सुप्रीम कोर्ट में सांसदों-विधायकों के वकालत करने पर रोक की मांग खारिज
कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट एक्ट 1961 और उसके तहत बने रूल में कहीं भी सांसदों-विधायकों के वकालत करने पर रोक नहीं लगाई गई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वकालत करने वाले सांसदों-विधायकों के लिए बड़ी राहत की खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों विधायकों के वकालत करने पर रोक लगाने की मांग मंगलवार को खारिज कर दी।
ये फैसला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एमएम खानविल्कर व डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका खारिज करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट एक्ट 1961 और उसके तहत बने रूल में कहीं भी सांसदों-विधायकों के वकालत करने पर रोक नहीं लगाई गई है।
पीठ ने कहा कि पूर्णकालिक वैतनिक कर्मचारी के बारे में बार काउंसिल आफ इंडिया का रूल 49 जनप्रतिनिधियों पर नहीं लागू होगा। ये लोग किसी भी व्यक्ति, कंपनी, सरकार या निगम में पूर्ण कालिक वैतनिक कर्मचारी नहीं कहे जा सकते। इनकी विशिष्ट स्थिति है इन्हें नियुक्त नहीं किया जाता बल्कि एक क्षेत्र के लोग इन्हें चुनते हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेशेगत कदाचार और हितों के टकराव की दी गई दलील खारिज करते हुए कहा कि ये एक सामान्य टिप्पणी है।
कोई मामला हितों के टकराव या पेशेगत कदाचार का माना जाएगा कि नहीं ये हर मामले की परिस्थितियों के हिसाब से तय होगा। सिर्फ किसी वकील का जनप्रतिनिधि होना यह नहीं माना जा सकता कि वह पेशेगत कदाचार में शामिल है। इसके अलावा सांसद के पास जज को पद से हटाने के लिए महाभियोग लाने की शक्ति को हितों का टकराव या संवैधानिक नैतिकता अथवा संस्थागत निष्ठा का मुद्दा नहीं कहा जा सकता। बार काउंसिल आफ इंडिया ने साफ कहा है कि सांसद-विधायकों के वकालत करने पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
याचिका में कहा गया था कि सांसद-विधायकों को वेतन भत्ते पेंशन और बंगला जनता की सेवा के लिए मिलता है इन्हें पूरे समय उन्ही की सेवा करनी चाहिए ये उस दौरान निजी वकालत नहीं कर सकते। पेंशन पूर्णकालिक कर्मचारी को मिलती है इसलिए कानून में इन्हें पूर्ण कालिक कर्मचारी माना जाएगा और एडवोकेट एक्ट पूर्णकालिक वैतनिक कर्मचारी के वकालत करने पर रोक लगाता है।