सुप्रीम कोर्ट ने ट्विटर से 'सांप्रदायिक' हैशटैग हटाने से किया इनकार, याचिकाकर्ता से कही यह बात
Supreme Court ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद उस जनहित याचिका को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है। जानें याचिका पर अति संक्षिप्त चली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है।
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद उस जनहित याचिका को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है जिसमें केंद्र सरकार और तेलंगाना पुलिस प्रमुख को सोशल नेटवर्किग साइट ट्विटर से 'सांप्रदायिकता' फैलाने वाले हैशटैग को रोकने का निर्देश देने को कहा गया था। याचिका में आरोप लगाया गया है कि कथित सांप्रदायिक हैशटैग से भारत में नोवल कोरोना वायरस को फैलाने के लिए इस्लाम जिम्मेदार है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने गुरुवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये इस मामले की सुनवाई की। उन्होंने वकील खाजा अजहरुद्दीन की याचिका पर संज्ञान लिया और कहा कि वह इस मामले को तेलंगाना हाईकोर्ट के समक्ष ले जाएं। संक्षिप्त सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट किसी व्यक्ति को फोन या सोशल मीडिया पर कुछ गलत कहने से नहीं रोक सकता है। इस पर याचिकाकर्ता वकील ने दलील दी कि वह किसी को कुछ कहने से नहीं रोकना चाहते, लेकिन वह चाहते हैं कि ट्विटर खुद ही इन भड़काऊ हैशटैग को अपने प्लेटफार्म से हटा दे।
हैदराबाद के एक वकील ने अपनी जनहित याचिका के जरिये ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैशटैग 'इस्लामिक कोरोना वायरस जिहाद', 'कोरोना जिहाद', 'निजामुद्दीन ईडियट्स', 'तब्लीगी जमात वायरस' आदि को अवैध घोषित करके ट्विटर से हटवाने की मांग की थी। इसके लिए सर्वोच्च अदालत को कैबिनेट सचिव, गृह मंत्रालय, तेलंगाना पुलिस के डीजी और पुलिस कमिश्नर को दिशा-निर्देश देने की अपील की थी।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जता चुकी है। सरकार ने तब शीर्ष अदालत को बताया कि इंटरनेट लोकतांत्रिक राजनीति में अकल्पनीय व्यवधान पैदा करने वाले शक्तिशाली हथियार के रूप में उभरा है। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने शीर्ष अदालत से कहा था कि यद्यपि की प्रौद्योगिकी से आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास हुआ है, इसके साथ ही अभद्र भाषा, फर्जी खबरें और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।