सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जमानत देने या नहीं देने का कारण बताने का महत्व को नहीं आंका जा सकता कम
पीठ ने कहा कि सामान्य तौर पर शीर्ष अदालत ऐसे आदेश में हस्तक्षेप नहीं करती। हाई कोर्ट के लिए यह समान रूप से आवश्यक है कि वह अपने विवेकाधिकार का प्रयोग विवेकपूर्ण सावधानी और सख्ती से इस अदालत द्वारा विभिन्न निर्णयों में निर्धारित बुनियादी सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए करे।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जमानत देने या नहीं देने का कारण बताने के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता क्योंकि यही वह सुरक्षा कवच है जो सुनिश्चित करता है कि विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल विवेकपूर्ण तरीके से किया गया है।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने ये टिप्पणियां उस फैसले में कीं जिसमें उसने हत्या के मामले में एक व्यक्ति को इलाहाबाद हाई कोर्ट से मिली जमानत को रद कर दिया। पीठ ने कहा कि जमानत देने या नहीं देने में अपराध की प्रकृति की काफी प्रासंगिकता है।
सामान्य तौर पर शीर्ष अदालत ऐसे आदेश में हस्तक्षेप नहीं करती: पीठ
पीठ के लिए फैसला लिखते हुए जस्टिस मुरारी ने कहा कि जमानत देने या नहीं देने के लिए आवेदन का मूल्यांकन करने का अदालतों के पास कोई सीधा सपाट फार्मूला नहीं है। लेकिन इस बात का निर्धारण करने के लिए कि मामला जमानत देने योग्य है, इसके संतुलन के कई कारक हैं, जिनमें अपराध की प्रकृति, दंड की गंभीरता और पहली नजर में आरोपित की संलिप्तता प्रमुख हैं। जमानत न्यायक्षेत्र के सिद्धांतों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि सामान्य तौर पर शीर्ष अदालत ऐसे आदेश में हस्तक्षेप नहीं करती। लेकिन हाई कोर्ट के लिए यह समान रूप से आवश्यक है कि वह अपने विवेकाधिकार का प्रयोग विवेकपूर्ण, सावधानी और सख्ती से इस अदालत द्वारा विभिन्न निर्णयों में निर्धारित बुनियादी सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए करे।
हाई कोर्ट ने 22 अक्टूबर 2022 को हरजीत को दे दी थी जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने उक्त फैसला दीपक यादव नामक व्यक्ति की अपील पर सुनाया जिसके पिता की नौ जनवरी, 2021 को लखनऊ में आरोपित हरजीत यादव ने कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। हाई कोर्ट ने मुकदमा लंबित रहने के दौरान ही 22 अक्टूबर, 2021 को हरजीत को जमानत दे दी थी।