सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए, कहा- लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की इच्छा ही प्रबल
पीठ के लिए फैसला लिखने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गवई ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अलावा किसी समूह नेता को थोपना लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है और निश्चित रूप से यह नियमों का उल्लंघन है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में एक पंचायत समिति में बहुमत के समर्थन के कारण कांग्रेस के समूह नेता के रूप में निर्वाचित एक सदस्य के चयन को मंजूरी देने के बांबे हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए बुधवार को कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की इच्छा ही प्रबल होती है।
नेता को बहुमत द्वारा चुना जाता है, थोपा नहीं जा सकता
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि किसी नगरपालिका में किसी समूह के नेता को बहुमत द्वारा चुना जाता है, इसे थोपा नहीं जा सकता है और हटाने की प्रक्रिया के अभाव में व्यक्ति के बहुमत का समर्थन खोने के बाद उससे छुटकारा पाने के लिए चयन प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
जस्टिस गवई ने कहा- किसी समूह नेता को थोपना लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता
पीठ के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस गवई ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अलावा किसी समूह नेता को थोपना लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है और निश्चित रूप से यह नियमों का उल्लंघन है। इसमें कहा गया है, 'जैसे ही ऐसा व्यक्ति बहुमत का विश्वास खोता है, वह अवांछित हो जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की इच्छा प्रबल होनी चाहिए।'
शीर्ष अदालत ने बांबे हाई कोर्ट के फैसले को रखा बरकरार
यह फैसला 30 मार्च, 2021 के बांबे हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर एस. संगीता की एक अपील पर आया। हाई कोर्ट ने अहमदनगर के जिला कलेक्टर द्वारा छह जनवरी, 2020 को पारित एक आदेश के खिलाफ दायर संगीता की अपील खारिज कर दी थी। जिला कलेक्टर ने श्रीरामपुर पंचायत समिति पार्टी में वंदना ज्ञानेश्वर मुरकुटे को कांग्रेस के दल नेता के रूप में चुनने की स्वीकृति प्रदान की थी। संगीता और मुरकुटे सहित तीन अन्य को 2017 में हुए चुनाव में पंचायत समिति, श्रीरामपुर के सदस्य के रूप में चुना गया था।
पार्टी के निर्वाचित सदस्यों की बैठक
पार्टी के निर्वाचित सदस्यों की एक बैठक में संगीता को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पंचायत समिति (आइएनसीपीएस) पार्टी के समूह नेता के रूप में चुना गया था और बाद में इस शिकायत के बाद हटा दिया गया था कि उन्होंने आइएनसीपीएस के सदस्यों के अन्य तीन सदस्यों को न तो विश्वास में लिया और न ही दो साल से अधिक समय तक कोई बैठक बुलाई। बाद में संगीता अन्य पार्टी के निर्वाचित सदस्यों की मदद से पंचायत समिति की अध्यक्ष चुन ली गई थीं। हाई कोर्ट ने समूह नेता के पद से हटाने के खिलाफ उनकी अर्जी खारिज कर दी थी।
शीर्ष अदालत ने कहा- अपीलकर्ता को समूह नेता के रूप में चुना गया था
शीर्ष अदालत ने कहा, 'अपीलकर्ता को समूह नेता के रूप में चुना गया था, जब उन्हें आइएनसीपीएस के सभी सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। हालांकि, जब उन्होंने एक अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया तो उन्हें आइएनसीपीएस के बहुमत का समर्थन खो दिया और इस तरह अपने नेतृत्व को बहुमत पर नहीं थोप सकती थीं।'
शीर्ष अदालत ने कहा- राजनीतिक व्यवस्था में शुचिता बनाए रखने के लिए कानून और नियम बने हैं
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि खरीद-फरोख्त को रोकने और राजनीतिक व्यवस्था में शुचिता बनाए रखने के लिए कानून और नियम बनाए गए हैं, लेकिन साथ ही प्रविधानों की व्याख्या इस तरह से नहीं की जा सकती है कि अल्पमत में रहने वाला कोई व्यक्ति खुद को अन्य सदस्यों पर थोपे, जो पूर्ण बहुमत में है।