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इलाहाबाद हाई कोर्ट के सुनवाई के तौर-तरीके को परखेगा सुप्रीम कोर्ट, शीर्ष अदालत ने अपीलों पर सुनवाई की प्रक्रिया का मांगा ब्योरा

न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश के दहेज हत्या के एक मामले में सुनवाई करते हुए संज्ञान लिया। इस मामले में अभियुक्तों ने कुल सजा का लंबा हिस्सा काट लिया है और उनकी अपीलों और जमानत अर्जियों पर सुनवाई का अभी नंबर भी नहीं आया है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Sun, 15 May 2022 10:08 PM (IST)Updated: Sun, 15 May 2022 10:08 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट के सुनवाई के तौर-तरीके को परखेगा सुप्रीम कोर्ट, शीर्ष अदालत ने अपीलों पर सुनवाई की प्रक्रिया का मांगा ब्योरा
जमानत अर्जियों पर सुनवाई न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया है संज्ञान

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सजा के खिलाफ दाखिल अपीलों और जमानत अर्जियों पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबे समय तक सुनवाई न होने और अभियुक्तों के जेल काटते रहने के मामले में संज्ञान लेकर हाई कोर्ट से अपीलों पर सुनवाई के तंत्र और व्यवस्था का पूरा ब्योरा तलब किया है। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट को नोटिस जारी कर 11 जुलाई तक जवाब देने को कहा है और मामले को 14 जुलाई को फिर सुनवाई पर लगाने का निर्देश दिया है।

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न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली चार सदस्यीय पीठ ने उत्तर प्रदेश के दहेज हत्या के एक मामले में सुनवाई करते हुए यह संज्ञान लिया। इस मामले में अभियुक्तों ने कुल सजा का लंबा हिस्सा काट लिया है और उनकी अपीलों और जमानत अर्जियों पर सुनवाई का अभी नंबर भी नहीं आया है। इस मामले में जुलाई 2019 में सास और ससुर को आइपीसी की धारा 304बी (दहेज हत्या) के तहत सात-सात साल और पति को 10 कैद की हुई थी। सजा के खिलाफ तीनों ने सितंबर 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील दाखिल की। साथ ही अपील पर सुनवाई होने तक जमानत देने की मांग वाली अर्जी भी लगाई, लेकिन अभी तक न तो उनकी अपील पर और न ही जमानत अर्जियों पर सुनवाई हो पाई है।

ज्यादातर सजा काट चुके हैं अभियुक्त

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में दर्ज किया है कि सास सात साल में से साढ़े तीन साल कैद काट चुकी है। वहीं, पति 10 वर्ष के कारावास में से साढ़े आठ वर्ष कैद भुगत चुका है और उनकी अपीलें और जमानत अर्जियां हाई कोर्ट में सुनवाई के लिए लिस्ट ही नहीं हुईं। सुप्रीम कोर्ट से अभियुक्तों को जमानत देने की मांग करते हुए अभियुक्तों के वकील ऋषि मल्होत्रा ने पीठ को बताया कि इस मामले में ट्रायल के दौरान पति और ससुर को जमानत नहीं मिली थी सिर्फ सास को स्वास्थ्य के आधार पर जमानत मिली थी। ऐसे में पति और ससुर ट्रायल के दौरान से ही जेल में हैं। ससुर को सात वर्ष की कैद हुई थी और वह अपनी पूरी सजा भुगत कर छूट चुके हैं और उनकी अपील महत्वहीन हो चुकी है।

हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को बनाया पक्षकार

पीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में ऐसे ही लंबे समय से अपीलें लंबित रहने के और भी मामले हैं। कोर्ट ने मौजूदा केस को टेस्ट केस की तरह लेते हुए और मामले को महत्वपूर्ण मानते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को मामले में पक्षकार बनाया है। कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी किया है। पीठ ने रजिस्ट्रार जनरल को 11 जुलाई तक जवाब देने का निर्देश देते हुए अपीलों पर सुनवाई का ब्योरा मांगा है। रजिस्ट्रार जनरल अपने जवाब में बताएंगे कि हाई कोर्ट में उन अपीलों पर सुनवाई का क्या तंत्र हैं जिनमें दोषियों को एक निश्चित अवधि के कारावास की सजा मिली है। यह भी बताएंगे कि जिन मामलों में दस वर्ष या उससे कम सजा हुई है उनमें अपीलों पर सुनवाई और उम्रकैद के मामलों में सुनवाई की क्या व्यवस्था अपनाई जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा है कि जिन मामलों में अपील पर सुनवाई के दौरान सीआरपीसी की धारा 389 में जमानत नहीं मिलती और अभियुक्त जेल में रहते हैं क्या उन अपीलों को सुनवाई में प्राथमिकता दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में कुल लंबित अपीलों का ब्योरा मांगने के साथ ही पूछा है कि क्या अपीलों पर व्यवस्थागत ढंग से जल्दी सुनवाई के लिए कोई नीति बनाई गई है।


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