सुप्रीम कोर्ट का फैसला, मुखबिर और जांच अधिकारी का एक ही होना दोषमुक्ति का आधार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनडीपीएस एक्ट के तहत आपराधिक मामले में जांच अधिकारी यदि मुखबिर है तो यह दोषमुक्त होने का एकमात्र आधार नहीं बन जाता।
नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सोमवार को कहा कि नार्कोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत आपराधिक मामले में जांच अधिकारी अगर मुखबिर भी है तो इससे पक्षपात नहीं हो जाता और यह आरोपित के दोषमुक्त होने का एकमात्र आधार नहीं बन जाता।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस रविंद्र भट की पीठ इस सवाल पर फैसला सुना रही थी कि अगर जांच अधिकारी और मुखबिर एक ही व्यक्ति है तो क्या एनडीपीएस एक्ट के तहत जांच निरस्त हो जाएगी। पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस बारे में एक समान नियम नहीं हो सकता और न ही इस आशंका पर स्वत: पहुंचा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में केस-टू-केस आधार पर फैसला लेना होगा। 2018 में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने फैसला सुनाया था कि ऐसे मामले में मुकदमा निरस्त हो जाएगा अगर मुखबिर और जांच अधिकारी एक ही व्यक्ति है।
मुकेश सिंह बनाम सरकार (दिल्ली की नार्कोटिक्स ब्रांच) मामले में दो सदस्यीय पीठ ने इस फैसले पर सवाल उठाया था। इसके बाद यह मामला विचार के लिए संविधान पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ शीर्ष अदालत के पूर्व के आदेश से सहमत नहीं हुई।
संविधान पीठ ने कहा कि उन मामलों से संबंधित आदेश में कही गईं चीजें महज विचार थीं और वे उन मामलों के तथ्यों तक ही सीमित थीं। आरोपी महज इस आधार पर बरी होने का हकदार नहीं है कि शिकायतकर्ता ही मामले का जांचकर्ता है जिससे पक्षपात होता है। पक्षपात का सवाल इस तरह के हर मामले में अलग-अलग तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।