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सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक, महाराष्ट्र की 30 फीसद आबादी मराठा, वंचित तबके से तुलना नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा कोटे पर कहा है कि मराठा समुदाय राज्य की कुल आबादी का 30 फीसद है। उसकी तुलना कमजोर तबके से नहीं की जा सकती है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Fri, 11 Sep 2020 06:01 AM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 06:01 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक, महाराष्ट्र की 30 फीसद आबादी मराठा, वंचित तबके से तुलना नहीं
सुप्रीम कोर्ट की दो-टूक, महाराष्ट्र की 30 फीसद आबादी मराठा, वंचित तबके से तुलना नहीं

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 के महाराष्ट्र के मराठा कोटे पर स्थगन आदेश देने के बाद कहा कि मराठी समुदाय राज्य की कुल आबादी का तीस फीसद है। इसलिए उसकी स्थिति की तुलना महाराष्ट्र में समाज के कमजोर तबके से नहीं की जा सकती है। जस्टिस एल. नागेश्वर राव, हेमंत गुप्ता और एस.रवींद्र भट की खंडपीठ ने गुरुवार को कहा कि प्रथम दृष्टया यही राय बनती है कि महाराष्ट्र सरकार संवैधानिक 50 फीसद से अधिक की सीमा के परे जाकर मराठी समुदाय को आरक्षण देने का कोई ठोस कारण नहीं बता पाई है।

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नौकरी में आरक्षण 50 से अधिक नहीं

साल 1992 में मंडल फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्धारित कर दिया था कि शिक्षा और नौकरी में आरक्षण का प्रतिशत कभी भी 50 तक या उससे अधिक नहीं पहुंचने दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा कोटा खारिज करने वाले अपने हालिया फैसले पर कहा कि सरकारी नौकरी में नियुक्ति और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए वर्ष 2020-21 में 2018 के मराठा आरक्षण को लागू नहीं किया जाना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि 2018 के कानून को लागू रखने से जनरल श्रेणी के उम्मीदवारों के प्रति अन्याय होगा। इसलिए शैक्षणिक सत्र 2020-21 से ही मराठा कोटा लागू नहीं किया जाएगा।

मराठा कोटा पर सुप्रीम कोर्ट लगा चुका है रोक

उल्‍लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले ही बुधवार को महाराष्ट्र में नौकरियों और दाखिले में लागू मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक लगा चुका है। हालांकि कोर्ट ने कहा है कि जो लोग इस आरक्षण का लाभ ले चुके हैं उन्हें नहीं हटाया जाएगा। इसके साथ ही तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मराठा आरक्षण का मामला विचार के लिए बड़ी पीठ यानी पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में कानून बना कर महाराष्ट्र में मराठाओं को सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण दिया था।

बॉम्‍बे हाईकोर्ट में दी गई थी चुनौती

इस आरक्षण को पहले बॉम्‍बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने गत वर्ष जून में मराठा आरक्षण कानून पर तो अपनी मुहर लगा दी थी लेकिन कहा था कि 16 फीसद आरक्षण न्यायोचित नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा था कि यह आरक्षण नौकरी में 12 फीसद और दाखिले में 13 फीसद से ज्यादा नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट मे कई याचिकाएं दाखिल हुईं जिसमें बांबे हाईकोर्ट के फैसले और मराठा आरक्षण कानून को चुनौती दी गई है। बुधवार को जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मामला बड़ी पीठ को भेज दिया।

जो नौकरी पा चुके हैं उन्‍हें नहीं हटाया जाएगा

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि फिलहाल नौकरियों और दाखिले मे मराठा आरक्षण लागू नहीं होगा। हालांकि जो लोग इसका लाभ लेकर पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला पा चुके हैं उन्हें डि‌र्स्टब नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद की तय सीमा का उल्लंघन होने के आधार पर मराठा आरक्षण को चुनौती दी गई है। जबकि दूसरी तरफ मराठा आरक्षण की तरफदारी करने वाले पक्षकारों और महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण की 50 फीसद की अधिकतम तय सीमा पर पुनर्विचार किए जाने की मांग की थी।

तय की थी 50 फीसद की अधिकतम सीमा

इन लोगों का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने 1993 में इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसद तय की थी लेकिन इस फैसले को 27 वर्ष बीत चुके हैं तब से अब परिस्थितियों में बहुत बदलाव आ चुका है। वह फैसला नौ न्यायाधीशों की पीठ का था इसलिए इस मामले को 11 न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाए जो कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसद तय किए जाने पर पुनर्विचार करे। महाराष्ट्र सरकार की दलील थी कि महाराष्ट्र में 70-80 फीसद लोग सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं।

मराठा समुदाय पिछड़ा नहीं

यह भी दलील थी कि बहुत से राज्यों ने आरक्षण लागू करने के कानूनों में 50 फीसद की सीमा तोड़ी है। पिछली दो तारीखों पर सुप्रीम कोर्ट में इसी पहलू पर बहस हुई थी। वकीलों का यह भी कहना था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसद आरक्षण देने के मामले में भी 50 फीसद की तय सीमा का उल्लंघन होने का मामला शामिल है। जबकि मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की दलील है कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं है जो कि उसे अलग से आरक्षण दिया जाए। इस आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सीमा (50 फीसद) का उल्लंघन हो रहा है।  


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