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कैदियों की समय पूर्व रिहाई पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट, हरियाणा सरकार की नीति पर नोटिस जारी

उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा सरकार की मांग पर हाईकोर्ट के आदेश के उस अंश पर भी रोक लगा दी है जिसमें हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की माफी देने की नई नीति तैयार करने को कहा था।

By Neel RajputEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 09:04 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 09:04 PM (IST)
कैदियों की समय पूर्व रिहाई पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट, हरियाणा सरकार की नीति पर नोटिस जारी
सर्वोच्च न्यायालय ने जारी किया हरियाणा सरकार की नीति पर नोटिस

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कैदियों की समय पूर्व रिहाई की हरियाणा सरकार की नीति पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। कोर्ट ने मामले में विचार का मन बनाते हुए नोटिस जारी किया है। ये नोटिस प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली हरियाणा सरकार और समय पूर्व रिहाई की मांग कर रहे कैदी, दोनों की याचिकाओं पर जारी किया है। इसके अलावा कोर्ट ने हरियाणा सरकार की मांग पर हाईकोर्ट के आदेश के उस अंश पर भी रोक लगा दी है जिसमें हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की माफी देने की नई नीति तैयार करने को कहा था।

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यह मामला खास इसलिए है क्योंकि हरियाणा में कैदियों की समय पूर्व रिहाई की दो नीतियां हैं। एक राज्यपाल को माफी देने की अनुच्छेद 161 में मिली संवैधानिक शक्तियों के तहत 12 अप्रैल 2002 की है और दूसरी राज्य सरकार को सीआरपीसी की धारा 432,433 और 433ए के तहत मिले संवैधानिक अधिकार के तहत बनी 11 अगस्त 2008 की है।

मामले में हत्या के जुर्म में उम्रकैद काट रहे राज कुमार उर्फ बिट्टू ने राज्यपाल की अनुच्छेद 161 के तहत बनी नीति के तहत समय पूर्व रिहाई मांगी है। बिट्टू के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि राज्यपाल की नीति कहती है कि दोषी के 10 साल वास्तविक कारावास काट लेने और चार साल रेमीशन के मिला कर 14 साल पूरे होने पर समय पूर्व रिहाई की जाएगी। जबकि इस मामले में उनका मुवक्किल 13 साल से ज्यादा वास्तविक कारावास भुगत चुका है और रेमीशन मिला कर 17 साल से ज्यादा हो चुके हैं। ऐसे में उसे राज्यपाल की नीति से रिहाई मिलनी चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने तो राज्यपाल की नीति ही नई बनाने का आदेश दे दिया है जो कि ठीक नहीं है। मल्होत्रा का कहना था कि अनुच्छेद 161 के तहत बनी राज्यपाल की नीति ही लागू होनी चाहिए न कि सीआरपीसी के तहत बनी राज्य सरकार की नीति लागू होगी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले हरियाणा सरकार बनाम जगदीश का उदाहरण देते हुए कहा कि उसमें भी 2008 की नीति का मसला शामिल था लेकिन कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि सरकार की नीति राज्यपाल की नीति के ऊपर नहीं हो सकती। राज्यपाल की नीति को नहीं छुआ जा सकता।

दूसरी ओर हरियाणा सरकार की दलील दी थी कि जब राज्य सरकार की समय पूर्व रिहाई की नीतियां मौजूद हैं तो फिर ऐसे में हाईकोर्ट का तीन महीने में नयी नीति बनाने का आदेश देना ठीक नहीं है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कैदी बिट्टू की याचिका पर दिए फैसले में सरकार को राज्यपाल की नयी नीति बनाने का आदेश दिया था और साथ ही सीआरपीसी के तहत बनी नीति के मुताबिक कैदी की रिहाई की अर्जी पर विचार किया जाए। सीआरपीसी के तहत बनी नीति कहती है कि उम्र कैदी के 14 साल वास्तविक कारावास पूरा करने और छह साल रेमीशन मिला कर 20 साल में रिहाई पर विचार हो सकता है।


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