सुप्रीम कोर्ट ने कहा, भारतीय न्यायतंत्र में जनहित याचिकाओं का अहम योगदान
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीआइएल का विरोध न्यायिक सक्रियता के मंत्र का जाप करते हुए करना निंदनीय है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकारते हुए कहा है कि जनहित याचिकाओं (पीआइएल) का विरोध न्यायिक सक्रियता के मंत्र का जाप करते हुए करना निंदनीय है। सरकार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों के बंटवारे का हवाला देकर अपनी नाकामियों को छिपाने की कोशिश करती है।
जस्टिस मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मंगलवार को कहा कि भारतीय न्यायतंत्र में जनहित याचिकाओं का अहम योगदान है। लेकिन सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए उसके खिलाफ न्यायिक सक्रियता के मंत्र का जाप करती है। या फिर सत्ता के विभाजन की दुहाई देती है।
खंडपीठ में शामिल जस्टिस एस.अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता ने कहा कि हाल के समय में सरकार ने जनहित याचिकाओं के विचार को ही चुनौती देना शुरू कर दिया है। या फिर वह न्यायिक सक्रियता के मंत्र का जाप करके और शक्ति के बंटवारे की दलील देकर जनहित याचिकाओं को कमतर बताने की कोशिश करती है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर यह आरोप देश भर में 1382 कैदियों की अमानवीय स्थितियों पर अपना फैसला सुनाते हुए लगाया।
जस्टिस लोकुर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिकतर मामलों में सरकार का रवैया अपनी खामियों को छिपाने की कोशिश भर होता है। इस बात का अहसास होना चाहिए कि जनहित याचिकाएं समाज में दरकिनार करोड़ों लोगों, महिलाओं और बच्चों की आवाज है। असल में भारतीय अनुभव का लाभ लेते हुए कुछ अन्य देशों ने भी अपने यहां पीआइएल की शुरुआत कर दी है।