सुप्रीम कोर्ट ने पलटा बांबे हाई कोर्ट का फैसला, कहा- गोवारी और गोंड गोवारी भिन्न व अलग जातियां
उच्च न्यायालय ने कहा कि 29 अक्टूबर 1956 से पहले गोंड गोवारी (Gond Gowari Community ) जनजाति महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश में अस्तित्व का कोई निशान नहीं था। लिहाजा गोवारी समुदाय को एसटी के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बांबे हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें महाराष्ट्र के विशेष पिछड़े वर्ग में शामिल गोवारी समुदाय को गोंड गोवारी की तरह अनुसूचित जनजाति (एसटी) घोषित कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि वे दो भिन्न और अलग जातियां हैं।
बांबे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने 14 अगस्त, 2018 को कहा था कि संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में एसटी के रूप में शामिल गोंड गोवारी समुदाय वर्ष 1911 से पहले विलुप्त हो गया था और एसटी के रूप में शामिल करते समय 29 अक्टूबर, 1956 से पहले उसके महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश में अस्तित्व का कोई निशान नहीं था। लिहाजा गोवारी समुदाय को एसटी के लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने संवैधानिक प्रावधानों और हाई कोर्ट के फैसले का विस्तार से अध्ययन करने के बाद अपने फैसले में कहा कि हाई कोर्ट द्वारा दिया गया कोई भी कारण मानने योग्य नहीं है कि गोवारी समुदाय गोंड गोवारी के एसटी प्रमाणपत्र को पाने का अधिकारी है।
हाई कोर्ट का यह फैसला कि 1911 से पहले गोंड गोवारी जनजाति पूरी तरह विलुप्त हो गई थी, दोषपूर्ण पाया गया है। साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद गोवारी समुदाय के लोगों को प्रवेश और नौकरियों में मिले आरक्षण के लाभों को वापस नहीं लिया जाएगा।