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SC ने कड़ी टिप्पणी, कहा- हत्या मामले में चलताऊ ढंग से फैसला नहीं कर सकते, HC का फैसला रद

SCने हत्या के एक मामले में पंजाब एवं हरियाणा HC के फैसले को यह कहते हुए रद कर दिया है कि गंभीर मामलों में चलताऊ तौर पर फैसले नहीं दिए जाते। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट को महज चार लाइन में अपना आदेश नहीं देना चाहिए।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 06:41 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 07:21 PM (IST)
SC ने कड़ी टिप्पणी, कहा- हत्या मामले में चलताऊ ढंग से फैसला नहीं कर सकते, HC का फैसला रद
सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी, कहा- हत्या मामले में चलताऊ ढंग से फैसला नहीं कर सकते। फाइल फोटो।

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को यह कहते हुए रद कर दिया है कि गंभीर मामलों में चलताऊ तौर पर फैसले नहीं दिए जाते। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ की गई पहली अपील में हाईकोर्ट को महज चार लाइन में बेहद सामान्य तरीके से अपना आदेश नहीं देना चाहिए। शीर्ष न्यायालय में जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंद्रेश की पीठ ने हाईकोर्ट के दो मार्च, 2020 के एक फैसले पर टिप्पणी करते हुए उसे रद किया है।

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पीठ ने मामले को पुन: विचार के लिए वापस हाईकोर्ट के पास भेज दिया है। मामला हरियाणा के भिवानी जिले के 80 वर्ष से ज्यादा उम्र के हत्या के दोषी व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। इसमें निचली अदालत ने अक्टूबर 2005 में दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस आदेश के खिलाफ दोषी जब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट गया तो उसने संक्षिप्त प्रक्रिया के बाद महज चार लाइन का आदेश देते हुए अपील को खारिज कर दिया। इस प्रकार से निचली अदालत का आजीवन कारावास का आदेश बरकरार रहा। इसीलिए राहत पाने के लिए दोषी सुप्रीम कोर्ट आया था। जिस घटना में 80 वर्ष से ज्यादा के आदमी को सजा हुई वह अक्टूबर 2003 में हुई थी। उसमें दोषी ने एक व्यक्ति की कुल्हाड़ी प्रहार से हत्या कर दी थी और मौके से फरार हो गया था।

घटना में पीडि़त की मौके पर ही मौत हो गई थी। घटना से चार दिन पहले मारे गए व्यक्ति और दोषी ने शराब पीकर झगड़ा किया था। घटना के बाद पुलिस जांच में दोषी के खिलाफ सुबूत पाए गए और उन्हीं के आधार पर अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। बावजूद इसके दोषी व्यक्ति का कहना था कि वह निर्दोष है और उसे गलत ढंग से मामले में फंसाया गया है। लेकिन पहले ट्रायल कोर्ट और उसके बाद हाईकोर्ट ने उसके इस तर्क को नहीं माना।


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