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सुप्रीम कोर्ट 10 फीसद आर्थिक आरक्षण का मामला संविधान पीठ को भेजने पर करेगा विचार

संविधान संशोधन कानून 103 की वैधानिकता को मुख्य तौर पर आरक्षण की 50 फीसद की सीलिंग पार होने और आरक्षण का आधार सिर्फ आर्थिक होने के आधार पर चुनौती दी गई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 11 Mar 2019 08:58 PM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 08:58 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट 10 फीसद आर्थिक आरक्षण का मामला संविधान पीठ को भेजने पर करेगा विचार
सुप्रीम कोर्ट 10 फीसद आर्थिक आरक्षण का मामला संविधान पीठ को भेजने पर करेगा विचार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसद आरक्षण देने के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। हालांकि कोर्ट ने सोमवार को कोई भी अंतरिम आदेश जारी करने से इन्कार करते हुए मामले को 28 मार्च को सुनवाई पर लगाए जाने का आदेश दिया।

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ये आदेश मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने 10 फीसद आरक्षण को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिये।

सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कोर्ट से कहा कि सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसद आरक्षण देने वाला कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संविधानपीठ फैसला दे चुकी है जिसमें कहा गया है कि आरक्षण की 50 फीसद की सीमा पार नहीं होनी चाहिए।

आरक्षण की 50 फीसद की सीमा संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है, लेकिन इस 10 फीसद आरक्षण से 50 फीसद की सीमा पार हो रही है। उन्होंने कहा कि यह मामला संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि 10 फीसद आरक्षण पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि इस बीच 50 फीसद की सीमा का उल्लंघन करके काफी नियुक्तियां हो जाएंगी।

केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि वह मामले में विस्तृत जवाब दाखिल करेगी। कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह फिलहाल कोई अंतरिम आदेश जारी करने के इच्छुक नहीं हैं। मामले को 28 मार्च को सुनवाई पर लगाने का आदेश दे रहें हैं तभी कोर्ट विचार करेगा कि इस मामले को संविधान पीठ को भेजे जाने की जरूरत है कि नहीं। कोर्ट ने धवन से कहा कि वह एक संक्षिप्त नोट दाखिल कर अपने बिन्दु कोर्ट को बता दें।

संसद के शीतकालीन सत्र में संविधान में संशोधन कर सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसद आरक्षण देने की व्यवस्था की गई थी। केंद्र सहित कई राज्यों ने इसे लागू भी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में आधा दर्जन से ज्यादा याचिकाएं हैं जिनमें आर्थिक आधार पर आरक्षण को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने गत 25 जनवरी को याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था, लेकिन उस वक्त भी अंतरिम आदेश जारी करने से इन्कार कर दिया था।

याचिकाओं में संविधान संशोधन कानून 103 की वैधानिकता को मुख्य तौर पर आरक्षण की 50 फीसद की सीलिंग पार होने और आरक्षण का आधार सिर्फ आर्थिक होने के आधार पर चुनौती दी गई है। याचिकाओं में इंद्रा साहनी के 1992 के फैसले को आधार बनाया गया है।


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