निजी और अल्पसंख्यक संस्थानों में भी नीट के जरिए ही होगा मेडिकल कोर्सों में दाखिला : सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court ने कहा है कि निजी और अल्पसंख्यक मेडिकल संस्थानों में भी दाखिले के लिए NEET की प्रवेश परीक्षा अनिवार्य होगी। जानें शीर्ष अदालत ने क्या कहा...
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को साफ कर दिया कि देश में जारी सभी मेडिकल कोर्सों में दाखिला राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के आधार पर ही होगा। यह आदेश निजी एवं गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक व्यावसायिक संस्थानों पर भी लागू होगा। यानी निजी एवं अल्पसंख्यक संगठनों द्वारा संचालित संस्थानों में भी एडमिशन के लिए अब नीट की परीक्षा पास करना जरूरी होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि निजी और अल्पसंख्यक मेडिकल कॉलेजों में भी दाखिले के लिए NEET की परीक्षा अनिवार्य होगी। NEET को नहीं मानने वाले कॉलेजों की मान्यता रद की जा सकती है। आदेश को स्पष्ट करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि NEET यह सुनिश्चित करने के लिए है कि शिक्षा का मानक बना रहे और प्रबंधन के विशेष अधिकार की आड़ में कुप्रबंधन नहीं होने पाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि एमबीबीएस (MBBS) और बीडीएस (BDS) समेत अन्य मेडिकल कोर्सों में दाखिले की प्रक्रियाओं में अनेक लूपहोल्स हैं जिन्हें खत्म करने की जरूरत है। NEET का मकसद मेडिकल कोर्सों में दाखिले की गुणवत्ता को बनाए रखना है।
नीट के प्रावधानों को चुनौती देने का यह मामला काफी पुराना था। गैर सहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थानों ने नीट से मेडिकल में प्रवेश देने को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि इससे संविधान में भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थान चलाने और प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन होता है। कोर्ट ने दलीलें खारिज करते हुए कहा कि संस्थानों के प्रबंधन का अनुच्छेद 30 में मिला अधिकार कानून और संविधान के अन्य प्रावधानों से ऊपर नहीं है। इस पर तर्कसंगत मानक तय किये जा सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि एमसीआई एक्ट और डेन्टिस्ट एक्ट की धारा 10डी अनुच्छेद 30 में मिले अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती।
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल में प्रवेश की परीक्षा नीट (नेशनल इलेजिबिलिटी कम एन्टरेंस टेस्ट) के प्रावधानों को सही ठहराते हुए दूरगामी प्रभाव वाले अहम फैसले में कहा कि मेडिकल के ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए समान परीक्षा का प्रावधान करने वाली नीट से सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थानों के किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं होता। नियमों को राष्ट्रहित, जनहित और शिक्षा का स्तर कायम रखने वाला बताते हुए कोर्ट ने कहा कि इसकी मंशा चयन में निष्पक्षता और मेरिट सुनिश्चित करना है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, विनीत सरन और एमआर शाह की पीठ ने मेडिकल की समान प्रवेश परीक्षा नीट के प्रावधानों को चुनौती देने वाली विभिन्न निजी और अल्पसंख्यक कालेजों की याचिकाएं निपटाते हुए अपने फैसले में कहा कि शिक्षण संस्थानों का मूलत: उद्देश्य चेरिटेबल होता है लेकिन मौजूदा समय में ज्यादातर अपने इस मूल उद्देश्य को खो चुके हैं। शिक्षा आज कमोडिटी (वस्तु) बन गई है। मेडिकल प्रवेश प्रक्रिया में निष्पक्षता समाप्त करने और मेरिट को हताश करने का कोई मतलब नहीं है। सरकार को सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त निजी अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए नियम तय करने का अधिकार है। संविधान के नीति निदेशक तत्वों अनुच्छेद 14 (समानता) और 21 (जीवन और स्वतंत्रता) के तहत ऐसा करने का अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह छात्रों के हित में हैं। फैसले में शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर तीखी टिप्पणियां करते हुए कोर्ट ने व्यवस्था में व्याप्त खामियों को समाप्त करने की जरूरत पर भी बल दिया। फैसले में नीट के प्रावधानों को राष्ट्र और जनहित में बताते हुए कहा कि मान्यता प्राप्त संस्थानों में शिक्षा का स्तर बनाए रखने के लिए कानूनन नियम बनाए जा सकते हैं। कोर्ट ने सुपर स्पेशलिटी कोर्स में किसी भी तरह के आरक्षण की मनाही करने वाले प्रीति श्रीवास्तव केस के पूर्व फैसले और अनियिमिताओं के बारे में मार्डन डेंटल कालेज के फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि उसमें कहा जा चुका है कि शिक्षा आर्थिक शोषण का जरिया बन गई है।
अदालत ने कहा कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं है जिसे पैसे और ताकत से प्राप्त कर लिया जाए। मेरिट में स्थान पाने वाले को हक से वंचित नहीं किया जा सकता। सरकार (राज्य) ऐसे में मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती। उसे शोषण रोकने के लिए हर हाल में दखल देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल और डेंटल शिक्षा के बारे में एमसीआई और डीसीआई द्वारा किये गए प्रावधानों को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।