सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लॉकडाउन आपातकाल जैसा नहीं; स्वत: जमानत का अधिकार नहीं छीन सकते
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के इस निर्णय को दरकिनार कर दिया जिसमें निर्धारित समय में चार्जशीट दाखिल न होने के बावजूद जमानत से इनकार कर दिया गया था।
नई दिल्ली, प्रेट्र। कोरोना के कारण देश में लगाए गए लॉकडाउन को आपातकाल के समान न होने की बात कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्धारित समय में चार्जशीट दाखिल न होने पर किसी आरोपित को स्वत: जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इस निष्कर्ष के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के इस निर्णय को दरकिनार कर दिया जिसमें निर्धारित समय में चार्जशीट दाखिल न होने के बावजूद जमानत से इनकार कर दिया गया था।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट का विचार है कि लॉकडाउन के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों में किसी अभियुक्त को स्वत: (डिफॉल्ट) जमानत का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए, भले ही आरोप पत्र धारा 167 (2) के तहत निर्धारित समय के भीतर दायर नहीं किया गया हो।
लोगों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार सन्निहित हैं
सुप्रीम कोर्ट ने आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि उस मामले में दिया गया उसका फैसला प्रतिगामी था। उल्लेखनीय है 1976 के एडीएम जबलपुर के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने चार-एक के बहुमत के फैसले से माना था कि अनुच्छेद 21 में ही लोगों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार सन्निहित हैं। जब अनुच्छेद 21 निलंबित दशा में हो किसी भी व्यक्ति का जीवन और उसकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाते हैं।
इसके साथ ही जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि लॉकडाउन आपातकाल की घोषणा के समान है।
पीठ ने कहा कि तय समयसीमा (60 या 90 दिन) के भीतर चार्जशीट दायर न होने पर किसी आरोपित को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा-167(2) के तहत मिले अधिकारों से अभियोजन पक्ष को वंचित नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा कि हमारा यह स्पष्ट मानना है कि मद्रास हाईकोर्ट की एकल खंडपीठ ने अपने निर्णय में लॉकडाउन को आपातकाल के बराबर मानकर गलती की है। इसके साथ ही कोर्ट ने दस हजार के निजी बांड और दो सिक्योरिटी पर आरोपित को जमानत दे दी।