सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जमानत याचिकाओं पर जल्द से जल्द होनी चाहिए सुनवाई, नहीं निर्धारित की जा सकती समयसीमा
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की पीठ उस आरोपित की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसे इस साल 30 मार्च को पंजाब के पटियाला जिले में 304 समेत आइपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले के सिलसिले में हिरासत में लिया गया था।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति की स्वतंत्रता बेहद अहम होती है, लिहाजा जमानत याचिका पर जितनी जल्दी हो सके सुनवाई होनी चाहिए। गिरफ्तारी से पूर्व या बाद में जमानत याचिकाओं के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की जा सकती, लेकिन कम से कम इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि ऐसी याचिकाओं पर जल्द से जल्द सुनवाई हो।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की पीठ उस आरोपित की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसे इस साल 30 मार्च को पंजाब के पटियाला जिले में 304 समेत आइपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले के सिलसिले में हिरासत में लिया गया था। उसने याचिका में मांग की थी कि पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में लंबित उसकी जमानत याचिका पर जल्द सुनवाई की जाए।
पीठ ने इस बात पर संज्ञान लिया कि सत्र अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और इसके बाद उसने सात जुलाई को गिरफ्तारी के बाद जमानत के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिकाकर्ता के वकील ने शीर्ष अदालत को बताया कि मामले को हाई कोर्ट में कई बार सूचीबद्ध किया गया, लेकिन उस पर सुनवाई नहीं हुई। याचिका का निपटारा करते हुए शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ता की जमानत याचिका पर जितनी जल्दी हो सके, विचार किया जाए।
अग्रिम जमानत देने से पहले अदालत को देखनी चाहिए अपराध की गंभीरता
वहीं, पिछले दिनों दूसरे एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को आरोपित को अग्रिम जमानत देते समय अपराध की गंभीरता और विशिष्ट आरोप जैसे मानदंडों पर विचार करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसे तय करना है कि इस स्तर पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने के लिए सही सिद्धांतों का अनुपालन किया है या नहीं।
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