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देवास मल्टीमीडिया बंद करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, एनसीएलटी ने अंतरिक्ष कारपोरेशन के पक्ष में सुनाया था फैसला

देवास मल्टीमीडिया को बंद करने के नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के फैसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अंतिम मुहर लगा दी। संप्रग सरकार के कार्यकाल में देवास मल्टीमीडिया ने इसरो से जुड़े अंतरिक्ष कारपोरेशन के साथ भारत में सेटेलाइट सेवा मुहैया कराने के लिए करार किया था।

By Amit SinghEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 10:41 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 10:41 PM (IST)
देवास मल्टीमीडिया बंद करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, एनसीएलटी ने अंतरिक्ष कारपोरेशन के पक्ष में सुनाया था फैसला
देवास मल्टीमीडिया बंद करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर (जागरण.काम, फाइल फोटो)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: देवास मल्टीमीडिया को बंद करने के नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के फैसले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अंतिम मुहर लगा दी। संप्रग सरकार के कार्यकाल में देवास मल्टीमीडिया ने इसरो से जुड़े अंतरिक्ष कारपोरेशन के साथ भारत में सेटेलाइट सेवा मुहैया कराने के लिए करार किया था। लेकिन अंतरिक्ष कारपोरेशन ने पाया कि देवास मल्टीमीडिया इस काम में फर्जीवाड़ा कर रहा है। इस आधार पर अंतरिक्ष कारपोरेशन, देवास मल्टीमीडिया को बंद कर दिवालिया घोषित करने के लिए एनसीएलटी चली गई।

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एनसीएलटी ने अंतरिक्ष की दलील को सही ठहराते हुए उसके पक्ष में फैसला दिया जिसे देवास मल्टीमीडिया ने एनसीएएलएटी में चुनौती दी। एनसीएएलएटी ने अंतरिक्ष के हक में फैसला दिया जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। देवास और अंतरिक्ष के बीच वर्ष 2005 में सेटेलाइट सेवा को लेकर करार हुआ था जिसे संप्रग सरकार ने वर्ष 2011 में रद किया। जानकारों का कहना है कि विदेशी निवेशकों से संचालित होने वाली देवास मल्टीमीडिया के फर्जीवाड़े को समझने में तब की संप्रग सरकार को पांच साल से अधिक समय लग गए। उस समय 2जी मामला भी सामने आ गया था, इसलिए देवास के साथ करार को आनन-फानन रद कर दिया गया। इतना अधिक समय लेने की वजह से ही देवास मल्टीमीडिया के विदेशी निवेशकों को भारत सरकार के खिलाफ कनाडा की अदालत में मुकदमा दायर करने का मौका मिल गया जहां पिछले साल एयर इंडिया और एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया की विदेश में स्थित संपत्ति को जब्त करने के आदेश दिए गए।

हालांकि इस माह कनाडा की अदालत ने अपने ही फैसले पर रोक लगाते हुए भारत सरकार को राहत दे दी है।अब जानकार यह सवाल उठा रहे हैं कि देवास मल्टीमीडिया के साथ सेटेलाइट सेवा के लिए बिना जांच- परख के करार क्यों किया गया। दूसरा सवाल यह उठ रहा है कि जब देवास के फर्जीवाड़े के आधार पर दोनों के बीच करार को रद किया गया तो फिर उसी समय में देवास के खिलाफ एनसीएलटी में सरकार क्यों नहीं गई।बीजेपी की सरकार बनने के बाद वर्ष 2015 में सीबीआई से इस मामले की जांच कराई गई। फिर जाकर इस मामले का पर्दाफाश हुआ। सोमवार को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देवास मल्टी मीडिया का गठन अंतरिक्ष कारपोरेशन के कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जीवाड़े के उद्देश्य को लेकर किया गया था।


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