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यौन उत्पीड़न के मामले में मध्‍य प्रदेश के जिला जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार

यौन उत्पीड़न के मामले में कारण बताओ नोटिस और शुरू कार्यवाही को रद करने के लिए मध्य प्रदेश जिला जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 11:27 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 04:33 AM (IST)
यौन उत्पीड़न के मामले में मध्‍य प्रदेश के जिला जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार
यौन उत्पीड़न के मामले में मध्‍य प्रदेश के जिला जज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार

नई दिल्ली, पीटीआइ। एक महिला न्यायिक अधिकारी के कथित यौन उत्पीड़न के मामले में कारण बताओ नोटिस और इसके बाद शुरू हुई कार्यवाही रद करने के लिए मध्य प्रदेश जिला जज की याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने जिला जज को याचिका वापस लेने और कानून के तहत उपलब्ध दूसरे विकल्प अपनाने की छूट प्रदान कर दी।

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जिला जज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और आर बाला सुब्रमणियन ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस को चुनौती दी थी। इस पर शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि याचिका अनुच्छेद-32 के तहत दायर करने योग्य नहीं है। जिला जज ने अपनी याचिका में कहा कि वह आंतरिक शिकायत समिति की अंतिम रिपोर्ट तथा इसके बाद हाई कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए जारी कारण बताओ नोटिस को चुनौती दे रहे हैं।

याचिका में अंतिम रिपोर्ट को मनमाना और गैरकानूनी बताया गया है और कहा गया कि याचिकाकर्ता का 32 साल से अधिक सेवाकाल का रिकार्ड बेदाग रहा है। याचिकाकर्ता 2020 के अंत में अवकाश ग्रहण करने वाला है और वह अपनी सेवा के अंतिम चरण में है। उसके खिलाफ सारी कार्रवाई मनमानी और दुर्भावनापूर्ण है और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। जिला जज ने आरोप लगाया कि ये सारी कार्रवाई ऐसे समय में की गई है जब उसका नाम हाई कोर्ट में न्यायाधीश पद पर पदोन्नति के लिए विचारणीय है।

इस मामले को दो साल से भी ज्यादा समय तक लंबित रखा गया ताकि उसकी पदोन्नति को नुकसान पहुंचाया जा सके। जज ने कहा कि आंतरिक शिकायत समिति ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून, 2013 की धारा 10 के प्रावधानों को नजरअंदाज करते हुए शिकायतकर्ता की समझौते की अर्जी को भी अस्वीकार कर दिया है।


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