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Reservation: जरूरतमंदों तक लाभ पहुंचाने के लिए मलाईदार तबके को बाहर करने का इंतजाम करे सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अब आरक्षण सूची को संशोधित किया जाना चाहिए क्योंकि इससे एक वर्ग को लगातार लाभ मिल रहा है और जरूरतमंद लोग इससे वंचित हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 23 Apr 2020 12:49 PM (IST)Updated: Thu, 23 Apr 2020 02:12 PM (IST)
Reservation: जरूरतमंदों तक लाभ पहुंचाने के लिए मलाईदार तबके को बाहर करने का इंतजाम करे सरकार
Reservation: जरूरतमंदों तक लाभ पहुंचाने के लिए मलाईदार तबके को बाहर करने का इंतजाम करे सरकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आरक्षण केस के एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को इन चीजों की फिर से समीक्षा करनी चाहिए। आरक्षण प्रदान करने के लिए अनुसूचित जातियों, अनुसूचित और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पुरानी सूची पर काम करते रहना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। सरकार को अब ऐसी सूची को संशोधित करना चाहिए क्योंकि 70 साल पहले जिन लोगों को इस सूची में रखा गया था अब वो हर तरह से संपन्न हो चुके हैं। ऐसे लोगों की वजह से अब आरक्षण का असली लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है जिनको आज के समय में इसकी आवश्यकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाभार्थियों की ऐसी सूची को सरकार द्वारा संशोधित किया जाना चाहिए। सरकार को ऐसी सूची में अब ऐसे लोगों को रखना चाहिए जो जरूरतमंद हैं और जिनको आरक्षण की आवश्यकता है। जस्टिस की पांच-न्यायाधीश की पीठ कहा कि पिछले 70 सालों में कुछ समुदायों द्वारा आरक्षण का लाभ उठाया जा रहा है और वे आर्थिक और सामाजिक रूप से ठीकठाक हो चुके हैं मगर अभी भी उसी वर्ग के बाकी लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है क्योंकि पहले से लाभ ले रहे लोगों की वजह से ये लाभ नीचे के लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

जिनको पहले लाभ मिल गया वो ही लाभ लिए जा रहे हैं बाकी उसके इंतजार में हैं। इस वजह से आरक्षित वर्ग के दूसरे लोगों में असंतोष व्याप्त हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि आरक्षित सूची में शामिल ऐसे सभी लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए इसे स्थानीय सरकारों को तय करना है। इसमें कहा गया है कि आरक्षित’ वर्ग के भीतर असंतोष है जिसे सूची को संशोधित करके संतोषजनक किया जा सकता है। 

कोर्ट ने साल 2000 में दाखिल किए गए एक मामले की सुनवाई करते हुए अपना ये फैसला सुनाया। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आंध्र प्रदेश के तत्कालीन राज्य के जनवरी 2000 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षकों के पद के लिए अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया था, यह कहते हुए कि यह "मनमाना" है और "अनुमति नहीं है" “संविधान के तहत। 

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करना "अनुचित" और "अनुचित" होगा और कोई कानून यह नहीं कहता है कि अनुसूचित क्षेत्रों में केवल आदिवासी शिक्षक ही पढ़ा सकते हैं। 1992 के इंद्रा साहनी के फैसले का उल्लेख करते हुए ये फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया गया कि संस्थापक पिता ने कभी भी सभी सीटों के आरक्षण की परिकल्पना नहीं की है और 50 प्रतिशत कोटा नियम होगा। यह नोट किया गया कि 1992 के फैसले के अनुसार, अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है और 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की सीमा के लिए विशेष मामला बनाया जाना है।

पीठ में शामिल जस्टिस इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए ऐसी कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं थीं। यह एक अप्रिय विचार है कि आदिवासियों को केवल आदिवासियों को पढ़ाना चाहिए। जब ​​अन्य स्थानीय निवासी हैं, तो वे क्यों नहीं पढ़ा सकते हैं, यह समझ में नहीं आता है। उन्होंने कहा कि कार्रवाई तर्क को धता बताती है और मनमाना है। आरक्षण प्रदान करके मेरिट को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि 100 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला आदेश "मनमाना, अवैध, अविवेकी और असंवैधानिक है"। सरकार का आदेश है कि अनुसूचित क्षेत्रों में केवल अनुसूचित जनजाति के शिक्षकों को ही नियुक्त किया जाएगा। अदालत ने कहा कि राज्य का आदेश सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण पर 50% की सीमा का उल्लंघन करता है। इस फैसले से आरक्षण पर एक नया विवाद खड़ा हो सकता है, हालांकि कुछ लोगों को एससी और एसटी के लाभार्थियों की सूची से हटाने के लिए क्रीमी लेयर अवधारणा का उपयोग करने की मांग को पहले भी हवा दी जा चुकी है।  


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