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विधानसभा निलंबन के लिए प्रबल कारण हो ताकि अगले सत्र में भी सदस्य शामिल न हो सके- SC

महाराष्ट्र विधानसभा निलंबन मामले में 12 विधायकों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधानसभा से एक साल के लिए निलंबन के लिए कोई प्रबल कारण होना चाहिए जिससे सदस्य को अगले सत्र में भी शामिल होने की अनुमति न मिले।

By Monika MinalEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 06:17 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 06:17 AM (IST)
विधानसभा निलंबन के लिए प्रबल कारण हो ताकि अगले सत्र में भी सदस्य शामिल न हो सके- SC
एक साल का निलंबन किसी उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, प्रेट्र।  सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि विधानसभा से एक साल के लिए निलंबन का किसी उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिए। इसके लिए कोई 'प्रबल' कारण होना चाहिए जिससे सदस्य को अगले सत्र में भी शामिल होने की अनुमति न दी जाए। शीर्ष अदालत पीठासीन अधिकारी के साथ कथित दु‌र्व्यवहार करने के आरोप में महाराष्ट्र विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित किए गए भारतीय जनता पार्टी के 12 विधायकों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

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कोर्ट ने कहा कि असली मुद्दा यह है कि निर्णय कितना तर्कसंगत है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि एक साल के लिए विधानसभा से निलंबन निष्कासन से भी बदतर है क्योंकि इसके परिणाम बहुत भयानक हैं और इससे सदन में प्रतिनिधित्व का किसी निर्वाचन क्षेत्र का अधिकार प्रभावित होता है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने महाराष्ट्र की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ए.सुंदरम से कहा कि निर्णय का कोई उद्देश्य होना चाहिए। एक प्रबल कारण होना चाहिए जिससे कि उसे (सदस्य) अगले सत्र में भी भाग लेने की अनुमति न दी जाए। मूल मुद्दा तर्कसंगत निर्णय के सिद्धांत का है।

सुंदरम ने राज्य विधानसभा के भीतर कामकाज पर न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे के मुद्दे पर दलील दी। उन्होंने कहा कि सदन में जो हो रहा है उसकी न्यायिक समीक्षा घोर अवैधता के मामले में ही होगी, अन्यथा इससे सत्ता के पृथककरण के मूल तत्व पर हमला होगा। सुंदरम ने कहा कि अगर मेरे पास दंड देने की शक्ति है, तो संविधान, कोई भी संसदीय कानून परिभाषित नहीं करता है कि सजा क्या हो सकती है। यह विधायिका की शक्ति है कि वह निष्कासन सहित इस तरह दंडित करे जो उसे उचित लगता हो। निलंबन या निष्कासन से निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व से वंचित होना कोई आधार नहीं है।

पीठ ने कहा कि संवैधानिक और कानूनी मानकों के भीतर सीमाएं हैं। जब आप कहते हैं कि कार्रवाई तर्कसंगत होनी चाहिए, तो निलंबन का कुछ उद्देश्य होना चाहिए और और उद्देश्य सत्र के संबंध में होना चाहिए। इसे उस सत्र से आगे नहीं जाना चाहिए। इसके अलावा कुछ भी तर्कहीन होगा। असली मुद्दा निर्णय के तर्कसंगत होने के बारे में है और यह किसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए।

पीठ ने कहा कि एक वर्ष का आपका निर्णय तर्कहीन है क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र छह महीने से अधिक समय तक प्रतिनिधित्व से वंचित हो रहा है। हम अब संसदीय कानून की भावना के बारे में बात कर रहे हैं। यह संविधान की व्याख्या है जिस तरह से इससे निपटा जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी दोहराया कि यह सुप्रीम कोर्ट है जो संविधान की व्याख्या करने में सर्वोच्च है, न कि विधायिका। जिरह अधूरी रही और यह बुधवार को भी जारी रहेगी। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 14 दिसंबर को 12 भाजपा विधायकों की याचिकाओं पर महाराष्ट्र विधानसभा और राज्य सरकार से जवाब मांगा था। इन 12 भाजपा विधायकों ने खुद को एक साल के लिए निलंबित किए जाने के विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव को चुनौती दी है।

इन विधायकों को पिछले साल पांच जुलाई को विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था। राज्य सरकार ने उन पर विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ दु‌र्व्यवहार करने का आरोप लगाया था।

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