिसकी मुख्य अतिथि सुषमा स्वराज थीं। उन्होंने पांच दिन के इस सम्मेलन का उद्घाटन भाषण संस्कृत में दिया था। वे अनेक भाषाओं में पारंगत थीं। हिंदी उत्कृष्ट, अंग्रेजी फ्लूएंट, संस्कृत धाराप्रवाह, हरियाणवी धड़ाधड़, पंजाबी इतनी प्यारी, उर्दू भी इतनी अच्छी। फिर जब कर्नाटक से चुनाव लड़ीं, तो कन्नड़ भी सीख लिया। भाषाज्ञान के साथ वे प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक थीं। एक समय अटल बिहारी वाजपेयी के बाद सबसे लोकप्रिय वक्ता थीं।