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सबरीमाला विवाद: पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई आज, 16 नवंबर से खुल रहे मंदिर के कपाट

सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को महिलाओं के हक में अहम फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर के द्वार सभी महिलाओं के लिए खोल दिये।

By Tilak RajEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 10:02 AM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 01:21 PM (IST)
सबरीमाला विवाद: पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई आज, 16 नवंबर से खुल रहे मंदिर के कपाट
सबरीमाला विवाद: पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई आज, 16 नवंबर से खुल रहे मंदिर के कपाट

नई दिल्ली, जेएनएन। कानून और संविधान बड़ा या आस्था...? संविधानवेत्ताओं का मानना है कि पहले एक सुप्रीम कोर्ट है और फिर भगवान। लेकिन श्रद्धालुओं की राय इससे अलग है। इसलिए संविधान और श्रद्धालुओं के बीच सुलह एक बड़ी चुनौती होती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला केस में दायर पुनर्विचार याचिका पर आज सुनवाई। शीर्ष अदालत पहले ही सभी उम्र का महिलाओं को भगवान अयप्पा के इस प्राचीन मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे चुकी है, लेकिन आस्था के नाम पर केरल के हिंदू संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। इस पर जमकर राजनीति भी हो रही है। मंदिर भक्तों के लिए फिर 16 नवंबर को खुलने वाला है। 27 दिसंबर तक भक्त दर्शन कर सकते हैं।

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इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर मे 10 से 50 उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक जारी रखने की मांग वाली तीन नई याचिकाओं पर सुनवाई टाली कोर्ट ने कहा कि वह सबरीमाला मंदिर के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के बाद इन पर सुनवाई करेगा।

सबरीमाला में दर्शन को 550 महिलाओं ने पंजीकरण कराया
केरल के सबरीमाला स्थित मंदिर में प्रवेश कर भगवान अयप्पा का दर्शन-पूजन करने के लिए दस से पचास वर्ष उम्र के बीच की 550 महिलाओं ने ऑनलाइन पंजीकरण कराया है। आगामी त्योहारी सीजन के लिए सबरीमाला मंदिर 16 नवंबर से फिर खुलेगा। इस दौरान ये महिलाएं मंदिर परिसर में प्रवेश कर भगवान का दर्शन करने की इच्छुक हैं। सबरीमाला स्थित मंदिर का संचालन करने वाले त्रावणकोर देवासम बोर्ड के अनुसार, आगामी त्योहारी सीजन के दौरान मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए शुक्रवार तक करीब साढ़े तीन लाख लोगों ने अपना ऑनलाइन पंजीकरण कराया है। इनमें दस से पचास वर्ष उम्र के बीच की 550 महिलाएं भी शामिल हैं। मंदिर में दर्शन-पूजन में किसी भी तरह का व्यवधान न होने पाए, इसके लिए केरल पुलिस ने ऑनलाइन पंजीकरण की यह व्यवस्था की है।

सबरीमाला मामले में विरोध प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं: केरल हाई कोर्ट
केरल हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं है। ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। कोच्चि निवासी गोविंद मधुसूदन की जमानत याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि अगर याचिका पर विचार किया गया तो इससे गलत संदेश जाएगा और इसी तरह की घटनाएं फिर होंगी। मधुसूदन को पिछले महीने उस वक्त गिरफ्तार किया गया था जब वह सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध कर रहा था। मालूम हो कि पुलिस ने अब तक 3,500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है और करीब 540 मामले दर्ज किए हैं। लगभग 100 लोग अभी भी न्यायिक हिरासत में हैं।

ये है पूरा मामला
केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश वर्जित था। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकती थीं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती थीं। इसके पीछे मान्यता थी कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। ऐसे में युवा और किशोरी महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं। सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा, शिव और मोहिनी के पुत्र
पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।

तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर है मंदिर
यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीज़ें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

पिछले साल बनाई गई थी संविधान पीठ
पिछले साल 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने अनुच्छेद-14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद-15 में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव रोकने, अनुच्छेद-17 में छुआछूत को समाप्त करने जैसे सवालों सहित चार मुद्दों पर पूरे मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ के हवाले कर दी थी। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता 'द इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन' ने सबरीमाला स्थित भगवान अयप्पा के इस मंदिर में पिछले 800 साल से महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को चुनौती दी थी। याचिका में केरल सरकार, द त्रावनकोर देवस्वम बोर्ड और मंदिर के मुख्य पुजारी सहित डीएम को 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने की मांग की थी। इस मामले में सात नंवबर 2016 को केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि वह मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को महिलाओं के हक में अहम फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर के द्वार सभी महिलाओं के लिए खोल दिये। अब इस मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश मिलेगा। कोर्ट ने 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक का नियम रद करते हुए कहा है कि यह नियम महिलाओं के साथ भेदभाव है और उनके सम्मान व पूजा अर्चना के मौलिक अधिकार का हनन करता है। शारीरिक कारणों पर महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकना गलत है। लेकिन कोर्ट के फैसले के खिलाफ सबरीमाला में भारी संख्या में लोग सड़कों पर आ गए। प्रदर्शनकारियों के उग्र विरोध के चलते पिछले दिनों तमाम बाधाओं को पार कर मंदिर के दरवाजे तक पहुंचीं कम उम्र की करीब 15 महिलाओं को भगवान अयप्पा का दर्शन करने से रोक दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्हें मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया गया।


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