इस सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा का रखा बरकरार
SC ने 2010 में कोयंबटूर में एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार और उसकी एवं उसके भाई की हत्या के घृणित अपराध में दोषी की मौत की सजा की पुन पुष्टि की।
नई दिल्ली, प्रेट्र। उच्चतम न्यायालय ने 2010 में कोयंबटूर में एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार और उसकी एवं उसके भाई की हत्या के 'घृणित' अपराध में दोषी की मौत की सजा की बृहस्पतिवार को पुन: पुष्टि की। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अगुआई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने एक के मुकाबले दो के बहुमत से फैसला सुनाते हुए दोषी मनोहरन की मौत की सजा पर पुनर्विचार की याचिका खारिज की और कहा कि ऐसा करने का कोई आधार नहीं है।
न्यायमूर्ति नरीमन और सूर्यकांत ने पुनर्विचार याचिका खारिज की जबकि न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि केवल सजा पर उनका विचार अलग है। पीठ ने कहा, 'बहुमत के फैसले के मद्देनजर पुनर्विचार याचिका पूरी तरह खारिज की जाती है।' सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इस सनसनीखेज अपराध के लिए दोषी ठहराये गए मनोहरन की मौत की सजा के अमल पर रोक लगा दी थी।
अदालत ने कहा था कि वह अपने एक अगस्त के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिका पर दलीलें सुनेगा। शीर्ष अदालत ने एक अगस्त को 10 वर्षीय नाबालिग बच्ची से सामूहिक बलात्कार करने और उसे एवं उसके सात वर्षीय भाई को जहर देने के बाद उनके हाथ बांध कर दोनों को नहर में फेंकने के मामले में मनोहरन को मौत की सजा सुनाई थी। पीठ ने इस अपराध को 'दिल दहलाने वाला' और 'नृशंस' बताते हुए दोषी को मृत्युदंड देने के निचली अदालत और मद्रास उच्च न्यायालय के आदेशों को एक के मुकाबले दो के बहुमत से बरकरार रखा था।
मनोहरन और सह आरोपी मोहनकृष्णन ने 29 अक्टूबर, 2010 को इस बच्ची और उसके भाई को स्कूल जाते समय एक मंदिर के बाहर से उठा लिया था। मोहनकृष्णन बाद में एक मुठभेड़ में मारा गया था। दोनों बच्चों के हाथ बांध कर मनोहरन और मोहनकृष्णन ने बच्ची से बलात्कार किया और फिर उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की। जहर से मौत न होने पर उन्होंने बच्चों को नहर में फेंक दिया था, जिसमें वह डूब गए।
न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने एक अगस्त को अपने फैसले में मनोहरन की अपहरण, सामूहिक बलात्कार और हत्या के अपराध में दोषसिद्धी बरकरार रखी थी। बहरहाल, न्यायमूर्ति खन्ना की राय थी कि मौत की सजा के बजाय दोषी को पूरे जीवन के लिए कैद की सजा दी जानी चाहिए।